लखनऊ(लाइवभारत24)। पाचन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के काफी मामले सामने आते हैं क्योंकि ये विभिन्न आयु समूहों में हमारी आबादी के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करती हैं। एसिडिटी से संबंधित गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स डिसीज़ (जीईआरडी), सबसे आम बीमारियों में से एक है जिससे भारतीय आबादी पीड़ित है। शहरी भारतीयों के पाचन स्वास्थ्य को समझने के लिए इंडियन डायटेटिक एसोसिएशन, मुंबई के साथ साझेदारी में कंट्री डिलाइट द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि प्रत्येक 10 में से 7 लोग पाचन तंत्र से संबंधित किसी न किसी समस्या से जूझ रहे हैं, इस सूची में एसिडिटी सबसे ऊपर है। इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश के 4 गांवों में किए गए एक घरेलू सर्वेक्षण में यह तथ्य उभरकर आया है कि 10.7 प्रतिशत लोगों को जीईआरडी(GERD) है।
लखनऊ में हील फाउंडेशन द्वारा “एसिडिटी – करोड़ों लोगों की समस्या का सुरक्षित समाधान” विषय पर आयोजित मीडिया जागरूकता कार्यशाला के दौरान डॉ. राज कुमार शर्मा, निदेशक – नेफ्रोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट मेडिसिन, किडनी एंड यूरोलॉजी इंस्टीट्यूट, मेदांता हॉस्पिटल, डॉ. सीजी अग्रवाल, डिप्लोमेट आमेर बोर्ड ऑफ इंटरनल मेडिसिन (यूएसए), केजी मेडिकल यूनिवर्सिटी में मेडिसिन के पूर्व प्रोफेसर और एचओडी और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के फिजियोलॉजी एंड फैमिली मेडिसिन के एचओडी प्रोफेसर डॉ. नरसिंह वर्मा ने इसके कारणों, स्वास्थ्य पर प्रभाव और इसे ठीक करने के सुरक्षित तरीकों पर चर्चा की।
डॉ. राज कुमार शर्मा, निदेशक – नेफ्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट मेडिसिन, किडनी एंड यूरोलॉजी इंस्टीट्यूट, मेदांता अस्पताल, लखनऊ ने कहा, “जीईआरडी जैसा हाइपरएसिडिटी संबंधी विकार एक बहुत ही आम समस्या है जिसका सामना 10-30 प्रतिशत भारतीय आबादी को करना पड़ता है, जिसमें उत्तर प्रदेश सबसे अग्रणी राज्य है। खान-पान की आदतें, नींद संबंधी विकार और तनाव कुछ सामान्य कारण हैं जो इसके लिए जिम्मेदार हैं। हालाँकि, 2 में से 1 मरीज़ या तो अपनी मर्जी से ही कोई दवाई खा लेता है या दवाई की दुकान पर जाकर दुकानदार के कहने पर किसी दवाई का इस्तेमाल करता है। लेकिन दोनों ही तरह से दवा लेना ठीक नहीं है, इस स्थिति को गंभीरता से लें और आगे की जटिलताओं को रोकने के लिए डॉक्टर से परामर्श लें।”
डॉ. सी जी अग्रवाल, पूर्व प्रोफेसर और एचओडी, मेडिसिन, केजी मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ ने कहा, “भोजन के पाचन के लिए पेट में एसिड के आदर्श स्तर की जरूरत होती है। इतनी मात्रा में एसिड होना अच्छा है, लेकिन हाइपरएसिडिटी पाचन के साथ-साथ हमारे समग्र स्वास्थ्य के लिए खराब है। एसिडिटी अक्सर तले हुए/मसालेदार खाद्य पदार्थों, चाय/कॉफी, कार्बोनेटेड शीतल पेय और शराब के अधिक सेवन के कारण होती है।”
डॉ. अग्रवाल आगे बताते हुए कहते हैं, “अम्लता या एसिडिटी के प्रबंधन के लिए एक सुरक्षित और संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। स्वस्थ जीवनशैली और नियमित व्यायाम के अलावा हमें दवाईओं का चयन करते समय भी सावधानी बरतनी चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि लोग एसिडिटी की तेज दवाएं लेते हैं, जो पेट में महत्वपूर्ण एसिड के उत्पादन को पूरी तरह से रोक सकती है, जो हानिकारक है। लेकिन आपका डॉक्टर एसिडिटी के लिए, आपको ऐसी दवाएं लिखेगा जो पेट में एसिड के अतिरिक्त उत्पादन को रोकती हैं। ऐसी ही एक दवा है – रैनिटिडिन, जो सामान्यता डॉक्टर एसिडिटी के लिए लेने की सलाह देते हैं। इसका इस्तेमाल एसिडिटी से संबंधित विकारों के लिए लगभग चार दशकों से हो रहा है। यह न केवल एसिडिटी से जुड़े लक्षणों से तुरंत राहत देती है बल्कि पेट में पाचन के लिए जरूरी एसिड के अधिकतम स्तर को भी बनाए रखती है।
बाजार में रैनिटिडिन की बिक्री 1981 से शुरू हुई और तब से यह एसिडिटी से संबंधित स्थितियों के लिए सबसे भरोसेमंद दवाओं में से एक रही है और पूरे भारत में लाखों मरीजों के उपचार के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रोफेसर डॉ. नरसिंह वर्मा, फिजियोलॉजी और फैमिली मेडिसिन के एचओडी, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ ने कहा, “खराब जीवनशैली जिसमें नींद से संबंधित गड़बड़ियां, काम का नियत समय न होना और खानपान की गलत आदतें शामिल हैं, एसिडिटी के प्रमुख कारण हैं क्योंकि यह पेट को अधिक एसिड पैदा करने के लिए प्रेरित करती हैं। इनके कारण भारत में एसिडिटी संबंधी विकारों के मामले काफी बढ़ रहे हैं। नियमित व्यायाम, जंक और मसालेदार भोजन से परहेज और खूब पानी पीना इसे प्रबंधित करने के प्रमुख निवारक उपाय हैं। इसके अलावा, जब उपचार की बात आती है, तो कोई भी दवा लेने से पहले हमेशा डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।”
पाचन के शुरूआती स्तर में पेट के एसिड की मुख्य रूप से आवश्यकता होती है। यह आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन बी12 और कई अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को अवशोषित करने के लिए भी आवश्यक है। पेट में एसिड की कमी से पोषक तत्वों का अवशोषण न हो पाने के कारण उनकी कमी हो जाती है और बैक्टीरिया का विकास होता है जो संक्रमण का कारण बनता है।