इट्स टाईम फ़ॉर एक्शन, पीरियडस में न लें टेंशन

लखनऊ, 29 मई 2020। हर साल 28 मई को माहवारी स्वच्छता दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष भी इसे पूरी दुनिया में मनाया गया। इस बार की थीम : “इट्स टाइम फॉर एक्शन” थी, जिसे लेकर महिलाओं में खासा उत्साह दिखा। किसी ने सोशल मीडिया पर तो किसी ने निजी तौर पर इसके प्रति लोगों को जागरूक किया। वहीं, अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञों ने भी माहवारी स्वच्छता दिवस के प्रति महिलाओं को जानकारियां दीं। यह एक अंतर्राष्ट्रीय अभियान है, इस दिन विभिन्न सरकारी संस्थाएं, स्वयंसेवी व निजी संगठन, मीडिया व जनता एक साथ एक मंच पर आकर एक ऐसी दुनिया बनाने का प्रयास करते हैं जहां किशोरियां और महिलाएं बिना किसी संकोच के माहवारी का प्रबंधन स्वच्छता, आत्मविश्वास और सम्मान के साथ कर सकें।
ग्लोबल वाटर आर्गेनाईजेशन के अनुसार, हर वर्ष लगभग 800 मिलियन किशोरियां और महिलाएं इस प्रक्रिया से गुजरती हैं।
माहवारी स्वच्छता व प्रबंधन की दी जाये जानकारी :
इस सम्बन्ध में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस फॉर एडोलसेन्स की प्रमुख डॉ. सुजाता बताती हैं, फिर भी पूरी दुनिया में उन्हें माहवारी प्रबंधन से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मासिक धर्म से जुड़े हुए मिथक और भ्रांतियां, बुनियादी ढांचे की कमी जैसे शौचालय और हाथ धोने की सुविधाओं आदि की कमी भी किशोरियों और महिलाओं को उनके दैनिक कार्यों, स्कूल व कार्यस्थल पर जाने से रोकते हैं।
माहवारी स्वच्छता व प्रबंधन के सम्बन्ध में महिलाओं और किशोरियों को जानकारी देना जरूरी है ताकि वह सशक्त हों, उनमें आत्मविश्वास जागे और वह माहवारी प्रबंधन के लिए उपलब्ध साधनों के बारे में स्वयं निर्णय ले सकें। इसके लिए आवश्यक है विद्यालयों के पाठ्यक्रम, नीतियों और कार्यक्रम में माहवारी स्वच्छता से सम्बंधित जानकारी शामिल करायी जाएं। समाज में लड़कों, पुरुषों, शिक्षकों व स्वास्थ्य कर्मचारियों को इससे सम्बंधित जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए जिससे उन्हें माहवारी से जुड़े नकारात्मक मानदंडों के सम्बन्ध में सही जानकारी हो पाए और वह इन्हें दूर करने में मदद कर सकें।
स्वच्छता से जुड़ी चीजें करायी जाएं उपलब्ध :
विद्यालयों, सार्वजनिक स्थानों व कार्यस्थलों में स्वच्छता से जुड़ी चीजें, जैसे उपयुक्त शौचालय, साबुन, पानी और निपटारे से सम्बंधित सुविधाएँ उपलब्ध करायी जानी चाहिए। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि माहवारी के दौरान स्वच्छता के अभाव में प्रजनन प्रणाली संक्रमण (आरटीआई) होने की सम्भावना बढ़ जाती है। यह कहना है क्वीन मेरी हॉस्पिटल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एस.पी. जैसवार का। डॉ. जैसवार कहती हैं माहवारी के 5 दिनों में यदि हम सुरक्षित प्रबंधन नहीं करते हैं तो पेशाब की नली व बच्चेदानी में संक्रमण हो सकता है। साथ ही बाँझपन और सेप्टिक अबॉर्शन भी हो सकता है। लंबे समय तक संक्रमण मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
हमें इन दिनों में संक्रमण से बचने के लिए नियमित नहाना चाहिए। नहाते समय अपने जननांगों को पानी से अच्छे से साफ करना चाहिए और सूती कपड़े से पोंछना चाहिये। माहवारी के दौरान सूती कपड़े के पैड का उपयोग सबसे अच्छा रहता है। हर 24 घंटे में कम से कम 2 बार पैड बदलने चाहिए। पैड बदलने के समय जननांग को पानी से धोकर सुखाना चाहिए। डॉ. जैसवार का कहना है यदि अत्यधिक रक्तस्राव हो या पेट में अत्यधिक दर्द हो तो प्रशिक्षित चिकित्सक को दिखाना चाहिए।
संक्रमण का रहता है खतरा :
राम मनोहर लोहिया अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मालविका मिश्रा कहती हैं, माहवारी के समय स्वाभाविक तौर पर संक्रमण फैलने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए रक्त या स्राव के संपर्क होने पर शरीर को अच्छे से साबुन व पानी से धोना चाहिये। माहवारी में उपयोग किये गए पैड या कपड़े को खुले में नहीं फेंकना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से उठाने वाले व्यक्ति में संक्रमण का खतरा हो सकता है। हमेशा पैड को पेपर या पुराने अखबार में लपेटकर फेंकना चाहिये या जमीन में गड्ढा खोदकर दबा देना चाहिये।
लड़कियों को शिक्षित करना इसलिए ज़रूरी है ताकि उनमें सही और गलत को पहचाने की समझ विकसित हो। विवाह सम्बन्धी व बच्चे के जन्म को लेकर वह सही निर्णय ले पाती हैं जो उनके व उनके बच्चे के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। साथ ही वह आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर होती हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार भारत में में 15-24 वर्ष की 57.6 % महिलायें माहवारी के दौरान हाइजीन विधियों को अपनाती हैं जबकि उत्तर प्रदेश में इनका प्रतिशत 47.1 है।
माहवारी लड़की के शरीर को माँ बनने के लिए तैयार करती है। लड़की की पहली माहवारी 9-13 वर्ष के बीच कभी भी हो सकती है। हर लड़की के लिए माहवारी की आयु अलग-अलग होती है। हर परिपक्व लड़की की 28-31 दिनों के बीच में एक बार माहवारी होती है।
माहवारी का खून गन्दा या अपवित्र नहीं होता है। यह खून गर्भ ठहरने के समय बच्चे को पोषण प्रदान करता है। कुछ लड़कियों को माहवारी के समय पेट के निचले हिस्से में दर्द, मितली और थकान हो सकती है। यह घबराने की बात नहीं है।

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