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समुद्र किनारे नहीं बिहार, इसलिए उद्योग नहीं आते: नीतीश

पटना(लाइवभारत24)। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि “किस तरह से हमने काम करना शुरू किया है। गांव-गांव में और विकेंद्रित तरीके से काम किया। अगर कोई आते, बड़े-बड़े उद्योगपति यहां पर उद्योग लगाते, तो उसी को लोग देखते और कहते बड़ा उद्योग हो रहा है। लेकिन, अब वो नहीं आए, क्योंकि चारों तरफ से हम लोग घिरे हुए वाले इलाके हैं। ज्यादा बड़ा उद्योग कहां लगता, समुद्र के किनारे जो राज्य पड़ते हैं, उन्हीं जगहों पर ज्यादा लगता है। हम लोगों ने तो बहुत कोशिश की।”नीतीश ने 12 अक्टूबर से चुनाव कैंपेन शुरू किया है। पहली ही रैली में मुख्यमंत्री जी बोल रहे हैं कि हमने तो बहुत कोशिश कर ली। बिहार में तो उद्योग लग ही नहीं सकते।
नीतीश कुमार कह रहे हैं कि बिहार समुद्र से नहीं घिरा है, इसलिए यहां उद्योग नहीं हैं। लेकिन, बिहार इकलौता राज्य नहीं है, जो लैंड लॉक है। बल्कि, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, असम जैसे राज्य भी हैं, जो चारों तरफ से जमीन से ही घिरे हुए हैं। लेकिन, इनमें से कई राज्यों में बिहार के मुकाबले फैक्ट्रियां ज्यादा हैं।
किस राज्य में कितनी फैक्ट्रियां या इंडस्ट्री हैं, इसका रिकॉर्ड सरकार के पास रहता है। हर साल सरकार एनुअल सर्वे ऑफ इंडस्ट्रीज (एएसआई) जारी करती है, जिसमें देशभर में फैक्ट्रियां, उनमें काम करने वाले कामगारों की संख्या का डेटा रहता है।
फैक्ट्रियों की संख्या के सबसे ताजा आंकड़े 2017-18 के हैं। इसके मुताबिक, बिहार में 2017-18 में 2 हजार 881 फैक्ट्रियां हैं। जबकि, 2016-17 में 2 हजार 908 फैक्ट्रियां थीं। इस डेटा की मानें तो पिछले चार साल से बिहार में चालू फैक्ट्रियों की संख्या लगातार कम हो रही है।
अब जरा उन राज्यों की बात भी कर लेते हैं, जो समुद्र से नहीं घिरे नहीं हैं। हरियाणा छोटा राज्य है। बिहार के मुकाबले आबादी भी कम है। लेकिन, यहां 7 हजार 136 फैक्ट्रियां हैं। राजस्थान भी चारों तरफ से जमीन से घिरा है और यहां भी 8 हजार 375 फैक्ट्रियां हैं। मध्य प्रदेश में 4 हजार 99 फैक्ट्रियां हैं।
बिहार में कई ऐसे उद्यमी हैं, जो बताते हैं कि यहां का सिस्टम ही ऐसा है, जो उद्योग नहीं लगने दे रहा। उद्यमियों को या तो जमीन ही नहीं मिलती, अगर जमीन के कागज मिल भी गए, तो कब्जा नहीं मिलता। अगर कब्जा भी मिल गया तो लोन के लिए बैंक के चक्कर काटने पड़ते हैं। फिर प्रदूषण नियंत्रण समेत तमाम सरकारी विभागों के चक्कर काटते-काटते उद्यमी हार जाते हैं।

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