लखनऊ(लाइवभारत24)। साल का सबसे बड़ा दिन यानि 21 जून को इस बार दुर्लभ खगोलीय घटना होगी। बता दें, रविवार, 21 जून को आषाढ़ अमावस्या को वलयाकार सूर्य ग्रहण लगेगा। इसे कंकणाकार ग्रहण भी कहते हैं। यह सूर्य ग्रहण देश के कुछ भागों में पूर्ण रूप से दिखाई देगा। लेकिन प्रयागराज में यह 78 प्रतिशत दृश्यमान होगा।

– ग्रहण का समयकाल :
ज्योतिषाचार्य आचार्य घनश्याम के अनुसार 21 जून को सूर्य ग्रहण दिन में 9:16 बजे शुरू होगा। इसका चरम दोपहर 12:10 बजे होगा। मोक्ष दोपहर में 3:04 बजे होगा।

– ग्रहण का सूतक काल :
सूतक काल 20 जून शनिवार रात 9:15 बजे से लगेगा। इसी के साथ शहर के मठ-मंदिर के पट भी बंद हो जाएंगे। सूतक के समय गृहस्थ लोगों को घर के देवी देवताओं का पूजन, यज्ञ व माला जप वर्जित होता है। केवल मौनमानसिक जप कर सकते हैं।

– भगवान का नाम जपें :
ग्रहण काल के दौरान भगवान का नाम लेने के अलावा कोई दूसरा काम न करें। जितना जप व ध्यान करेंगे वो कई गुना फल देगा। यदि एक बार मंन्त्र जपोगे तो सूक्ष्म में वो एक मंन्त्र 30 गुना जप का फल देगा। एक घण्टे का ध्यान 30 घण्टे के ध्यान का फल देगा।

– वैसे 9 दिन लग जाते हैं अनुष्ठान में, सूतक के दिन 3 घण्टे मौन मानसिक जप एक अनुष्ठान के समान फलदायी है।

– ग्रहण के सूतक काल के दौरान न मन्दिर जाएं, न ही घर के देवी देवता का स्पर्श करें। न हीं यज्ञ इत्यादि स्थूल पूजन करें। सूतक समाप्ति पर स्वयं नहाएं, देव प्रतिमा नहलाएं, घर मे गंगा जल या तुलसी मिलाकर जल छिड़कें फिर यज्ञ इत्यादि करें।

– सूर्यग्रहण में क्या करें, क्या न करें :

– सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है। श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत (5 से 10 ग्राम {एक या दो चम्मच) का स्पर्श करके ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का आठ हजार बार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्धि होने पर उस घृत को पी लें। ऐसा करने से वह मेधा (धारणशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाक् सिद्धि प्राप्त कर लेता है।

– सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं।

– ग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुन्तुद नरक में वास करता है।

– सूतक से पहले पानी में कुशा, तिल या तुलसी-पत्र डाल के रखें ताकि सूतक काल में उसे उपयोग में ला सकें। ग्रहणकाल में रखे गये पानी का उपयोग ग्रहण के बाद नहीं करना चाहिए किंतु जिन्हें यह सम्भव न हो वे उपरोक्तानुसार कुशा आदि डालकर रखे पानी को उपयोग में ला सकते हैं।

– ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियां डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए।

– ग्रहण-वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।

– ग्रहण पूरा होने पर स्नान के बाद सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर अर्घ्य दे कर भोजन करना चाहिए।

– ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं।

– ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए। ग्रहण के स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडे जल में भी दूसरे के हाथ से निकाले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ, निकाले हुए की अपेक्षा जमीन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, (साधारण) बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है।

– ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।

– ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन नहीं करना चाहिए।

– ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन आदि ये सभी कार्य वर्जित माने जाते हैं।

– ग्रहण के समय कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।

– ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए।

– भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से सूर्यग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) दस लाख गुना यदि गंगाजल पास में हो तो सूर्यग्रहण में 10 करोड़ गुना फल दायीं होता है।

– ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।

– ग्रहण के समय उपयोग किया हुआ आसन , माला ,गोमुखी ग्रहण पूरा होने के बाद गंगा जल में धो लेना चाहिए।

– ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है।

– गर्भवती महिलाएं बरतें विशेष सावधानी :

सूर्य ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को क्या सावधानी बरतनी चाहिए और क्यों?
ऐसा माना जाता है कि किसी भी ग्रहण असर सबसे ज्यादा गर्भवती महिलाओं पर होता है।
– इसका कारण है कि ग्रहण के वक्त वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा काफी ज्यादा रहती है। ज्योतिषाचार्यों द्वारा ग्रहण काल के दौरान गर्भवती स्त्रियों को घर से बाहर खुले आसमान के नीचे नहीं निकलने की सलाह दी जाती है। घर मे बैठकर मौन मानसिक जप एवं ध्यान करना चाहिए।

– बाहर निकलना जरूरी हो तो गर्भ पर चंदन और तुलसी के पत्तों का लेप कर लें। इससे ग्रहण का प्रभाव गर्भ में पल रहे शिशु पर नहीं होगा। पेट मे गाय का गोबर थोड़ा सा लगाने से भी रेडिएशन व नकारात्मक ऊर्जा रोकता है।

– गर्भवती महिलाएं ग्रहण के दौरान चाकू, छुरी, ब्लेड, कैंची जैसी काटने की किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों पर बुरा असर पड़ सकता है। इस दौरान सुई धागे का प्रयोग भी वर्जित है। धातु नकारात्मक ऊर्जा के लिए सुचालक का कार्य करता है। अतः आप ज्यों ही कोई धातु हाथ मे लेंगे वो नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करके आपके मानवीय विद्युत ऊर्जा में प्रवेश करा देगी। नकारात्मक ऊर्जा को यदि गर्भ में पल रहा बालक न सह पाया तो अपाहिज भी हो सकता है। या फिर वह मानसिक रूप से डिस्टर्ब हो सकता है।

– भोजन को लेकर बरतें सावधानी:

पका हुआ भोजन ग्रहण के दौरान क्यों नहीं खाते? इसके पीछे का आध्यात्मिक वैज्ञानिक कारण भी हैं। जिन पर ध्यान देना जरूरी है:

– श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार भोजन पकने के एक प्रहर के अंदर भोजन कर लेना चाहिए। एक प्रहर (तीन घण्टे) तक भोजन में प्राण रहता है। दूसरे प्रहर (चौथे घण्टे) से भोजन प्राणहीन होने लगता है। पाँचवे घण्टे के बाद वह प्राणहीन हो जाता है। ऐसे तामसिक प्राणहीन भोजन खाने से चर्बी तो बनती है, लेकिन प्राणऊर्जा (तेजस, ओजस, वर्चस) में भोजन नहीं बदलता।

– स्वयं जांचने के लिए तीन दिन रोज भोजन पकने के तीन घण्टे के अंदर भोजन करें और तीन दिन वही आइटम के भोजन पकने के पांच घण्टे बाद खाएं। स्वयं पाएंगे कि तीन घण्टे के भीतर जब खाया तो उन तीन दिनों में दिमाग और शरीर ऊर्जावान अधिक रहा। जबकि पांच घण्टे बाद खाने पर आलस्य और प्रमाद के साथ सुस्ती छाई।

– सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण में एक घण्टे में एक महीने के बराबर सूक्ष्म जगत में बीत जाता है। अतः जो भोजन चन्द्र या सूर्य ग्रहण से पहले पकाया था वो वस्तुतः एक महीने पुराना भोजन हो गया। अतः वह प्राणहीन भोजन नकारात्मक ऊर्जा से भर गया। अतः नहीं खाना चाहिए।

– यदि बालक, वृद्ध और रोगी को भूख लगे तो वे क्या खाएं, उनके लिए शास्त्र कहते हैं, ऐसे भोजन जो एक महीने पुराने हों तो भी खा सकते हों वो खाएं अर्थात फल। फल यदि अग्नि में उबाला या पकाया गया तो वो भी तीन घण्टे में प्राणहीन होने लगेगा। अतः फल कच्चा ही खाएं। पानी में तुलसी की पत्तियां डालकर पियें। तुलसी की पत्ती नकारात्मक ऊर्जा का शमन करती है। जल मिट्टी के बर्तन से पिये या प्लास्टिक की बोतल से पी लें।

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