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लॉकडाउन के दौरान अवसाद व आत्महत्या के मामलों में आयी तेजी

लखनऊ(लाइवभारत24)। लॉकडाउन के दौरान अवसाद और आत्महत्या के मामलों में वृद्धी देखी गई है। लेकिन जैसा कि अनलॉकिंग शुरू हो गई है, तो यह बहुत आवश्यक है कि कोविड-19 के संक्रमण के इस दौर में अनलॉकिंग के विभिन्न चरणों के दौरान शारीरिक और मानसिक रूप से कैसे अनुकूलित हुआ जाए; तनाव का प्रबंधन कैसे करें; लॉकडाउन के पूरी तरह समाप्त होने के पश्चात जीवन को किस तरह से नए रूप में सामान्य बनाया जाए, इस पर जागरूकता फैलाना जरूरी है। इसके साथ ही अपने प्रतिकूलता के अनुपात को कैसे बढ़ाया जाए, ताकि लॉकडाउन का दौर समाप्त होने के बाद भी अवसाद, और उसके चलते होने वाले आत्महत्या के मामलों से बचा जा सके। यही कुछ ज्वलंत मुद्दे हैं, जिन्हें 18 जून 2020 को आयोजित किए गए हील – तुम्हारा सम्वाद के दौरान संबोधित किया गया।
हील:तुम्हारा सम्वाद को संबोधित करते हुए और प्रतिकूलता के अनुपात के महत्व पर प्रतिक्रिया देते हुए इंस्टीट्यूट ऑफ बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज़ के निदेशक डॉ. निमेश जी. देसाई ने कहा, “एडवर्सिटी क्वाशेंट (एक्यु) यानि प्रतिकूलता का अनुपात यह देखने का एक उपाय है कि कोई व्यक्ति कैसे प्रतिक्रिया देता है या व्यवहार करता है, जब उसे जीवन में विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए हमें मजबूत, स्मार्ट और भावनात्मक रूप से लचीला होने की आवश्यकता पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आत्महत्या और अवसाद के मामलों को कम करने के लिए लॉकडाउन के बाद भी एक मजबूत प्रतिकूलता अनुपात की आवश्यकता होगी। हम अवसादग्रस्त व्यक्ति को भावनात्मक संबल देकर आत्महत्या करने से बचा सकते हैं। अगर हमारा एक्यु मजबूत है तो हम तनाव के स्तर का भी बेहतर तरीके से प्रबंधन कर सकते हैं।”उन्होंने आगे कहा, “हो सकता है सुशांत सिंह राजपूत के मामले में यह सौ प्रतिशत सही न हो लेकिन जहां तक नियत समय पर अपनी दवाईयां लेने की बात है, आमतौर पर, हमने बहुत सारे मनोरोगियों में यह प्रवृत्ति देखी है, जो अपनी निर्धारित दवाओं को लेना बंद कर देते हैं। विशेषज्ञों और डॉक्टरों द्वारा दी गई दवाईयां निर्धारित समय और अवधि तक न लेने के परिणामस्वरूप मानसिक स्वास्थ्य का प्रबंधन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता, जो आत्महत्या की प्रवृत्तियों का कारण बन सकता है।”
स्वस्थ शरीर और मस्तिष्क के लिए सही प्रकार के भोजन के महत्व पर विचार व्यक्त करते हुए, मैक्स मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल की कंसल्टेंट न्युट्रीशनिस्ट मंजरी चंद्रा ने कहा, “हालांकि, कोविड-19 का डर अभी भी काफी बड़ा है, फिर भी घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि सतर्क रहें और उचित भोजन का सेवन करें, जिसमें स्वदेशी खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में हों। स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं, नियमित रूप से व्यायाम करें और घर पर पके हुए खाद्य पदार्थों का सेवन करने पर ध्यानकेंद्रित करना ही स्वस्थ रहने की कुंजी है। हमें थोड़े-थोड़े समय/नियमित अंतराल पर उपवास रखने चाहिए, जिसका पालन भारतीय लोग अनंतकाल से करते आ रहे हैं और हमारे यहां घर पर ही साफ-सफाई से खाना बनाने की प्राचीन परंपरा रही है। यही हमेशा स्वस्थ रहने का असली मंत्र है।”
महाभारत में वर्णित भागवत गीता से अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण के मध्य सम्वाद (संवाद) का उल्लेख करते हुए तथा इसके महत्व के बारे में जानकारी देते हुए, आईसीसीआईडीडी के अध्यक्ष और पूर्व विभाध्यक्ष, सामुदायिक चिकित्सा, एम्स, डॉ. सी.एस. पांडव ने कहा, “सम्वाद (संवाद), शिक्षा का एक माध्यम है, जो लोगों को व्यापक रूप से संदेशों को सीखने और उनका प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोविड-19 महामारी के बारे में अत्यधिक गलत जानकारियां फैलाई जा रही हैं। अब हम भय की महामारी, दुःख की महामारी और प्रवासियों की महामारी में प्रवेश कर रहे हैं। शारीरिक प्रतिरक्षा बढ़ाने के साथ हमें इस महामारी का सामना करने और इससे लड़ने के लिए अपनी सामाजिक और आर्थिक प्रतिरक्षा में सुधार करना होगा। और हमें अपने स्वास्थ्यकर्मियों – डॉक्टरों, नर्सों और पुलिसकर्मियों को सम्मान देना चाहिए, जो इस महामारी से लोगों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।”

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