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पितृपक्ष: तिल के बिना अधूरा माना जाता है श्राद्ध

लखनऊ (लाइवभारत24)। देश में इस पितृपक्ष चल रहे है और आज दशमी का श्राद्ध है। मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध करने वालों को पितरों का आशीर्वाद मिलता है और श्राद्ध करने वाले व्यक्ति की मनोकामनाएं भी पूर्ण हो जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार, तिल के बिना पितरों को प्रसन्न नहीं किया जा सकता। इसलिए श्राद्ध के दौरान तर्पण और पिंडदान किया जाता है।

पद्म पुराण में कहा गया है जिस पानी में तिल होता है, वह अमृत से भी ज्यादा स्वादिष्ट हो जाता है। पुराणों में तिल को औषधि भी बताया गया है। बृहन्नारदीय पुराण में कहा गया है कि पितरकर्म में जितने तिलों का इस्तेमाल किया जाता है, उतने ही हजार सालों तक पितर स्वर्ग में रहते हैं। वायु पुराण के अनुसार, श्राद्ध में काले तिल का इस्तेमाल करने से पितर प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
गरुड़ पुराण और बृहन्नारदीय पुराण के अनुसार, जिन पूर्वजों की अचानक मृत्यु या किसी दुर्घटना में मौत हुई हो, उन्हें तिल और गंगाजल से तर्पण करने से मुक्ति मिलती है। अगर तिल के वैज्ञानिक महत्व की बात करें तो तिल में एंटीऑक्सीडेंट, कैल्शियम और कार्बोहाइड्रेट जैसे जरूरी षोषक तत्व भी होते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि के दिन होने वाले श्राद्ध को मघा श्राद्ध कहते हैं। शास्त्रों के अनसार, मघा नक्षत्र में किया जाने वाला श्राद्ध यश, पराक्रम और धन में वृद्धि करने वाला होता है। इस हो सकेे तो लोगों को इस दिन श्राद्ध जरूर करना चाहिए।

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