मुंबई (लाइवभारत24)। एस्ट्राज़ेनेका इंडिया (एस्ट्राज़ेनेका फार्मा इंडिया लिमिटेड) इस विज्ञान से प्रेरित अग्रणी बायोफार्मास्युटिकल कंपनी ने आज घोषित किया है कि उन्हें उनकी डायबिटीज की दवाई डॅपग्लीफ़्लोज़िन को भारत में स्टेज – 3 तक पहुंचे हुए मरीज़ों पर इलाज के लिए इस्तेमाल करने के मार्केटिंग अधिकार मिले हैं। इस अनुमति ने भारत में नेफ्रोलॉजिस्ट्स के लिए डॅपग्लीफ़्लोज़िन टैबलेट्स (10 एमजी) एक नयी बीमारी पर इलाज में इस्तेमाल करने का रास्ता खुल चूका है। एस्ट्राज़ेनेका का डॅपग्लीफ़्लोज़िन अपनी श्रेणी की पहली ऐसी दवाई है तो क्रोनिक किडनी डिसीज़ के पीड़ितों पर इलाज में प्रभावकारी और सुरक्षित होने के नतीजें पाए गए हैं। इस अध्ययन से पता चला है कि डॅपग्लीफ़्लोज़िन से टाइप-2 डायबिटीज के और जिन्हें डायबिटीज नहीं है ऐसे मरीज़ों में क्रोनिक किडनी डिसीज़ का बढ़ना कम करने में लक्षणीय लाभ हासिल होते हैं। डीएपीए-सीकेडी अध्ययन के प्रभाव और सुरक्षा के आधार पर 30 मार्च 2020 को वैश्विक स्तर पर यह नतीजें पाए गए हैं।
किडनी की गंभीर बीमारी (क्रोनिक किडनी डिजीज) यह एक नयी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है। 2015 के ग्लोबल डिसीज़ बर्डन रिपोर्ट के अनुसार जिन बिमारियों की वजह से सबसे ज्यादा मौतें होती हैं उनकी सूचि में सीकेडी का स्थान 12 वा था, दस सालों में मृत्यु दर 37.1 प्रतिशत बढ़ा है। यह बहुत ही चिंताजनक और लगातार गंभीर हो रही स्थिति है, इस बीमारी में किडनी ख़राब हो जाती है या काम करना बंद कर देती है। दुनिया भर के करीबन 70 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं, उनमें से कई लोगों में इस बीमारी का निदान भी नहीं किया गया है। अनुमान है कि भारत में सीकेडी की मात्रा 17.2 प्रतिशत है, जिसके अनुसार मरीज़ों की संख्या >1 बिलियन होगी। सीकेडी मरीज़ों की बढ़ती संख्या आने वाले समय में स्वास्थ्य सेवाओं और वित्तव्यवस्था दोनों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन सकती है। बढ़ता मृत्यु दर और हृदय बंद पड़ने जैसी ह्रदय की बिमारियों का बढ़ना, अकाल मृत्यु आदि सीकेडी से जुड़े हुए हैं। सीकेडी के कारण होने वाली समस्याओं पर इलाज, दवाइयां उपलब्ध हैं लेकिन गुर्दे संबंधी बिमारियों पर सीधे प्रभाव करने की क्षमता इनमें से बहुत कम दवाइयों में है।
डीएपीए-सीकेडी पहली ट्रायल है जिसमें टाइप-2 डायबिटीज वाले या जिन्हें डायबिटीज नहीं है ऐसे सीकेडी मरीज़ों में सुधारों के सहित प्रभाव पाया गया है।
एस्ट्राज़ेनेका इंडिया के मेडिकल अफेयर्स एंड रेगुलेटरी के वाईस प्रेसिडेंट डॉ. अनिल कुकरेजा ने कहा, “असंचारी बिमारियों पर नए समाधान ढूंढ़ निकालने में एस्ट्राज़ेनेका हमेशा अग्रसर रहती है। फ़िलहाल कई थेरपी उपलब्ध हैं लेकिन सीकेडी के प्रभावकारी प्रबंधन में दुनिया भर में कई अभाव महसूस किए जा रहे हैं। भारत में सीकेडी पर इलाज में डॅपग्लीफ़्लोज़िन के उपयोग को अनुमति दी जाने की वजह से पहले से प्रभावकारी टाइप-2 डायबिटीज और ह्रदय की बिमारियों पर चुनिंदा इलाज अब नेफ्रोलॉजिस्ट्स द्वारा क्रोनिक किडनी डिसीज़ पर इलाज के व्यवस्थापन में भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं। क्रोनिक किडनी डिसीज़ के प्रबंधन में अभूतपूर्व प्रभाव दर्शाने वाला डॅपग्लीफ़्लोज़िन पहला एसजीएलटी2 इन्हीबिटर है।”
भारत में डीएपीए-सीकेडी के नेशनल लीड इन्वेस्टिगेटर डॉ. दिनेश खुल्लर ने बताया, “डॅपग्लीफ़्लोज़िन इस एसजीएलटी2 इन्हीबिटर पर किए गए अनुसंधान में टाइप-2 डायबिटीज और चुनिंदा प्रकार की ह्रदय की बिमारियों पर इलाज के प्रबंधन में यह दवाई प्रभावकारी होने के पर्याप्त नतीजें पाए गए हैं। डायबिटीज के मरीज़ों और जिन्हें डायबिटीज नहीं है ऐसे मरीज़ों में भी सीकेडी का बढ़ना रोकने के लिए इसका सुरक्षापूर्वक इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत में डायबिटीज और उससे जुड़ी जटिलताओं का प्रबंधन करने में यह दवाई कई बड़े परिवर्तन ला सकती है। भारत में नियमन संस्थाओं ने इसे अनुमति दी थी यह बहुत ही अच्छी बात है, डायबिटीज के मरीज़ों और जिन्हें डायबिटीज नहीं है ऐसे मरीज़ों और जिनमें सीकेडी काफी बढ़ चुकी है ऐसे मरीज़ों के लिए भी यह लाभकारी होगा।”