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पाकिस्तान में हिंदू-सिखों के हालात बदतर

बंटवारे के समय पाक में 428 मंदिर थे, उनमें से 408 दुकान या दफ्तर बन गए

इस्लामाबाद (लाइवभारत24)। पाकिस्तान के दूसरे प्रधानमंत्री ख्वाजा नजीमुद्दीन ने कहा था”मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि मजहब किसी व्यक्ति का निजी मामला है और न ही इस बात से सहमत हूं कि एक इस्लामिक स्टेट में किसी व्यक्ति को समान अधिकार मिलें, चाहे उसका धर्म, जाति या यकीन कुछ भी हो।’कही थी। एक इस्लामिक स्टेट की मांग को लेकर अड़ने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के साथियों में से एक थे नजीमुद्दीन। उनको बस इसी बात से समझा जा सकता है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की हालत उस समय क्या रही होगी और अब क्या होगी?
इस सबका जिक्र इसलिए क्योंकि पिछले महीने ही पाकिस्तान की इमरान सरकार ने राजधानी इस्लामाबाद में कृष्ण मंदिर बनाने की मंजूरी दी थी। ये इस्लामाबाद का पहला मंदिर होता। इसके लिए सरकार ने 10 करोड़ रुपए भी दिए थे।

लेकिन, 20 हजार वर्ग फुट में बनने जा रहे इस मंदिर की दीवार बन ही रही थी कि कट्टरपंथियों ने इसे तोड़ डाला। इतना ही नहीं, दीवार ढहाने से दो दिन पहले ही सरकार ने कट्टरपंथियों के दबाव में आकर मंदिर निर्माण पर रोक लगा दी थी।1951 की जनगणना के मुताबिक, 72.26 लाख मुस्लिम पाकिस्तान चले गए थे। ये मुस्लिम पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान गए थे। जबकि, पाकिस्तान से 72.49 लाख हिंदू-सिख भारत लौटे थे।
पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम लड़कियों का जबरन अपहरण किया जाता है। उनका धर्म परिवर्तन किया जाता है। उसके बाद जबर्दस्ती किसी मुसलमान से उनकी शादी करवा दी जाती है।यूनाइटेड स्टेट्स कमिशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम के डेटा की मानें तो पाकिस्तान में हर साल 1 हजार से ज्यादा लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराया जाता है। उनसे इस्लाम कबूलवाया जाता है। उनको किडनैप किया जाता है। बलात्कार किया जाता है और फिर जबरन उनकी शादी की जाती है। इनमें ज्यादातर हिंदू और क्रिश्चियन लड़कियां ही होती हैं। पाकिस्तान में हिंदू आबादी कितनी है? इसको लेकर भी अलग-अलग आंकड़े हैं। पाकिस्तान में आखिरी बार 1998 में जनगणना हुई थी। 2017 में भी हुई है, लेकिन अभी तक धर्म के हिसाब से आबादी का डेटा जारी नहीं किया गया है।पाकिस्तान के स्टेटिक्स ब्यूरो के डेटा के मुताबिक, 1998 में वहां की कुल आबादी 13.23 करोड़ थी। उसमें से 1.6% यानी 21.11 लाख हिंदू आबादी थी। 1998 में पाकिस्तान की 96.3% आबादी मुस्लिम और 3.7% आबादी गैर-मुस्लिम थी। जबकि, 2017 में पाकिस्तान की आबादी 20.77 करोड़ से ज्यादा हो गई है।जबकि, मार्च 2017 में लोकसभा में दिए गए एक जवाब में केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया था कि 1998 की जनगणना के मुताबिक, पाकिस्तान में हिंदू आबादी 1.6% यानी करीब 30 लाख है।लेकिन, पाकिस्तान हिंदू काउंसिल का कहना है कि वहां 80 लाख से ज्यादा हिंदू आबादी है, जो पाकिस्तान की कुल आबादी का लगभग 4% है। इसके मुताबिक, सबसे ज्यादा 94% हिंदू आबादी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में रहती है।

बंटवारे के समय 428 मंदिर थे, उनमें से 408 दुकान बने या रेस्टोरेंट

ऑल पाकिस्तान हिंदू राइट्स मूवमेंट के एक सर्वे में सामने आया था कि 1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान में 428 मंदिर थे। लेकिन, 1990 के दशके के बाद इनमें से 408 मंदिरों में खिलौने की दुकानें, रेस्टोरेंट, होटल्स, दफ्तर, सरकारी स्कूल या मदरसे खुल गए। इस सर्वे के मुताबिक, अल्पसंख्यकों की पूजा वाले स्थलों की 1.35 लाख एकड़ जमीन पाकिस्तान सरकार ने इवैक्यूई प्रॉपर्टी ट्रस्ट बोर्ड को लीज पर दे दी। इस ट्रस्ट का काम ही है विस्थापितों की जमीन पर कब्जा करना। यानी ऐसे लोग जो पहले तो यहीं रहते थे लेकिन बाद में दूसरी जगह चले गए।पाकिस्तान में काली बाड़ी मंदिर था, उसे दारा इस्माइल खान ने खरीदकर ताज महल होटल में तब्दील कर दिया। खैबर पख्तूनख्वाह के बन्नू जिले में एक हिंदू मंदिर था, वहां अब मिठाई की दुकान है। कोहाट में शिव मंदिर था, जो अब सरकारी स्कूल बन चुका है।रावलपिंडी में भी एक हिंदू मंदिर था, जिसे पहले तो ढहाया गया, बाद में वहां कम्युनिटी सेंटर बना दिया गया। चकवाल में भी 10 मंदिरों को तोड़कर कमर्शियल कॉम्प्लैक्स बना दिया गया।सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि सिखों के भी धार्मिक स्थल को तोड़कर वहां दुकानें खोल दी गईं। जैसे- एब्टाबाद में सिखों के गुरुद्वारा को तोड़कर वहां कपड़े की दुकान खोल दी गई।पाकिस्तान सरकार के एक ताजा सर्वे के मुताबिक, साल 2019 में सिंध में 11, पंजाब में 4, बलूचिस्तान में 3 और खैबर पख्तूनख्वाह में 2 मंदिर चालू स्थिति में हैं।बंटवारे के बाद से ही पाकिस्तान में हिंदुओं के मंदिरों को निशाना बनाया जाना शुरू हो गया था। लेकिन, 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे को ढहाए जाने के बाद पाकिस्तान में 100 से ज्यादा मंदिरों को या तो तोड़ दिया गया या फिर उन्हें नुकसान पहुंचाया गया।पिछले साल अप्रैल में पाकिस्तान की इमरान सरकार ने 400 मंदिरों को दोबारा खोलने का फैसला लिया था। इसके लिए सरकार की तरफ से ही फंड भी दिया जा रहा है।पिछले साल अक्टूबर में पाकिस्तान के सियालकोट में 1 हजार साल से भी ज्यादा पुराना शिवाला तेजा मंदिर दोबारा खोला गया। ये मंदिर आजादी के बाद से ही बंद पड़ा था और 1992 के बाद इसे भारी नुकसान भी पहुंचाया गया था। इस मंदिर के रेनोवेशन पर 50 लाख रुपए से ज्यादा खर्च हुए थे।पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम आबादी भी वहां की राजनीति पर असर डालती है। पाकिस्तान के चुनाव आयोग के डेटा के मुताबिक, वहां 10.59 करोड़ से ज्यादा वोटर्स हैं। इनमें से 29.97 लाख वोटर्स अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। यानी पाकिस्तान के कुल वोटर्स में से करीब 3% वोटर्स गैर-मुस्लिम हैं।2013 की तुलना में 2017 में वहां गैर-मुस्लिम वोटर्स की संख्या भी 2 लाख से ज्यादा बढ़ी है। 2013 में वहां 27.7 लाख वोटर्स थे।इसमें भी सबसे ज्यादा हिंदू वोटर्स ही हैं। 2017 तक के आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान में 14.98 लाख से ज्यादा वोटर्स हिंदू थे। उसके बाद 13.25 लाख से ज्यादा वोटर्स क्रिश्चियन थे जिनकी संख्या जबरन धर्म परिवर्तन करा कर कम की जा रही है।

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