· महामारी के कारण अस्पताल जाने के बजाय मरीजों ने थेरेपी ऑन डिमांड का तरीका अपनाया
· फैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी तक पहुंच, नियमित जांच और फिजियोथेरेपी से बच्चों और बड़ों को बेहतर जिंदगी जीने में मिलती है मदद
· भारत में हीमोफीलिया के 20,000 से ज्यादा रजिस्टर्ड मरीज हैं, अनरजिस्टर्ड मरीजों की संख्या कहीं ज्यादा
लखनऊ (लाइवभारत24)। दुनिया इस समय महामारी के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। कोई देश इस संकट से अछूता नहीं है, भारत भी नहीं। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों का पूरा ध्यान, सभी संसाधन एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर तेजी से कोविड-19 के मरीजों की देखरेख करने में लगे हैं, जिस कारण से कोविड से इतर जैसे हीमोफीलिया आदि के मरीजों पर ध्यान कम हुआ है। मरीजों के बीच बीमारी के बारे में कम जागरूकता और विशेषज्ञों तक पर्याप्त पहुंच नहीं होना कुछ ऐसे कारक हैं, जिनसे हीमोफीलिया मरीजों की स्थिति और संकटग्रस्त हुई है। हीमोफीलिया के मरीजों में कोरोना का संक्रमण गंभीर होने का खतरा रहता है, जिस कारण से इस चुनौतीपूर्ण समय में हीमोफीलिया के मरीजों के लिए इलाज पाना और कठिन हो गया है, क्योंकि उनमें कोरोना वायरस के संक्रमण में आने का डर लगातार बना रहता है। हीमोफीलिया के इलाज के लिए जरूरी फैक्टर अस्पताल में उपलब्ध हैं, लेकिन कोरोना वायरस महामारी के कारण मरीज इलाज के लिए अस्पताल जाने में डर रहे हैं। हीमोफीलिया के मरीज सामान्य जीवन जी सकें, इसके लिए समय पर जांच, पर्याप्त इलाज और फिजियोथेरेपी बहुत जरूरी है।
संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ की प्रोफेसर एवं हेड ऑफ डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स, एमडी (पीडियाट्रिक्स), डीएम (मेडिकल जेनेटिक्स) डॉ. शुभा फड़के ने कहा, ‘भारत में हीमोफीलिया के इलाज में पिछले कुछ वर्षों में अच्छी प्रगति हुई है। महामारी के मौजूदा हालात में अस्पताल आने वाले हीमोफीलिया मरीजों की संख्या कम हुई है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ डॉक्टरों की मदद से हम कोविड-19 के इस दौर में भी हम सेवा देने में तत्पर हैं। रक्तस्राव के कई मामले अस्पताल में भर्ती होकर ही ठीक हो पाते हैं। कई मरीजों ने सेल्फ इंफ्यूजन भी सीख लिया है। लेकिन कोरोना के इस समय में प्रोफिलेक्सिस या कम से कम होम थेरेपी की जरूरत बढ़ गई है। मैं मरीजों को सुझाव देती हूं कि जोड़ों पर रक्तस्राव से बचें, साथ ही खुद को कोरोना से भी बचाकर रखें।’
सुपर स्पेशियलिटी पीडियाट्रिक हॉस्पिटल एंड पीजी टीचिंग इंस्टीट्यूट, नोएडा में डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक हेमैटोलॉजी ओंकोलॉजी की असिस्टेंट प्रोफेसरडॉ. नीता राधाकृष्णन ने कहा, ‘हम हीमोफीलिया के मरीजों और उनके परिजनों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और उन्हें पर्याप्त इलाज पाने में मदद कर रहे हैं, क्योंकि कोविड-19 के कारण दिल्ली एनसीआर में हीमोफीलिया का इलाज देने वाले कई सेंटर बंद हैं। मैं हीमोफीलिया के मरीजों को लगातार ट्रीटमेंट सेंटर के संपर्क में रहने का सुझाव देती हूं, ताकि रक्तस्राव की स्थिति को सही तरीके से संभाला जा सके। साथ ही उन्हें कोविड के संक्रमण से बचने के सुझाव भी दिए जा रहे हैं। यह मुश्किल वक्त है और सब लोगों के साथ से ही इससे पार पाया जा सकता है।’
निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सर्विसेज, हैदराबाद में पैथोलॉजिस्ट की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राधिका कनकरत्ना ने कहा, ‘मौजूदा महामारी ने हीमोफीलिया की मरीज के देखरेख के तरीके को कुछ बदल दिया है। अस्पताल आने वाले हीमोफीलिया मरीजों की संख्या बहुत कम हो कई और हर महीने केवल 5 से 6 मरीज आ रहे हैं। जांच केंद्र काम कर रहा है, लेकिन फैक्टर सपोर्ट की कमी के कारण नियमित प्रोफिलेक्सिस अस्थायी तौर पर रुकी हुई है। हीमोफीलिया के मरीजों में भी आम लोगों की ही तरह कोरोना के संक्रमण में आने का खतरा रहता है, इसलिए उन्हें सभी सावधानियां बरतने और घावों से बचने की दिशा में ज्यादा सजग रहने का सुझाव है, क्योंकि उनमें खतरा ज्यादा है, खासकर रक्तस्राव का खतरा।’
फैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी और फिजियोथेरेपी तक आसान पहुंच से हीमोफीलिया के मरीज, विशेषतौर पर बच्चे रक्त संबंधी इस जानलेवा विकार से लड़ सकते हैं। जरूरी जानकारी नहीं होने और इलाज नहीं मिल पाने के कारण हीमोफीलिया से जान जाने का खतरा बहुत ज्यादा रहता है। उन्होंने सरकारी केंद्रों में जांच सुविध, फैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी और फिजियोथेरेपी की उपलब्धता सुनिश्चित करने मं सरकार के सहयोग पर भी जोर दिया।
हीमोफीलिया क्या है?
हीमोफीलिया खून से जुड़ा एक आनुवंशिक जेनेटिक विकार है, जिसमें शरीर में खून का थक्का जमने की क्षमता खत्म हो जाती है। इस दुर्लभ बीमारी के शिकार व्यक्ति में खून सामान्य लोगों की तुलना में तेजी से नहीं बहता है, लेकिन ज्यादा देर तक बहता रहता है। उनके खून में थक्का जमाने वाले कारक (क्लोटिंग फैक्टर) पर्याप्त नहीं होते हैं। क्लोटिंग फैक्टर खून में पाया जाने वाला एक प्रोटीन है, जो चोट लगने की स्थिति में खून को बहने से रोकता है। यह एक गंभीर बीमारी है, जिसमें ज्यादा खून बहने के कारण मरीज की जान भी जा सकती है। बीमारी के बारे में जागरूकता और सही प्रबंधन के जरिये इसके मरीजों तक पर्याप्त उपचार पहुंचाना और उनका जीवन बचाना संभव हो सकता है। हीमोफीलिया प्रायः दो प्रकार का होता है, पहला हीमोफीलिया ए और दूसरा हीमोफीलिया बी। हीमोफीलिया का सबसे सामान्य प्रकार हीमोफीलिया ए है। इस बीमारी में मरीज के शरीर में क्लोटिंग फैक्टर-8 पर्याप्त नहीं होता है। वहीं हीमोफीलिया बी के मरीज ज्यादा नहीं पाए जाते। इसके मरीजों में फैक्टर-9 की पर्याप्त मात्रा नहीं होती है। हालांकि परिणाम दोनों ही स्थितियों में एक जैसा होता है और मरीज में चोट लगने की स्थिति में खून सामान्य से ज्यादा समय तक बहता रहता है।
लक्षण
हीमोफीलिया ए और बी के लक्षण समान होते हैं : बड़े खरोंच के निशान; कटने, दांत टूटने या सर्जरी के बाद सामान्य से ज्यादा समय तक खून बहना; बिना किसी स्पष्ट कारण के अचानक शरीर में कहीं रक्तस्राव होने लगना; मांसपेशियों और जोड़ों में रक्तस्राव। जोड़ों और मांसपेशियों में रक्तस्राव से जोड़ों में सूजन, दर्द और सख्ती आ जाती है और मरीज को जोड़ों या मांसपेशियों के प्रयोग में परेशानी होती है।
उपचार
वर्तमान समय में हीमोफीलिया के लिए उपलब्ध उपचार बहुत प्रभावी है। सुई के जरिये खून में वह क्लोटिंग फैक्टर पहुंचाया जाता है, जिसकी कमी है। चोट की जगह पर पर्याप्त क्लोटिंग फैक्टर के पहुंचते ही खून बहना बंद हो जाता है। रक्तस्राव का जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी इलाज करना चाहिए। जल्दी इलाज से दर्द कम करने और जोड़ों, मांसपेशियों और अंगों को होने वाले नुकसान को कम करने में मदद मिलती है। अगर रक्तस्राव का इलाज जल्द किया जाए जो इसे रोकने के लिए कम ब्लड प्रोडक्ट की जरूरत पड़ती है।
हीमोफीलिया का इलाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन प्रोफिलेक्सिस उपचार के जरिये मरीज सामान्य जीवन जीने में सक्षम हो सकता है। इसके तहत नियमित समय पर मरीज के शरीर में क्लोटिंग फैक्टर रिप्लेसमेंट कराते रहना चाहिए, जिससे चोट या अन्य स्थिति में आसानी से खून का थक्का जम सके। यह उपचार रक्तस्राव और जोड़ों को खराब होने से बचाता है, जिससे हीमोफीलिया से ग्रसित बच्चे अन्य कामों के साथ-साथ ज्यादा सक्रिय जीवन जी पाते हैं, स्कूल जा पाते हैं और बाहर जाकर खेल पाते हैं। साथ ही, अन्य सामान्य बच्चों की तरह ही जीवन जीने में सक्षम हो पाते हैं।
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