23.2 C
New York
Sunday, 8th \ June 2025, 10:30:08 PM

Buy now

spot_img

‘आत्‍मनिर्भर भारत’ के सपने को सच करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभायेगा फार्म मेकेनाइजेशन

लखनऊ (लाइवभारत24)। जनसंख्‍या वृद्धि के साथ, खाद्य सुरक्षा और कुपोषण जैसी समस्‍याएं पूरी दुनिया और विशेष तौर पर भारत जैसी विकासशील अर्थव्‍यवस्‍थाओं के लिए गंभीर चुनौती बनी हुई हैं। यद्यपि कृषि में निवेश और तकनीकी नवाचारों के चलते पिछले कुछ दशकों में कृषि उत्‍पादकता में भारी वृद्धि हुई है, तथापि कृषि पैदावार बढ़ने की गति उतनी तेज नहीं हो पाई है जिससे उभरती चुनौतियों का सामना किया जा सके और भावी आवश्‍यकताएं पूरी की जा सकें। जीडीपी में कृषि के घटते योगदान, और कृषि श्रमबल की पर्याप्‍त उपलब्‍धता अतिरिक्‍त चुनौतियां बनी हुई हैं। हेमंत सिक्‍का, प्रेसिडेंट, फार्म इक्विपमेंट सेक्‍टर, महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड के अनुसार, देश के जीडीपी में भारतीय कृषि का लगभग 18 प्रतिशत योगदान है और वर्तमान में, यह क्षेत्र कुल रोजगार का लगभग 57 प्रतिशत उपलब्‍ध कराता है। दूसरे शब्‍दों में, भारत दुनिया की सबसे बड़ी कृषि अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक है और भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के इस महत्‍वपूर्ण क्षेत्र के टिकाऊ एवं सक्षम विकास में खेतों में यंत्रीकरण (मेकेनाइजेशन) के उपयोग की प्रमुख भूमिका है। पैदावार बढ़ाने के अलावा, फार्म मेकेनाइजेशन ने इनपुट लागत को कम करते हुए और संपूर्ण रूप से बचत प्रदान करते हुए समय से खेती, संसाधनों का सर्वोत्‍तम उपयोग भी सुनिश्चित किया है। मेकेनाइजेशन ने अत्‍यावश्‍यक रूप से कृषि पैदावार बढ़ाया है, कृषि में लगने वाले श्रम बल को कम किया है और फसली भूमि के बेहतर प्रबंधन में योगदान दिया है।

कृषि को कुशल और लाभदायक बनाने में ट्रैक्‍टर की शक्ति ने प्रमुख भूमिका निभाई है और भारत में यह कृषि शक्ति तेजी से बढ़ी है। दरअसल, पिछले 53 वर्षों में, भारत में औसत कृषि शक्ति उपलब्‍धता वर्ष 1960-61 के लगभग 0.30किलोवाट/हेक्‍टेयर से बढ़कर वर्ष 2013-14 में लगभग 2.02 किलोवाट/हेक्‍टेयर हो गयी है। हेमंत सिक्‍का,प्रेसिडेंट, फार्म इक्विपमेंट सेक्‍टर, महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड के अनुसार,

पहले ट्रैक्‍टर की मांग पूरी करने के लिए हम लगभग पूर्णत: आयातित ट्रैक्‍टर्स पर निर्भर थे, लेकिन आज अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया में व्‍हील्‍ड फार्म ट्रैक्‍टर्स का सबसे बड़ा निर्माता है। गहन शोध एवं विकास और उपयोगी नवाचारों के दम पर, भारतीय ट्रैक्‍टर उद्योग विभिन्‍न महादेशों के ग्राहकों को भी सेवा प्रदान करता है और विश्वस्‍तरीय गुणवत्‍ता एवं तद्नुकूल अनुप्रयोग उपलब्‍ध कराते हुए इस सेक्‍टर को आगे बढ़ाता है। आज भारत में 18 ट्रैक्‍टर ओईएम हैं और वर्ष 2018-19 में देश में ट्रैक्‍टर निर्माण रिकॉर्ड तरीके से बढ़कर लगभग 0.9 मिलियन यूनिट्स (निर्यात सहित) तक पहुंच गया, जो भारतीय ट्रैक्‍टर उद्योग को सही मायने में ‘आत्‍मनिर्भर’ बनाता है।

ट्रैक्‍टर्स से परे

दुनिया भर में कृषि पैदावार को बढ़ाने में फार्म मेकेनाइजेशन ने महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। अनेक अध्‍ययनों में फार्म मेकेनाइजेशन और कृषि पैदावार में वृद्धि के बीच प्रत्‍यक्ष सह-संबंध होने की बात स्‍वीकार की गयी है। कृषि यंत्रीकरण (फार्म मेकेनाइजेशन) से किसानों को कई तरह से अन्‍य आर्थिक और सामाजिक लाभ भी मिले हैं। जहां ट्रैक्‍टर एक प्रमुख मूवर है, वहीं कृषि मशीनरी मूल्‍य श्रृंखला में भूमि की तैयारी से लेकर बीज बुवाई, फसल कटाई और फसल कटाई के बाद के कार्यों से संबंधित यंत्रीकरण शामिल है। उत्‍पादन चक्र के प्रत्‍येक चरण में, कृषि यंत्र का उपयोग क्षमताएं बढ़ाने जैसे श्रम-बल समय और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसानों को कम करने का ही काम नहीं करता है बल्कि दीर्घकालिक रूप से उत्‍पादन लागत को भी कम करने में सहायता पहुंचाता है।

दुनिया के सबसे बड़े बाजारों शामिल, भारतीय ट्रैक्‍टर बाजार अत्‍यंत संगठित है। हालांकि, विकसित देशों की तुलना में भारत में यंत्रीकरण का स्‍तर निम्‍न है। और यंत्रीकरण के इस स्‍तर में क्षेत्रवार भारी अंतर है। उत्‍तर भारत के राज्‍यों जैसे कि पंजाब, हरियाणा और उत्‍तर प्रदेश में यंत्रीकरण का स्‍तर उच्‍च है क्‍योंकि वहां की जमीनें उपजाऊ हैं और वहां श्रम बल की उपलब्‍धता घट रही है।

इन राज्‍यों की सरकारों ने कृषि के यंत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर सहयोग भी दिया है। देश के पश्चिमी और दक्षिणी राज्‍यों में यंत्रीकरण का स्‍तर कम है, क्‍योंकि इन क्षेत्रों में छोटे-छोटे जोत हैं और ये जोत एक जगह न होकर काफी दूर दूर हैं। परिणामस्‍वरूप, अधिकांश स्थितियों में यंत्रीकरण खर्चीला रहा है। भारत को वृहत् परिप्रेक्ष्‍य में देखने पर पता चलता है कि यहां 85 प्रतिशत से अधिक छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास दो हेक्‍टेयर से भी कम भूमि है, लेकिन कुल फसली क्षेत्र में उनका हिस्‍सा 47.3 प्रतिशत है। खर्च, कम पैदावार और आय जैसी समस्‍याओं के चलते, ये छोटे किसान इन यंत्रीकरण तकनीकों को वहन कर पाने में असमर्थ हैं। नतीजतन, भारतीय खेतों की कुल यंत्रीकरण दर कम है।

जहां हाल के वर्षों में भारत में फार्म मेकेनाइजेशन तेजी से बढ़ा है, वहीं अभी इसे एक लंबा रास्‍ता भी तय करना है। संयुक्‍त राज्‍य और यूरोपीय देशों में कृषि पूर्णत: यंत्रीकृत है, जबकि चीन और जापान जैसे देशों में भी फार्म मशीनरी का व्‍यापक रूप से उपयोग होता है। तुलनात्‍मक दृष्टि से, भारतीय कृषि क्षेत्र अभी भी बहुत पीछे है और यहां कृषि कार्यों के लिए यंत्रों के उपयोग में भारी वृद्धि की आवश्‍यकता है।

वैश्विक रूप से, ट्रैक्‍टर इंडस्‍ट्री लगभग 60 बिलियन डॉलर की है, और फार्म मशीनरी इंडस्‍ट्री अतिरिक्‍त रूप से 100 बिलियन डॉलर की है। इसके विपरीत, भारतीय ट्रैक्‍टर इंडस्‍ट्री लगभग 6 बिलियन डॉलर की है और फार्म मशीनरी इंडस्‍ट्री मात्र 1 बिलियन डॉलर की है। इन आंकड़ों पर नजर डालने पर, यह स्‍पष्‍ट हो जाता है कि भारत ट्रैक्‍टराइज्‍ड तो है लेकिन मेकेनाइज्‍ड नहीं।

हालांकि, कुछ हद तक तो यंत्रीकरण है, लेकिन यह प्रमुख रूप से भूमि की तैयारी तक सीमित है। कई अन्‍य कार्यों के लिए, सरल कृषि यंत्रों का उपयोग किया जाता है या फिर हाथ से काम किया जाता है (रेखाचित्र 1 देखें)।

संपूर्ण कृषि समाधान

इस बात को लेकर समझ बढ़ रही है कि बेहतर पैदावार एवं गुणवत्‍ता के लिए कृषि यंत्रीकरण अत्‍यावश्‍यक है, लेकिन अब समय आ गया है कि ऐसी तकनीकें लाई जायें जो छोटे और सीमांत किसानों के लिए आवश्‍यकतानुरूप, किफायती और सुलभ हों।

भारत की कृषि मशीनरी इंडस्‍ट्री व्‍यापक रूप से निम्‍न तकनीकी इंप्लिमेंट्स पर केंद्रित है जिनका निर्माण प्रमुख रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के असंगठित वर्कशॉप्‍स में होता है। इसलिए, इन उत्‍पादों के निर्माण उद्योग में ट्रैक्‍टर इंडस्‍ट्री की तरह तेजी लाये जाने की आवश्‍यकता है ताकि ग्रामीण आय में वृद्धि के साथ इन उत्‍पादों का निर्माण बढ़े, तकनीकी विकास हो, निर्यात, फाइनेंस और रोजगार के अवसर बढ़ें।

इसे प्रभावी रूप देने के लिए, केंद्र और राज्‍य सरकारों के साथ-साथ कई प्राइवेट कंपनियां जैसे कि स्‍टार्टअप्‍स, देश के लिए आवश्‍यकतानुरूप, क्षेत्रीय रूप से भिन्‍नतापूर्ण फार्म मशीनरी और यंत्रीकरण समाधानों के विकास की दिशा में कार्य कर रही हैं। इसके चलते, आने वाले वर्षों में इस यंत्रीकरण में भारी वृद्धि होने का अनुमान है।

आगे, सीएचसी (कस्‍टम हायरिंग सेंटर्स) के जरिए विशेषीकृत फार्म मशीनरी को सस्‍ते व सुलभ तरीके से लोकप्रिय बनाया जा सकता है। इससे छोटे और सीमांत किसानों द्वारा कृषि यंत्रों का अधिक उपयोग किया जायेगा और इस प्रकार, भारत के कृषि क्षेत्र एवं इसके किसानों को ‘आत्‍मनिर्भर’ बनाने में महत्‍वपूर्ण रूप से योगदान दिया जा सकेगा।

कृषि और कृषक कल्‍याण मंत्रालय ने हाल ही में ”सीएचसी-फार्म मशीनरी” नामक बहुभाषायी मोबाइल एप्‍प लॉन्‍च किया, ताकि किसानों को उनके नजदीकी कस्‍टम हायरिंग सर्विस सेंटर्स से जोड़ा जा सके और उनके लिए यंत्रीकरण सुविधा उपलब्‍ध कराई जा सके। कई प्राइवेट कंपनियों ने भी इस दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया है। फार्म मेकेनाइजेशन के अन्‍य कारण हर देशवासी के लिए अन्‍न उपलब्‍ध कराने की परंपरागत भूमिका के अलावा, किसान, पर्यावरण के भी महत्‍वपूर्ण संरक्षक हैं।

शेष शस्‍य (फार्म रेसिड्यू) को जलाने की समस्‍या (विशेषकर उत्‍तरी बाजारों में) एक प्रमुख आर्थिक समस्‍या है जिसे हल किया जाना अत्‍यावश्‍यक है। शेष शस्‍य (फार्म रेसिड्यू) को जलाने का मुख्‍य कारण यह है कि शेष शस्‍य (फार्म रेसिड्यू) का कोई आर्थिक मूल्‍य नहीं है। लेकिन, टिकाऊ कृषि पद्धतियों में पराली जलाने की अपेक्षा शेष शस्‍य (फार्म रेसिड्यू) को कई तरह से उपयोग में लाया जा सकता है, जैसे एथेनॉल या जैव-ईंधन (डीजल के साथ इसे 25 प्रतिशत मिलाकर) का उत्‍पादन, कार्डबोर्ड बनाने में शेष शस्‍य (फार्म रेसिड्यू) का उपयोग आदि।

स्‍क्‍वायर बेलर्स जैसे विशेषीकृत फार्म मशीनरी के बारे में किसानों को बताया जाना बेहद जरूरी है जिससे कि उन्‍हें पता चल सके कि पराली जलाने की जगह उसके निपटारे के लिए अन्‍य इको-फ्रेंड्ली तरीके भी मौजूद हैं, जो उनके लिए आय के नये स्रोत बन सकते हैं। इन विशेषीकृत मशीनों को सीएचसी के जरिए भी लोकप्रिय बनाया जा सकता है।

इन सभी कारकों के साथ, भारत की फार्म मशीनरी इंडस्‍ट्री, उच्‍च विकास काल में प्रवेश के लिए तैयार है और इससे भारत में कृषि के तरीके में बदलाव आने की उम्‍मीद है। हालांकि, बदलाव की यह गति इस बात पर निर्भर करती है कि किस तरह से सभी अंशधारक (जैसे किसान, मशीनरी निर्माता, और सरकार) एक-दूसरे के साथ घनिष्‍ठतापूर्वक मिलकर काम करते हैं और नीति, योजनाओं, वित्त एवं तकनीक की दृष्टि से ऐसा उपयुक्‍त ढांचा उपलब्‍ध कराते हैं जिससे कृषि क्षेत्र का समग्र रूप से विकास हो।

Related Articles

कोई जवाब दें

कृपया अपनी कमेंट दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Stay Connected

0फॉलोवरफॉलो करें
0सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

error: Content is protected !!