मेडिकल कॉलेज में ओबीसी कोटे की मांग को लेकर कहा, सुप्रीम कोर्ट ने

लाइव भारत24 टीम
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेज में ओबीसी कोटे की मांग को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए कहा कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। जस्टिस ए नागेश्वर राव की अगुआई वाली बेंच ने दो टूक कहा कि कोई दावा नहीं कर सकता है कि आरक्षण मौलिक अधिकार है। इसलिए कोटा लाभ नहीं मिलने का अर्थ यह नहीं निकाला जा सकता है कि संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है।

जस्टिस राव ने कहा, ”आरक्षण का अधिकार, मौलिक अधिकार नहीं है। आज यह कानून है।” याचिका में कहा गया था कि तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों में ओबीसी कोटे की सीटें रिजर्व नहीं रखी जा रही हैं और यह मौलिक अधिकारों का हनन है।

सीपीआई, डीएमके और इसके कुछ नेताओं ने यह याचिका दायर करते हुए राज्य के पोस्ट ग्रैजुएट मेडिकल कॉलेज और डेंटल कोर्स में ओबीसी कोटे के तहत 50 फीसदी आरक्षण की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि तमिलनाडु में ओबीसी, एससी और एसटी के लिए 69 फीसदी रिजर्वेशन है और इसमें 50 फीसदी ओबीसी के लिए है।

याचिका में मांग की गई है कि ऑल इंडिया कोटे के सरेंडर की गई सीटों में से 50 फीसदी सीटों पर ओबीसी उम्मीदवारों को प्रवेश मिले। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि ओबीसी उम्मीदवारों को प्रवेश ना देना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। उन्होंने रिजर्वेशन मिलने तक NEET के तहत काउंसिलिंग पर स्टे लगाने की भी मांग की है।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट इन तर्कों से सहमत नहीं हुआ और सवाल पूछा कि कैसे अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका को बनाए रखा जा सकता है जब आरक्षण के लाभ का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने आगे पूछा, किसके मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है? अनुच्छेद 32 केवल मौलिक अधिकारों के हनन के लिए। कोर्ट ने कहा, ”हम मानते हैं कि आप तमिलनाडु के सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों की इच्छा रखते हैं, लेकिन आरक्षण का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है।”

कोर्ट ने इस बात की तारफी की कि अलग-अलग दलों के लिए एक उद्देश्य के लिए साथ आ रहे हैं। कोर्ट से जब यह कहा गया कि तमिलनाडु सरकार आरक्षण कानून का उल्लंघन कर रही है तब बेंच ने याचिकाकर्ताओं को मद्रास हाई कोर्ट जाने को कहा। कोर्ट ने उन्हें याचिका वापस लेने और हाई कोर्ट जाने की अनुमति दी।

फरवरी में भी सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि ऐसा कोई मौलिक अधिकार नहीं है कि प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण का दावा किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई अदालत राज्य सरकारों को एससी/एसटी आरक्षण देने के लिए आदेश नहीं दे सकती है।

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