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अमेरिका ने कोरोना वैक्सीन पर पेटेंट को अस्थायी तौर पर खत्म करने का किया समर्थन

वाशिंगटन (लाइवभारत24)।  गरीब और मध्यम आय वाले देशों के लिए कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में एक बड़ी उम्मीद जागी है। दरअसल, अमेरिका ने भारत और दक्षिण अफ्रीका की कोरोना वैक्सीन पर अस्थायी तौर पर पेटेंट हटाने की मांग का समर्थन किया है।
अमेरिका ने कहा है कि वो बौद्धिक संपत्ति की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन महामारी से निपटने के लिए वैक्सीन पर से पेटेंट खत्म करने की मांग का समर्थन करता है। अमेरिका के इस कदम को भारत और अन्य देशों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अगर कोरोना वैक्सीन पर से पेटेंट हटता है तो इससे न केवल वैक्सीन का उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि कीमतों में भी कमी आएगी।

पेटेंट होता क्या है?
पेटेंट एक कानूनी अधिकार है जो किसी भी तकनीक, खोज, सेवा या डिजाइन को बनाने वाली कंपनी, संस्था या व्यक्ति को दिया जाता है ताकि कोई उसकी नकल नहीं कर सके। दूसरे शब्दों में कहें तो पेटेंट किसी भी कंपनी, संस्था या व्यक्ति को एकाधिकार देता है।

इसे कोरोना वायरस की वैक्सीन के उदाहरण से ही समझते हैं। फिलहाल अमेरिका में फाइजर कोरोना की वैक्सीन बना रही है। फाइजर के पास इस वैक्सीन का पेटेंट है। अब अगर कोई दूसरी कंपनी फाइजर की ही वैक्सीन उसी फार्मूले, नाम या पैकिंग के साथ बनाना चाहे तो उसे फाइजर से अनुमति लेनी होगी। बिना अनुमति के अगर कोई कंपनी वैक्सीन बनाने लगे तो वह गैरकानूनी होगा और फाइजर उस पर मुकदमा कर सकती है।

फिलहाल दुनिया में कोरोना की जितनी भी वैक्सीन बन रही हैं उन सभी कंपनियों के पास उस वैक्सीन का पेटेंट है और उस वैक्सीन का उत्पादन केवल वही कंपनी कर सकती है। अगर वैक्सीन पर से पेटेंट हटाया जाता है तो वैक्सीन को बनाने की तकनीक दूसरी कंपनियों को भी मिल सकेगी जिससे उत्पादन बढ़ेगा। इससे वैक्सीन की कमी दूर होगी और वैक्सीन की कीमत भी कम होगी।

कोरोना से लड़ाई में सबसे ज्यादा परेशानी गरीब देशों को आ रही है। फिलहाल दुनिया में वैक्सीन के जितने भी डोज दिए गए हैं उनमें से करीब 80% डोज उच्च और मध्यम आय वाले देशों में दिए गए हैं। चूंकि वैक्सीन की कीमत ज्यादा है इसलिए गरीब देश अपने सभी नागरिकों के लिए वैक्सीन खरीदने में असमर्थ हैं। अगर वैक्सीन पर से पेटेंट हटता है तो कीमत भी कम होगी और गरीब देशों में वैक्सीन लगाई जा सकेगी।

पेटेंट पर रोक लगाने के विरोध में तर्क
भारत के इस कदम पर अमेरिका का समर्थन करना एक बड़ी जीत माना जा रहा है, लेकिन परेशानी और भी हैं। दरअसल, दुनियाभर की फार्मा कंपनियां इस कदम के विरोध में हैं। फार्मा कंपनियों के लिए यह कमाई का बड़ा मौका है। साथ ही इन कंपनियों का कहना है कि उन्होंने करोड़ों रुपए खर्च कर इन वैक्सीन को बनाया है।

अगर इन पर से पेटेंट हटा लिया जाता है तो इन कंपनियों को घाटा होगा। इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट के हिमायती लोगों का कहना है कि इससे इनोवेशन और नए आविष्कार करने वाले लोगों को धक्का लगेगा। अगर किसी आविष्कार पर पेटेंट नहीं दिया जाए तो कोई क्यों मेहनत और समय लगाकर नया आविष्कार करेगा।

समर्थन में कौन-कौन से देश?
पिछले साल अक्टूबर में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने World Trade Organization (WTO) से वैक्सीन पर से पेटेंट हटाने की मांग की थी। भारत और दक्षिण अफ्रीका की इस मांग को फिलहाल 100 से ज्यादा देश समर्थन कर रहे हैं। हाल ही में अमेरिका ने भी इस पहल का समर्थन किया है, लेकिन इससे पहले अमेरिका इस पहल के विरोध में था।

अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स (निचले सदन) के करीब 100 सदस्यों ने राष्ट्रपति जो बाइडेन को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में मांग की गई थी कि वैक्सीन से पेटेंट हटा लिया जाए। माना जा रहा है कि इसी के बाद अमेरिका ने इस पहल का समर्थन किया है।

हालांकि, बाइडेन के इस फैसले के एक दिन पहले रिपब्लिकन पार्टी के कुछ नेताओं ने पत्र लिखकर बाइडेन को पेटेंट पर से रोक नहीं हटाने की मांग की थी। अभी भी यूरोपियन यूनियन, इंग्लैंड समेत कुछ देश पेटेंट हटाने के विरोध में हैं।

भारत को क्या फायदा?
भारत भी वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है। 1 मई से सरकार ने 18 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन लगाने की घोषणा की है, लेकिन डोज की कमी की वजह से कई राज्यों ने वैक्सीन लगाने में असमर्थता जताई है। हालात ये हैं कि पहले ही दिन वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन का पोर्टल ही क्रैश हो गया। जिन लोगों ने पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करा लिया उन्हें भी वैक्सीन के डोज की कमी की वजह से अपॉइंटमेंट बुक करने में परेशानी आ रही है।

दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होने की वजह से भारत को ज्यादा डोज की जरूरत भी है। Our World in Data के मुताबिक 4 मई तक भारत की कुल आबादी के केवल 9.32% हिस्से को ही वैक्सीन का पहला डोज मिल पाया है। ऐसे में अगर वैक्सीन से पेटेंट हटता है तो भारत के लिए यह राहतभरा कदम साबित होगा।

भारत फिलहाल दूसरा सबसे संक्रमित देश है। यहां रोजाना कोरोना के 3-4 लाख केस आ रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए यह जरूरी है।

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