जब तक 60 से 70% आबादी में वायरस के खिलाफ इम्युनिटी नही आएगी तब तक खत्म नही होगा कोरोना

नई दिल्ली (लाइवभारत24)। देश की राजधानी में हाल ही में हुए दूसरे सीरो सर्वे में 29.1% लोगों में एंटीबॉडी पाई गई हैं, यानी यहां इतने लोगों के शरीर में कोरोना के खिलाफ लड़ने की क्षमता पैदा हो गई है। इसके बाद से देश में एक बार फिर हर्ड इम्युनिटी को लेकर बहस शुरू हो गई है। हर्ड इम्युनिटी महामारी का ऐसा चरण है, जब वायरस का कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो जाता है। अब ऐसे में सवाल है कि क्या भारत में कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो गया है? क्या लोगों में हर्ड इम्युनिटी आनी शुरू हो गई है? इसके फायदे क्या हैं? ये कब तक आ जाएगी? ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस(एम्स) में रुमेटोलॉजी डिपॉर्टमेंट में एचओडी डॉक्टर उमा कुमार का कहना है कि अब बात कम्युनिटी ट्रांसमिशन से बहुत आगे निकल चुकी है। कुछ जगहों पर कम्युनिटी ट्रांसमिशन है, पर पूरे देश में नहीं है। इसे लोकल ट्रांसमिशन भी कह सकते हैं।
डॉक्टर उमा के मुताबिक जब देश की 60% से 70% आबादी में कोरोनावायरस के खिलाफ इम्युनिटी डेवलप हो जाएगी तो ट्रांसमिशन की चेन ब्रेक हो जाएगी। फिर वायरस फैलने के लिए लोग ही नहीं मिलेंगे और यह वायरस कंट्रोल हो जाएगा। फिर हो सकता है कि इक्का-दुक्का केस ही मिलें।

हर्ड इम्युनिटी क्या है?

हर्ड मतलब बहुत सारे लोग या लोगों का समूह, इम्युनिटी मतलब रोग प्रतिरोधक क्षमता। यानी जब कोरोना के खिलाफ बहुत सारे लोगों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाएगी तो मान लिया जाएगा की हर्ड इम्युनिटी आ गई।

हर्ड इम्युनिटी कैसे काम करती है?

हर्ड इम्युनिटी वायरस की चेन को ब्रेक कर देती है। इससे वायरस फैलने की रफ्तार कम हो जाएगी।
हर्ड इम्युनिटी आने से वे लोग भी बच जाएंगे, जिनकी इम्युनिटी स्ट्रांग नहीं है या जिनमें इम्युनिटी नहीं बनती है।
इस प्रक्रिया को हर्ड इफेक्ट कहते हैं। यह इफेक्ट बाकी आबादी को भी संक्रमण से बचा लेती है।
हर्ड इफेक्ट क्या है?

डॉक्टर उमा बताती हैं कि यदि 60% से 70% आबादी में हर्ड इम्युनिटी आ गई तो बाकी 30% से 40% आबादी भी बच जाएगी, क्योंकि चेन ब्रेक हो जाएगी। ऐसे लोगों को हर्ड इफेक्ट से फायदा हो जाएगा।
इसके बाद जिनमें हर्ड इम्युनिटी है, वो तो सुरक्षित हो ही जाएंगे, इसके अलावा उन्हें भी फायदा होगा, जिनमें इम्युनिटी नहीं है, ये लोग हर्ड इफेक्ट से सेफ हो जाएंगे।
यह वैसे ही है, जैसे वैक्सीन लगाने और एंटीबॉडी बनने के बाद वायरस की चेन ब्रेक होती है। एक एक्टिव चीज है, जो अपने आप बन रही है, दूसरी पैसिव चीज है, जो कुछ देकर डेवलप करा रहे हैं।
क्या पहले से भी लोगों में हर्ड इम्युनिटी है?

डॉक्टर उमा कहती हैं कि कोविड-19 के अलावा भी कई और कोरोनावायरस पहले से मौजूद हैं, कुछ लोगों में ये पुराने वायरस मिले भी हैं। बहुत सारे लोगों में इन पुराने कोरोनावायरस के चलते एंटीबॉडी डेवलप हो गई है। इसलिए ऐसे लोगों में कोविड-19 के सिर्फ हल्के लक्षण ही पाए जा रहे हैं।
हर्ड इम्युनिटी कितने दिन में आ सकती है?

यह कहना बहुत मुश्किल है, लेकिन जब 60% से 70% आबादी संक्रमित हो जाएगी, तभी माना जाएगा कि हर्ड इम्युनिटी आ गई। ऐसा न्यूयॉर्क में देखने को आया भी है।
हर्ड इम्युनिटी से क्या होगा?

हर्ड इम्युनिटी आने के बाद वायरस को ऐसे इंसान मिलने बंद हो जाएंगे, जिन्हें संक्रमित कर वह लगातार फैल सके। अभी यह संक्रमण लगातार फैल रहा है।
हर्ड इम्युनिटी के क्या नुकसान हो सकते हैं?

डॉक्टर उमा बताती हैं कि अगर, सही हर्ड इम्युनिटी है तो कोई नुकसान नहीं है। दरअसल, ये नया वायरस है। इसके बारे में हर दिन एक नई जानकारी आ रही है। अब सवाल है कि जो एंटीबॉडीज ब्लड में मिल रही हैं, वो वाकई में वायरस के खिलाफ 100 फीसदी प्रोटेक्शन देती हैं या नहीं? वो कितने दिन सेफ रखती हैं? इस पर अभी पूरी तरह से सही जानकारी उपलब्ध नहीं है।
पहले कहा जा रहा था कि एंटीबॉडी 2 से तीन महीने प्रोटेक्शन करेगी, फिर कहा जा रहा है कि 6 महीने तक सेफ रखेगी। इसके अलावा फिर कौन से एंडीबॉडी सेफ रखेगी? क्योंकि शरीर में एंटीबॉडी तो कई होती हैं। इस सबके बारे में अभी ठोस जानकारी आनी बाकी है।
इसीलिए कई देश इम्युनिटी पासपोर्ट देने की भी बात कर रहे हैं, यानी जिन लोगों में एंटीबॉडी आ गई, उन्हें उस देश में आने के लिए इम्युनिटी पासपोर्ट दी जाएगी।
यह खतरनाक भी हो सकता है, क्योंकि मान लीजिए एंटीबॉडी की पहचान हो गई, लेकिन वो प्रोटेक्टिव एंटीबॉडी नहीं है। ऐसे में दोबारा भी वायरस हो सकता है। इसलिए उन लोगों को भी सावधानी बरतनी चाहिए, जिन्हें पहले वायरस हो चुका है।
दिल्ली की आबादी करीब 2 करोड़ है। इनमें से 15 हजार लोगों का सीरो सर्वे के लिए सैम्पल लिए गए। यहां पिछली बार हुए सीरो सर्वे में 23.48% लोगों में एंटीबॉडी पाई गई थी। इस बार 29.1% लोगों में एंटीबॉडी पाई गई है, यानी करीब 6% की बढ़ोत्तरी हुई है। ऐसे में देखा जा सकता है कि लोगों में हर्ड इम्युनिटी डेवलप हो रही है।
इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर ऐंड बॉयलरी साइंसेज के निदेशक डॉ. एसके सरीन के मुताबिक इस दर से हर्ड इम्युनिटी हासिल करने में कुछ महीने और लग सकते हैं। सर्वे के नतीजे बताते हैं कि संक्रमण का पिक-अप रेट बहुत कम है और इससे साइलेंटली प्रभावित होने वाले लोग अधिक हैं। हमें टेस्टिंग बढ़ाने की जरूरत है।
देश के अन्य शहरों में हर्ड इम्युनिटी की क्या स्थिति है?

मुंबई, पुणे और अहमदाबाद जैसे शहरों में भी सेरोलॉजिकल सर्वे किए गए हैं। मुंबई में जुलाई में किए गए सर्वे के मुताबिक, झुग्गियों में रहने वाले 57% लोग और गैर-मलिन बस्तियों में रहने वाले 16% लोगों में एंटीबॉडी पाई गई। हालांकि स्टडी में 6936 लोग ही शामिल थे।
पुणे में 1664 लोगों के बीच सीरो सर्वे हुआ। इनमें आधे से अधिक लोगों में एंटीबॉडी पाया गया। पंजाब में 1250 लोगों में की गई स्टडी में 28% में एंटीबॉडी पाई गई, जबकि अहमदाबाद में 17.6% लोगों में एंटीबॉडी पाई गई। इस तरह तकरीबन इतनी बड़ी आबादी में हर्ड इम्युनिटी आ गई है।
सीरो सर्वे क्या है?

किसी शहर या एक इलाके में वायरस कितना फैल गया है, इसका पता लगाने के लिए सेरोलॉजिकल सर्वे किया जाता है। इसमें ब्लड सीरम के सैंपल लिए जाते हैं। इसके जरिए शरीर में कोरोना की एंटीबॉडी की मौजूदगी का पता लगाया जाता है।

क्या होता है एंटीबॉडी टेस्ट?

जब आप किसी वायरस के संपर्क में आते हैं तो आपका शरीर ब्लड और टिश्यू में रहने वाली एंटीबॉडीज बनाने लगता है। ये एंटीबॉडीज एक तरह से प्रोटीन होते हैं, जो वायरस को शरीर में फैलने से रोकते हैं।
ये एंटीबॉडी इम्युनिटी सिस्टम द्वारा वायरस से लड़ने के लिए बनते हैं। टेस्ट के जरिए यह पता लगाया जाता है कि शरीर इन्हें बना रहा है या नहीं। अगर यह मौजूद हैं तो यह आशंका बढ़ जाती है कि आप कोरोना के संपर्क में आ चुके हैं।
हर्ड इम्युनिटी, एंटीबॉडी और सेरम टेस्ट क्या आपस में जुड़े हुए हैं?

डॉक्टर उमा कहती हैं कि दरअसल, इम्युनिटी को नापने के पैरामीटर होते हैं। सेरम टेस्ट के जरिए यहां पर इम्युनिटी नाप रहे हैं। यह पता किया जा रहा है कि वायरस के खिलाफ ब्लड में एंटीबॉडी हैं या नहीं। एंटीबॉडी इम्युनिटी के मार्कर हैं और जब यह 60% से 70% आबादी में डेवलप हो जाती है तो माना जाता है कि हर्ड इम्युनिटी आ गई।
हर्ड इम्युनिटी के बारे में दुनिया के वैज्ञानिक क्या कहते हैं?

दुनिया के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि करीब 60 से 70% आबादी में वायरस की प्रतिरोधी क्षमता पैदा होने के बाद ही किसी क्षेत्र में हर्ड इम्युनिटी विकसित होगी। यह क्षमता टीकाकरण या संक्रमण से ठीक होने के बाद भी आ सकती है।
हालांकि, कुछ शोधकर्ता नई उम्मीद जगाने वाली संभावनाएं खंगाल रहे हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ इंटरव्यू में दुनिया के 12 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने कहा कि हर्ड इम्युनिटी की सीमा 50% आबादी या इससे भी कम हो सकती है।
वैज्ञानिक और गणितज्ञ जटिल सांख्यिकीय मॉडलिंग के आधार पर ये अनुमान लगा रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार न्यूयॉर्क, लंदन और मुंबई के कुछ हिस्सों में वायरस के खिलाफ मजबूत इम्युनिटी पैदा हो चुकी है।
स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी में गणितज्ञ टॉम ब्रिटन कहते हैं कि 43% लोगों के संक्रमित होने पर हर्ड इम्युनिटी आ सकती है। यानी किसी आबादी में इतने लोग संक्रमित या रिकवर होने के बाद वायरस अनियंत्रित तरीके से नहीं फैलेगा।
हर्ड इम्युनिटी के इंतजार में एक बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। 43% आबादी के संक्रमित होने का मतलब यह है कि बहुत से लोग बीमार पड़ेंगे। मौतें भी होंगी। न्यूयॉर्क के कुछ क्लीनिक में पहुंचे 80% लोगों में एंटीबॉडी भी पाई गई है।

थाइरोकेयर कंपनी ने दावा किया है कि उसकी लैबों में किए गए एंटीबॉडी जांचों के विश्लेषण से पता चला है कि देश में औसतन 26%, यानी करीब 35 करोड़ लोगों को संभावित रूप से कोरोनावायरस संक्रमण हो चुका है। कंपनी ने इस अध्ययन के लिए सात हफ्तों में 600 शहरों में हुई 2.70 लाख एंटीबॉडी जांचों का विश्लेषण किया है।

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