मिलीभगत साबित हुई तो इस्तीफा दूंगा: गुलाम नबी
कपिल सिब्बल भी खफा

नई दिल्ली (लाइवभारत24)। कांग्रेस के अंदर सबकुछ ठीक नही चल रहा। पार्टी में जमकर कलह हो रही है… और इस बार खबर सूत्रों के हवाले से नहीं आई है, बल्कि खुद उसके आला नेता अपने बयानों से ही यह बात साबित कर दे रहे हैं। पार्टी की सबसे बड़ी संस्था कांग्रेस वर्किंग कमेटी यानी सीडब्ल्यूसी की सोमवार को जब बैठक शुरू हुई, तो सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष का पद छोड़ने की पेशकश की।
वहीं, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोनिया को भेजी गई नेताओं की चिट्ठी की टाइमिंग पर सवाल उठाए। राहुल का आरोप था कि पार्टी नेताओं ने यह सब भाजपा की मिलीभगत से किया। राहुल के इस बयान को बमुश्किल 20-25 मिनट नहीं बीते होंगे कि उनका विरोध शुरू हो गया। विरोध करने वालों में सबसे आगे थे गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल। दरअसल, करीब 15 दिन पहले पार्टी के 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्‌ठी लिखकर कहा था कि भाजपा लगातार आगे बढ़ रही है। पिछले चुनावों में युवाओं ने डटकर नरेंद्र मोदी को वोट दिए। कांग्रेस में लीडरशिप फुल टाइम होनी चाहिए और उसका असर भी दिखना चाहिए। सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश करते हुए कहा कि मुझे रिप्लेस करने की प्रक्रिया शुरू करें। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस दौरान, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने उनसे पद पर बने रहने को कहा।
बीते दिनों पार्टी नेतृत्व में बदलाव को लेकर कांग्रेस नेताओं की चिट्ठी पर राहुल गांधी ने नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि जब सोनिया गांधी हॉस्पिटल में भर्ती थीं, उस वक्त पार्टी लीडरशिप को लेकर लेटर क्यों भेजा गया। पार्टी लीडरशिप में बदलाव की मांग का लेटर भाजपा की मिलीभगत से लिखा गया। ‘भाजपा से मिलीभगत’ के राहुल के आरोपों पर विवाद हो गया। बमुश्किल 20-25 मिनट के अंदर पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया कि हमने राजस्थान हाईकोर्ट में कांग्रेस पार्टी का केस कामयाबी के साथ लड़ा। बीते 30 साल में कभी भी, किसी भी मुद्दे पर भाजपा के पक्ष में बयान नहीं दिया। फिर भी हम भाजपा के साथ मिलीभगत में हैं? थोड़ी ही देर में राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि अगर भाजपा से मिलीभगत होने के राहुल गांधी के आरोप साबित हुए तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। राहुल गांधी पहले ही पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था। तब सोनिया ने अगस्त में एक साल के लिए अंतरिम अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली। मध्यप्रदेश के मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए कई योग्य उम्मीदवार हैं। इनमें राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, रेहान वाड्रा और मिराया वाड्रा शामिल हैं। कार्यकर्ताओं को समझना चाहिए कि कांग्रेस उस स्कूल की तरह है, जहां सिर्फ हेडमास्टर के बच्चे ही क्लास में टॉप आते हैं। सोमवार सुबह दिल्ली स्थित पार्टी के मुख्यालय के बाहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। कहा कि गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष बना तो पार्टी टूट जाएगी।
सोमवार सुबह दिल्ली स्थित पार्टी के मुख्यालय के बाहर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। कहा कि गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष बना तो पार्टी टूट जाएगी।
1. पार्टी का जनाधार कम हो रहा: 2014 के चुनाव में सोनिया गांधी अध्यक्ष थीं। इस चुनाव में कांग्रेस को अपने इतिहास की सबसे कम 44 सीटें ही मिल सकीं। 2019 के चुनाव के दौरान राहुल गांधी अध्यक्ष थे। पार्टी सिर्फ 52 सीटें ही जीत सकी।
2. कैडर कमजोर हुआ: देश में कांग्रेस का कैडर कमजोर हुआ है। 2010 तक पार्टी के सदस्यों की संख्या जहां चार करोड़ थी, वहीं, अब यह लगभग एक करोड़ से कम रह गई। मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और मणिपुर समेत अन्य राज्यों में कांग्रेस में नेताओं की खींचतान का असर पार्टी के कार्यकर्ताओं पर पड़ा है।
3. कांग्रेस की 6 राज्यों में सरकार: कांग्रेस की सरकार छत्तीसगढ़, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, झारखंड और महाराष्ट्र में बची। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावत के बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई।
राहुल के पक्ष में सलमान खुर्शीद ने रविवार को कहा, ‘आंतरिक चुनावों की बजाय सबकी सहमति देखी जानी चाहिए। राहुल को कार्यकर्ताओं का पूरा समर्थन है।’ पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कहा कि फिलहाल गांधी परिवार को ही पार्टी की बागडोर संभालनी चाहिए। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी राहुल गांधी में भरोसा जताया। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि राहुल को आगे आना चाहिए और पार्टी का नेतृत्व करना चाहिए।
पार्टी में बदलाव के पक्ष में गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी और शशि थरूर समेत 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में बड़े बदलाव पर जोर दिया। इन्होंने कहा- लीडरशिप फुल टाइम (पूर्णकालिक) और प्रभावी हो, जो कि फील्ड में एक्टिव रहे। उसका असर भी दिखे। कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चुनाव करवाए जाएं। इंस्टीट्यूशनल लीडरशिप मैकेनिज्म तुरंत बने, ताकि पार्टी में फिर से जोश भरने के लिए गाइडेंस मिल सके।

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