लखनऊ(लाइवभारत24)। भारत सहित विश्वभर के अस्पतालों में गंभीर दिल के दौरों के रोगियों में लगभग 50 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इस परिदृश्य पर हृदय रोग विशेषज्ञ अलग-अलग राय रखते हैं। कुछ इसका कारण लॉकडाउन के दौरान प्रदूषण और तनाव मुक्त जीवनशैली को बताते हैं, जबकि अन्य कि राय है कि लॉकडाउन के कारण आवाजाही प्रतिबंधित होने के कारण लोगों की अस्पतालों तक पहुंचने में असमर्थता इसका कारण हो सकता है।

उत्तर भारत के एक प्रमुख हार्टकेयर इंस्टीट्यूट, मेट्रो हॉस्पिटल एंड हार्ट इंस्टीट्यूट, नोएडा के रिकार्ड से पिछली दो तिमाहियों के डेटा विश्लेषण से इसी तरह का रूझान देखा गया है। जनवरी से मार्च 2020 की तिमाही में उपचार के लिए आने वाले हृदय रोगियों की संख्या में अप्रैल-जून 2020 की तिमाही के दौरान 40 प्रतिशत की कमी आई है, जब कोरोना वायरस चरम पर है! इसी तरह का ट्रेंड पिछले साल के अप्रैल-जून 2019 की तिमाही में भी देखने को मिला था, जब हृदय से संबंधित विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार में 40-45 प्रकिशत की गिरावट आई थी, जबकि रोगियों द्वारा बड़ी संख्या में वैकल्पिक कार्डिएक प्रक्रियाएं प्लान की गईं थीं! मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के संस्थापक और अध्यक्ष डॉ. पुरूषोत्तम लाल (पद्मविभूषण) सलाह देते हैं, “जबकि दिल के दौरे के साथ अस्पताल की आपातकालीन ईकाईयों में भर्ती होने वाले रोगियों में कमी आई है, लेकिन घऱ पर कार्डिएक अरेस्ट से होने वाली मौतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह शायद उपचार को कुछ समय तक स्थगित करने और उपचार कराने जाने में देरी के कारण हो सकता है। इसलिए, इस बात पर ज़ोर देना महत्वपूर्ण है कि हृदय रोगियों को किसी भी लक्षण को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए और/या उपचार कराने में देरी नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे उनकी स्थिति और गंभीर हो जाएगी। उन्होंने आगे कहा, “लागों को इस बारे में बताने की भी जरूरत है कि कोविड-19 भी कईं मायनों में हृदय को प्रभावित करता है और आईसीएमआर सहित कईं राष्ट्रीय चिकित्सा संगठनों ने यह देखा है। इसी को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने हृदय संबंधी मामलों के प्रबंधन के लिए उपचार के प्रोटोकॉल तैयार किए हैं और जारी किए हैं। अब यह स्पष्ट है कि जो लोग पहले से ही हृदय रोगों से जूझ रहे हैं, जिन्हें पहले दिल का दौरे पड़ चुका है या जिनके हृदय की पंपिंग क्षमता (हार्ट फेलियर) कम हो चुकी है, ऐसे रोगियों में कोविड-19 के गंभीर संक्रमण के विकसित होने का खतरा अधिक होता है। उच्च रक्तचाप या मधुमेह से ग्रस्त 60 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों में इस संक्रमण से मरने का खतरा पांच गुना अधिक होता है। दूसरी ओर, कोरोना वायरस का मामूली संक्रमण भी हृदय की स्थिति को गंभीर बना सकता है, उन लोगों में भी जिनका हृदय रोग नियंत्रित है। जिसके लिए, तत्काल चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता हो सकती है। इसलिए, हृदय रोगियों को अपने आपको संक्रमण से बचाने के लिए सभी जरूरी उपाय करने चाहिए और उपचार कराने से बिल्कुल नहीं घबराना चाहिए। एक फेडरल हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार, जो लोग पहले से ही हृदय रोगों और मधुमेह जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं, वो इस महामारी के प्रकोप के पहले चार महीनों में उन स्वस्थ्य लोगों की तुलना में छह गुना अस्पताल में अधिक भर्ती हुए जो इस नोवल कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे। इनकी मृत्यु दर भी पहले से स्वस्थ्य संक्रमित लोगों की तुलना में बारह गुना अधिक थी। मेट्रो हॉस्पिटल एंड हार्ट इंस्टीट्यूट के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के निदेशक, डॉ. समीर गुप्ता इस बात पर जोर देते हैं कि, “नए अवलोकन बताते हैं कि वायरस पहले से स्वस्थ व्यक्तियों के हृदय को प्रभावित कर सकता है। वायरस शरीर में गंभीर इन्फ्लैमेटरी प्रतिक्रियाओं का कारण बन सकता है जो धमनियों को प्रभावित करता है और, थक्के बनने का खतरा भी बढ़ा सकता है। इससे दिल के दौरे पड़ सकते हैं और स्ट्रोक आ सकता हैं। कम आयुवर्ग के लोग भी इससे सुरक्षित नहीं हो सकते हैं। ”
वायरस सीधे हृदय की मांसपेशियों को भी संक्रमित कर सकता है, जिससे मायोकार्डिटिस हो जाता है, इसके कारण दिल का दौरा पड़ने का भ्रम हो सकता है। इस स्थिति में हृदय की पंपिंग क्षमता कम हो जाना, एक्यूट हार्ट फेलियर, शॉक, दिल की धड़कनें आसामान्य हो जाना और दुर्लभ मामलों में अचानक मृत्यु का कारण बन सकता है। कोविड-19 के 20-30 प्रतिशत रोगियों में हृदय की मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने के मामले देखे जा रहे हैं, जिन्हें सांस लेने में परेशानी की समस्याओं के साथ अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। कोरोना के कारण जान गंवाने वालों में लगभग 50 प्रतिशत मामले इन्हीं के हैं। ऐसे गंभीर रोगियों को अस्पताल में अत्याधुनिक उपचार और उचित देखभाल की आवश्यकता होती है। इसलिए, हम बार-बार जोर दे रहे हैं कि किसी भी स्थिति में, इन रोगियों को तत्काल देखभाल के लिए अस्पतालों में पहुंचना चाहिए।
कोविड-19 से जुड़ी अनुचित आशंकाओं और भय के कारण किसी भी हृदय रोगी को उपचार में देरी या किसी भी उपचार को स्थगित नहीं करना चाहिए। हृदय रोगियों को यह समझना चाहिए कि समय पर उपचार उनके जीवन को बचा सकता है।

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