नईदिल्ली(लाइवभारत24)। इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन (आईडीएफ) द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि कोविड-19 के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए लगाए गए प्रतिबंधों के कारण लगभग 18 लाख 50 हजार महिलाएं चाहते हुए भी गर्भपात नहीं करा पाईं। गर्भपात नहीं करा पाने के कईं कारण थे, जिनमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की सुविधाएं तथा दवाई की दुकानें आदि शामिल हैं।

इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन के सीईओ,  विनोज़ मैनिंग ने कहा, “जैसे ही कोविड-19 महामारी में बदल गया, हर किसी का पूरा ध्यान और प्रयास वायरस के नियंत्रण में लग गया, जिससे बहुत सारी स्वास्थ्य स्थितियों और उनके प्रबंधन को धक्का लगा जिसमें सुरक्षित गर्भपात भी सम्मिलित है। अधिकांश, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं और उनके कर्मचारियों का ध्यान पूरी तरह से कोविड-19 के उपचार पर केंद्रित हो गया, और निजी स्वास्थ्य सुविधाएं बंद होने से वहां गर्भपात कराने संभव नहीं था, जो कि एक समय-संवेदनशील प्रक्रिया है। यह अध्ययन इसलिए किया गया कि एक स्पष्ट तस्वीर मिल सके कि किस तरह से कोविड-19 के कारण लगाए गए प्रतिबंधों ने उन महिलाओं को प्रभावित किया जो सुरक्षित गर्भपात की सेवाएं चाहती थीं, और वे कौनसे क्षेत्र हैं, जिन्हें आने वाले दिनों में केंद्रित प्रयासों की आवश्यकता होगी।”अध्ययन लॉकडाउन शुरू होने के पहले तीन महीनों (25 मार्च से 24 जून 2020) में भारत में गर्भपात की पहुंच पर कोविड-19 के निकटवर्ती प्रभाव का आकलन करता है। अध्ययन का प्रारूप देखभाल के तीन अलग-अलग बिंदुओं; सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं, निजी स्वास्थ्य सुविधाओं और दवाई की दुकानों पर गर्भपात के लिए कम पहुंच को निर्धारित करने का प्रयास करता है। इस अध्ययन की प्रक्रिया पर बात करते हुए, इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन के डॉ. सुशांता कुमार ने बताया, “हमने टेलिफोनिक सर्वे किया और एफओजीएसआई नेतृत्व और सामाजिक विपणन संगठनों जैसे पीएसआई इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के कईं विशेषज्ञों के साथ परामर्श किया। उनसे प्राप्त आंकड़ों के सावधानीपूर्वक विश्लेषण के पश्चात, हमने निष्कर्ष निकाला है कि 39 लाख गर्भपात जो तीन महीने में हुए होते, कोविड-19 के कारण उनमें से 18 लाख 50 हजार नहीं हो पाए।” अध्ययन का अनुमान है कि लॉकडाउन 1 और 2 (25 मार्च से 3 मई) के दौरान सुरक्षित गर्भपात कराने की सुविधा सर्वाधिक प्रभावित हुई, जिससे जो महिलाएं गर्भपात कराना चाहती थीं, उनमें से 59 प्रतिशत महिलाओं तक इस सेवा की पहुंच संभव नहीं हो सकी। हालांकि, अनलॉक के पहले चरण या रिकवरी अवधि के साथ, जैसा कि एक जून से शुरू वाले अध्ययन में उल्लेखित किया गया है, स्थिति में सुधार की उम्मीद है। क्योंकि, इन 24 दिनों में जो गर्भपात नहीं हो पाए, उनका प्रतिशत घटकर 33 हो गया है।लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक नहीं पहुंच सकी, इसलिए यह बेहद जरूरी है कि सार्वजनिक और निजी दोनों स्वास्थ्य सेवाएं, इन महिलाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार हों। प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन ने कुछ प्रारंभिक सिफारिशें जारी की हैं जिनमें शामिल हैं: पहली और दूसरी तिमाही के लिए सुविधाओं का तेजी से मानचित्रण, विशेषरूप से दूसरी तिमाही में गर्भपात के लिए तैयारियों का आकलन करना, रेफरल लिंकेज़ (विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों में आपसी संपर्क, ताकि मरीज़ को उपयुक्त केंद्र के लिए निर्दिष्ट किया जा सके) में सुधार और सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी का प्रसार करना, चिकित्सीय गर्भपात के लिए उपयुक्त दवाईयों की आपूर्ति श्रृंखला को व्यवस्थित करना, और अंत में किफायदी दामों पर अतिरिक्त यात्राओं की व्यवस्था करना ताकि यह जेब पर भारी न पड़े।

इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन अन्य सहयोगियों और प्रमुख हितधारकों के साथ विचार-विमर्श आयोजित करेगा ताकि सुरक्षित गर्भपात तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सार्थक सहयोग प्रदान किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि सेवाओं की कमी के कारण किसी भी महिला के स्वास्थ्य को लंबे समय तक नुकसान न पहुंचे।जैसा कि विनोज़ मैनिंग ने मूल्यांकन करते हुए संक्षेप में बताया, “इस अध्ययन का सबसे महत्वपूर्ण भाग यह नहीं है कि 18 लाख 50 हजार महिलाएं और लड़कियों को जिन्हें गर्भपात की आवश्यकता थी, वे पिछले तीन महीनों में इस सुविधा को प्राप्त नहीं कर सकीं। यह और भी महत्वपूर्ण है कि यह अध्ययन, स्वास्थ्य केंद्रों पर गर्भपात सेवाओं में सुधार के लिए एक विशेष रूप से निर्मित और एकीकृत स्वास्थ्य लाभ योजना की आवश्यकता को रेखांकित करता है। इन 18 लाख 50 हजार महिलाओं में से कईं महिलाएं दूसरी तिमाही में गर्भपात के लिए सार्वजनिक और निजी अस्पतालों में आएंगी, और हमें दूसरी बार उन्हें वापस नहीं लौटाना चाहिए।”

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