मोटे अनाज की बढ़ी है उत्पादकता:कुलपति

लखनऊ (लाइवभारत 24)। मोटा अनाज के दृष्टिगत उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद, लखनऊ एवं इंटीग्रल विश्वविद्यालय, लखनऊ द्वारा संयुक्त रूप से ”बदलते जलवायु परिदृश्य में श्री अन्न (मिलेट्स) के उत्पादन एवं मूल्य संवर्धन हेतु अभिनव दृष्टिकोण” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन इंटीग्रल विश्वविद्यालय, में आज किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. ए. के. सिंह, कुलपति, रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय विश्वविद्यालय, झाँसी ने कहा कि पूर्व के वर्षों में मोटा अनाज मिश्रित फसल के रूप में लिया जाता था किंतु धीरे-धीरे धान तथा गेहूं ने इसका स्थान ले लिया। वर्तमान में सरकार द्वारा मोटा अनाज के उत्पादन तथा इसकी जागरूकता के लिये इतने प्रयास किये जा रहे है जितना कि हरित क्रांति में भी नहीं किया गया था। मोटा अनाज के विलुप्त होने का एक कारण यह भी है कि धान तथा गेहूं का उत्पादन इससे अधिक था इसलिये लोगों ने इस पर कम ध्यान दिया तथा धीरे-धीरे विलुप्तता की कगार पर पहुंच गये। मोटे अनाज का प्रसंस्करण कठिन होने के कारण तथा उत्पादकता में कमी होने के कारण लोगों ने इसे कम महत्व दिया। वर्तमान में मोटे अनाज की उत्पादकता बढ़ी है।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से ज्वार, बाजरा तथा कहीं कहीं पर रागी का उत्पादन होता है। उन्होंने कहा कि मोटा अनाज उत्पादों का शहरी क्षेत्रों में ही प्रयोग किये जाने का प्रचलन है। मोटा अनाज को शहरी क्षेत्रों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रयोग तथा प्रसंस्करण हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जिसके लिये जागरूकता कार्यक्रम चलाये जाने चाहिये। मोटा अनाज के उत्पाद केवल स्नैक्स में न प्रयोग होकर मुख्य भोजन में सम्मिलित किये जाने चाहिये इसके लिये सामूहिक रूप से कार्य किये जाने कर आवश्यकता है। उन्होंने मोटा अनाज को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने पर जोर दिया। कार्यक्रम में डा. जावेद मुसर्रत ने कहा कि मोटा अनाज जलवायु रेसीलियंट, शून्य कार्बन उत्सर्जन तथा इनमें कम कम रोग व्याधियां लगने के साथ ही पोषक तत्वों से परिपूर्ण तथा निम्न ग्लाइसेमिक इंडेक्स होने के कारण स्वास्थ्य के लिये अत्यंत लाभकारी है। इसके लिये सभी संस्थाओं तथा वैज्ञानिकों को सामूहिक रूप से कार्य करना होगा। डॉ. संजय सिंह ने कहा कि यह संगोष्ठी अपर मुख्य सचिव, कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान, उत्तर प्रदेश डा. देवेश चतुर्वेदी की प्रेरणा तथा निर्देशों के क्रम में आयोजित की गई है, उनके द्वारा प्रदेश में मोटा अनाज के उत्पादन के लिये अथक प्रयास किये जा रहे हैं। महानिदेशक, उपकार ने मोटा अनाज के उत्पादन के संबंध में किसानों की स्थिति, दायरे, चुनौतियों और अवसरों के बारे में चर्चा की गई। उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से ज्वार, बाजरा, सावां कोंदो, रागी आदि फसलें ली जा रही है। यह फसलें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल, कम पानी, कम पोषक तत्व तथा किसी भी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं। प्रदेश में सरकार द्वारा कृषि उत्पादन संगठनों को मोटा अनाज के उत्पादन तथा इसके प्रसंस्करण तथा उत्पाद बनाने हेतु बढ़ावा दिया जा रहा है।

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