नई दिल्ली (लाइवभारत24)।  किसानों के समर्थन में कांग्रेस नेता विजय चौक से राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकालना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने इसकी इजाजत नहीं दी। इसके बावजूद मार्च निकालने पर प्रियंका गांधी समेत कई नेताओं को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। इनमें केसी वेणुगोपाल और रणदीप सुरजेवाला भी शामिल हैं। सभी को मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन ले जाया गया है। इस मार्च से अलग कांग्रेस नेता राहुल गांधी किसानों के मुद्दे पर राष्ट्रपति से मिले। प्रियंका ने कहा कि भाजपा नेता और समर्थक किसानों के लिए जो शब्द इस्तेमाल कर रहे हैं, वह पाप है। अगर सरकार किसानों को देश विरोधी कहती है तो, सरकार पापी है। किसानों की समस्या का हल तब निकलेगा, जब सरकार उनका आदर करेगी। इस सरकार के खिलाफ किसी भी तरह के असंतोष को आतंक के नजरिए से देखा जा रहा है। प्रियंका ने कहा, कभी वे कहते हैं कि हम इतने कमजोर हैं कि विपक्ष के लायक ही नहीं। कभी कहते हैं कि हम इतने ताकतवर हैं कि हमने दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के लिए लाखों कैंप बना दिए। पहले उन्हें तय करना चाहिए कि हम क्या हैं?
राहुल गांधी और गुलाम नबी आजाद ने राष्ट्रपति से मिलकर किसानों के मामले में दखल की मांग की। राष्ट्रपति भवन से निकलने के बाद राहुल ने कहा कि किसान, छोटे व्यापारी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। अगर कृषि व्यवस्था को छेड़ा जाएगा, तो इसका असर पूरे देश पर पड़ेगा। इसलिए ऐसे कानूनों को वापस लेना चाहिए। प्रधानमंत्री सिर्फ 2-3 लोगों को फायदा पहुंचाना चाहते हैं।
प्रियंका को हिरासत में लिए जाने के बारे में पूछने पर राहुल ने कहा कि आज देश में लोकतंत्र नहीं बचा है। पीटना और हिरासत में लेना इस सरकार का काम बन गया है। सरकार की इन नीतियों की वजह से देश में किसी युवा को नौकरी नहीं मिलेगी। छोटे व्यापार खत्म हो जाएंगे। मोदी क्रोनी कैपिटलिस्ट के लिए पैसा बना रहे हैं। जो भी उनके खिलाफ खड़े होने की कोशिश करेगा, उसे आतंकी करार दे दिया जाएगा। फिर चाहे वह किसान हो, मजदूर हो या फिर मोहन भागवत ही न क्यों न हों।
उन्होंने सरकार से बातचीत का प्रपोजल बुधवार को ठुकरा दिया। किसानों ने कहा कि सरकार के प्रपोजल में दम नहीं, नया एजेंडा लाएं तभी बात होगी। किसान नेता शिव कुमार कक्का ने कहा, सरकार किसानों की अनदेखी कर आग से खेल रही है, उसे जिद छोड़नी चाहिए। कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने 20 दिसंबर को किसान नेता डॉ. दर्शनपाल को प्रपोजल भेजा था। इसलिए जवाब भी दर्शनपाल की ई-मेल से संयुक्त सचिव को ही भेजा गया है।

किसानों ने लिखा है- आपने पूछा था कि हमारी पिछली चिट्ठी एक आदमी की राय है या सभी संगठनों की। हम बता दें कि यह संयुक्त मोर्चे की सहमति से भेजा गया जवाब था। इस पर सवाल उठाना सरकार का काम नहीं है।
आपकी चिट्ठी भी आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश थी। सरकार कथित किसान नेताओं और ऐसे कागजी संगठनों के साथ पैरेलल बातचीत कर आंदोलन को तोड़ने की कोशिश कर रही है, जिनका आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है। प्रदर्शनकारी किसानों से ऐसे निपट रहे हैं मानों वे संकटग्रस्त लोग न होकर सरकार के राजनीतिक विरोधी हैं। आपका यह रवैया विरोध प्रदर्शन तेज करने के लिए मजबूर कर रहा है। हम हैरान हैं कि सरकार अब भी तीन कानूनों को रद्द करने की हमारी मांग को समझ नहीं पा रही। कई दौर की बातचीत में साफ तौर पर बताया गया कि कानूनों में ऐसे बदलाव हमें मंजूर नहीं हैं। 5 दिसंबर को मौखिक प्रपोजल खारिज करने के बाद हमें बताया गया कि सरकार के साथ चर्चा के बाद ठोस प्रपोजल भेजा जाएगा, लेकिन 9 दिसंबर को जो प्रस्ताव भेजे, वे 5 दिसंबर की चर्चा वाले ही थे जिन्हें हम पहले ही खारिज कर चुके हैं। आपने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के बारे में जो प्रस्ताव भेजा है, उसमें ऐसा कोई भी साफ प्रस्ताव नहीं है जिसका जवाब दिया जाए।
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आप मौजूदा खरीद सिस्टम से संबंधित लिखित भरोसे का प्रस्ताव रख रहे हैं। किसान संगठन राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिश के मुताबिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (सी2+50%) पर सभी फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं।
बिजली अधिनियम (संशोधन) विधेयक के ड्राफ्ट पर प्रस्ताव साफ नहीं है। जब तब आप क्रॉस सब्सिडी बंद करने के प्रोविजन के बारे में साफ नहीं करते, तब तक इस पर जवाब बेकार है। हम बातचीत के लिए तैयार हैं और इंतजार कर रहे हैं कि सरकार कब खुले मन, खुले दिमाग और साफ नीयत से इस चर्चा को आगे बढ़ाए। अपील करते हैं कि बेकार के बदलावों के खारिज प्रस्तावों को दोहराने की बजाए ठोस प्रस्ताव भेजें, ताकि उसे एजेंडा बनाकर बातचीत दोबारा शुरू की जा सके। हरियाणा और पंजाब समेत कई राज्यों से किसानों का दिल्ली पहुंचने का सिलसिला जारी है।

 

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