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सीताराम का 56वां विवाहोत्सव,फलाहारी आश्रम, चित्रकूट….यहां भगवान श्रीराम करते हैं मां सीता की चरण पादुका की पूजा

श्री सद्गुरु जयकिशोर शरण सेवा संघ ट्रस्ट फलाहारी आश्रम, चित्रकूट में धूमधाम से मनाया गया सीताराम का 56वां विवाहोत्सव

लखनऊ (लाइव भारत 24)। माता सीता की सखियां प्रभु श्री राम संग ठिठोली और छेड़छाड़ कर रहीं हैं, तो वहीं जनवासे में भगवान राम को कलेवा खिलाया जा रहा है। एक ओर बरात में दूल्हा बनकर भगवान श्रीराम का द्वार पूजन, स्वागत कर उनकी नजर उतारी जा रही है। आरती उतारकर उनका स्वागत किया जा रहा है। ये सुंदर लीलाएं भगवान श्री राम और माता सीता के विवाहोत्सव के दौरान हजारों श्रद्धालुओं ने देखीं। चित्रकूट में श्रीराम की ऐसी ही कई सुंदर लीलाओं के साक्षी बने लाइव भारत 24 के संपादक आदेश द्विवेदी  दे रहे हैं भगवान श्री राम व माता सीता के पांच दिवसीय विवाहोत्सव की जानकारी। पेश है एक रिपोर्ट…
*भगवान राम के तिलक से शुरू हुआ पांच दिवसीय उत्सव*
चित्रकूट स्थित श्री सद्गुरु जयकिशोर शरण सेवा संघ ट्रस्ट फलाहारी आश्रम में आयोजित 56वें  माता सीता व प्रभु श्री राम  के विवाह उत्सव के पहले दिन प्रभु श्रीराम के तिलक चढ़ावन रस्म की गयी। इसमें उन्हें वस्त्र, फल, मेवे इत्यादि भेंटस्वरूप चढ़ाए गए। इस दौरान सुंदर झांकियों ने सभी का मन मोह लिया।
दूसरे दिन मटकोड़ पूजन का आयोजन किया। इस दिन सर्वप्रथ मां गंगा की पूजा-अर्चना की गई। इसके बाद माता सीता व भगवान श्रीराम की प्रतीकात्मक मूर्ति का पूजन किया गया।
*रामघाट से उठी बरात*  विवाह उत्सव के तीसरे दिन रामघाट से राम बरात उठती है। इस दौरान भगवान राम की आरती कर उनकी नजर उतारी जाती है। रामघाट पर एक ओर भगवान का आरती-पूजन हो रहा है, तो दूसरी ओर बरातियों का स्वागत सत्कार और जलपान का कार्यक्रम चल रहा है। यहां राजा दशरथ के रूप में राम बाबू और कौशल्या के रूप में शरद गुप्ता दूल्हा बने भगवान की नजर उतार रहे हैं। इसी तरह रास्ते भर भगवान श्रीराम की बरात का जगह-जगह स्वागत कर आरती उतारी जाती है।
जब बरात श्री सद्गुरु जयकिशोर शरण सेवा संघ ट्रस्ट फलाहारी आश्रम जानकीकुंड चित्रकूट पहुंचती है। यहांं जानकीकुंड नेत्र चिकित्सालय के चेयरमैन डॉ. वीके जैन पत्नी उषा जैन तथा सभी विद्यार्थी और स्टाफ के साथ सभी बरातियों का स्वागत करते हैं। आश्रम के द्वार पर एक बार फिर भगवान की आरती और नजर उतारी जाती है। इसके बाद पूरे रीति-रिवाज के साथ भगवान श्रीराम व माता सीता के फेरे और कन्यादान की रस्म होती है।
*वर-वधू का कोहैवर कुन्ज में प्रवेश* 
विवाह के बाद वर-वधू (माता सीता व श्रीराम) को ‘कोहैवर कुन्ज’ में प्रवेश कराते हैं। इसके बाद आशीर्वादी कराकर दोनों को विश्राम करा दिया जाता है।
*चरण पादुका की देवी बनाकर पूजा*
चौथे दिन माता सीता की  चप्पल (चरण पादुका) की देवी बनाकर रामजी से पूजा करायी जाती है। इस पूजा का तात्पर्य यह है कि  बिना स्त्री शक्ति के पुरुष शक्ति यानि भगवान भी अधूरे हैं। सीताजी की चरण पादुका की पूजा कर भगवान उनको सम्मान देते हैं। यहां तक कि भगवान राम ने माता सीता की परिक्रमा भी की है।
वहीं, इस दौरान सखियों की हंसी-ठिठोली भी चलती रहती है। कलेवा आदि खिलाने की रस्म और लीलाएं भी होती रहती हैं।
*होली संग विवाह संपन्न* 
पांचवें दिन धूमधाम से होली मनाई जाती है। इस दौरान फूल, अबीर  और गुलाल उड़ाया जाता है। सभी एक-दूसरे को गुलाल लगाकर विवाहोत्सव की बधाई देते हैं। होली उत्सव के साथ ही श्रीराम और मां सीता का विवाह संपन्न होता है।
*नहीं की जाती किशोरी जी विदाई*
आश्रम के महंत राम प्यारे शरण रामायणी उर्फ फलाहारी बाबा बताते हैं कि हम लोग राम विवाह कराने के बाद किशोरी जी की विदाई नहीं करते हैं। बल्कि भगवान राम को घरजंवाई बना लेते हैं।
बाबा तुलसीदास जी का दोहा सुनाते हुए कहते हैं- *चित्रकूट सब दिन बसत, प्रभु सिय लखन समेत। राम नाम जप जाप कहि, तुलसी अभिमत देत।।** अर्थात सीता और लक्ष्मण सहित प्रभु श्री राम चित्रकूट में सदा-सर्वदा निवास करते हैं। तुलसी कहते हैं कि वे
राम-नाम का जप जपने वाले को
इच्छित फल देते हैं।
*ये है पंचमी की कथा*
भगवान राम विष्णु के अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म अयोध्या नगरी के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र के रूप में हुआ था। वहीं, माता सीता राजा जनक की पुत्री थीं। कहा जाता है कि सीता जी का जन्म धरती मां के गर्भ से हुआ था। एक बार राजा जनक के राज्य में अकाल पड़ा तब राजर्षियों ने उन्हें सोने के हल से खेत जोतने की सलाह दी। जब वह हल चला रहे थे उसी समय उन्हें धरती से एक नन्ही सी कोमल कन्या मिली थी, जिसका नाम उन्होंने सीता रखा था। यही वजह है कि सीता जी को जनक नंदिनी के नाम से भी जाना जाता है
*ऐसे हुआ सीताराम विवाह*
कहा जाता है कि एक बार माता सीता ने शिव जी का धनुष उठा लिया था, जिसे परशुराम के अलावा और कोई नहीं उठा सकता था। ऐसे में राजा जनक ने यह निर्णय लिया कि जो भी शिव जी का धनुष उठा पाएगा सीता का विवाह उसी से होगा।
फिर सीता के स्वयंवर के लिए घोषणाएं कर दी गईं। भगवान राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र के साथ गए और देवी सीता के स्वयंवर में प्रतिभाग किया। वहां पर कई और राजकुमार भी आए हुए थे पर कोई भी शिव जी के धनुष को नहीं उठा सका।
वहां पर आए तमाम वीरों ने अपनी ताकत लगाई पर धनुष को जगह से हिला भी नहीं पाए, जिसके बाद गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से भगवान राम ने ऐसा कर दिखाया। जैसे ही उन्होंने शिव का धनुष उठाया उसके दो टुकड़े हो गए और वहां मौजूद हर कोई हैरान रह गया। इसके बाद विधि के अनुसार मां सीता का विवाह मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के साथ से हुआ। जिस दिन माता सीता और प्रभु राम का विवाह हुआ था, उस दिन मार्गशीर्ष माह की पंचमी तिथि थी, इसलिए हर साल इस दिन विवाह पंचमी मनाई जाती है।

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