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कोरोना संक्रमित शव के साथ गरिमापूर्ण करे व्यवहार : अखिला शिवदास

 

 सी-फार के वेबीनॉर में घर बैठे जुड़े विशेषज्ञ व मीडिया कर्मी

सीतापुर(लाइवभारत24)। सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) संस्था के सहयोग से कोविड-19 ‘‘संक्रमित मृतक के शरीर की व्यवस्था और अंतिम संस्कार से जुड़े प्रोटोकाल को लेकर एक राष्ट्रीय वेबनॉर आयोजित की गई। जिसमें विभिन्न राज्यों के विशेषज्ञों और मीडिया कर्मियों ने चर्चा की। विशेषज्ञों ने इस मुद्दे पर जोर दिया कि न केवल कोरोना संक्रमित के प्रति लोगों को नजरिया बदलना होगा, बल्कि अगर इस बीमारी के कारण अगर किसी की मौत हो जाती है तो उसके शव के प्रति भी व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता है। यह निष्कर्ष भी सामने आया कि संक्रमित शव से संक्रमण का खतरा 4 घंटे बाद कम हो जाता है। बावजूद इसके अगर शव के अंतिम संस्कार में शामिल हो रहे हैं तो भारत सरकार द्वारा सुझाए गए साफ-सफाई के तौर तरीकों को अपनाना चाहिए। हालात से डरने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि एहतियात के साथ मजबूती से लड़ने की आवश्यकता है।
वेबनॉर के शुभारंभ करते हुए सीफॉर की निदेशक अखिला शिवदास ने कहा कि संक्रमित शव के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार होना चाहिए। देश में कोरोना संक्रमित के शवों के प्रति कई ऐसी घटनाएं प्रकाश में आई हैं जो चिंता का विषय हैं। इस संबंध में समाज के नजरिये में बदलाव लाना होगा। प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. वंदना प्रसाद ने कहा कोरोना मृतक के प्रति भेदभाव ठीक नहीं है। मृत शरीर पर कोरोना वायरस 4 घंटे ही जीवित रहता है। इससे किसी को कोई दिक्कत नहीं है। डॉ. टी सुंदर रमन ने कोरोना संक्रमित के शव के प्रति समाज में फैले भय और भ्रांतियों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि कि अभी तक कोरोना के जितने मामले आए हैं उनमें किसी भी डेडबाडी के कारण कोरोना फैलने का अब तक का कोई भी केस रिपोर्ट नहीं हुआ है। हम सुरक्षा के लिए शवों को गले लगाने से बच सकते हैं लेकिन आवश्यक दूरी और सावधानियों के साथ हमे शवों का सम्मान करना चाहिए। आईटीआई दिल्ली में प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. दिनेश मोहन ने विषय को और अधिक विस्तार दिया और समझाया कि चूंकि शव सांस नहीं लेता, न छींक सकता है न खांस सकता है, न हंस सकता है न ही जोर से बोल सकता। ऐसे में संक्रमित के शव से संक्रमण का खतरा नहीं है। मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. जॉन दयाल ने कहा कि जब तक कोरोना संबंधित रिपोर्ट नहीं आई होती है तब तक लोग उस व्यक्ति के सन्निकट रहते हैं और पॉजीटिव रिपोर्ट आते ही व्यवहार बदल जाता है। संक्रमण से मौत के बाद बदले व्यवहार की जो घटनाएं आई हैं, वह काफी दुखद हैं। कार्यक्रम का संचालन कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता नताशा बधवार ने कहा कि यह एक मानवीय संकट है।

मां-बाप, बच्चे और जीवन साथी भी नहीं दे रहें साथ

विशेषज्ञों ने कहा कि पिछले तीन महीने में कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं जिनमें कोरोना संक्रमित लोग अपने अंतिम समय में अपने मां-बाप, बच्चे या जीवनसाथी का साथ नहीं पा सके। कोरोना संक्रमण के भय के कारण परिवार के लोगों को इनसे दूरी बनानी पड़ी। कोरोना के संक्रामक प्रवृत्ति और अस्पतालों की निर्देश के कारण बहुत सारे लोग चाहकर भी अपने प्रियजनों के अंतिम समय में उनके साथ नहीं रह सके।

सम्मानजनक तरीके से विदा लेने का हर व्यक्ति का अधिकार

हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि मृतकों का अंतिम संस्कार परिजनों द्वारा किए जाने में कोई ख़तरा नहीं है। उन्हें दफ़नाने या उनका दाह संस्कार करने से कोरोना का संक्रमण नहीं फैलता है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने मृतकों को दफनाने के संबंध में 15 मार्च को एक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किया था। इसमें साफ तौर पर कहा गया था कि मृतक के परिजन अंतिम बार अपने प्रियजन का दर्शन कर सकते हैं। इसमें वैसे सभी धार्मिक कार्यों की भी अनुमति दी गई थी, जिन्हें बिना शारीरिक संपर्क के पूरा किया जा सकता है।

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