कोविड महामारी के कारण छोटे खुदरा दुकानदार पहले से ही संकट का सामना कर रहे हैं और ऐसे में यह नया संकट उनके परिवारों को बरबाद कर देगा

· उत्तरप्रदेशमें करीब 10 लाख छोटे खुदरा दुकानकारों की आय छिन जाएगी और उन्हें उत्पीड़न का शिकार होना पड़ेगा

· भारत में पहले से ही दुनिया का सख्त तंबाकू नियमन है और महामारी के इस दौर में एक और झटका बहुत असंवेदनशील होगा

लखनऊ (लाइवभारत24)।  फेडरेशन ऑफ रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफआरएआई) ने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने एवं सीओटीपीए कानून 2020 में प्रस्तावित संशोधनों को वापस लेने का आदेश देने की अपील की। इन नए संशोधनों से पूरे भारत में तंबाकू एवं अन्य संबंधित उत्पाद बेचने वाले छोटे खुदरा दुकानदारों की आजीविका पर दोहरा आघात लगेगा। एफआरएआई देशभर के चार करोड़ सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम दुकानदारों का प्रतिनिधि संगठन है और इसके सदस्य संगठनों के तौर पर उत्तर, दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम के कुल 34 रिटेल एसोसिएशन जुड़े हैं। एफआरएआई की उत्तरप्रदेश इकाई ने आज विरोध प्रदर्शन किया और  मुख्यमंत्री योगीआदित्यनाथ से उत्तरप्रदेश में कई रोजमर्रा की चीजें बेचकर अपने परिवार को चलाने वाले करीब 10 लाख छोटे खुदरा दुकानदारों व उनके 60 लाख आश्रितों के हितों एवं उनकी आजीविका की रक्षा करने और उन्हें संभावित उत्पीड़न से बचाने की अपील की।

एफआरएआई देश के सबसे गरीब तबके के हितों का प्रतिनिधित्व करता है और उनके रोजगार के अवसरों पर प्रभाव डालने वाले मुद्दे उठाता है, साथ ही अपना पक्ष रखने में अक्षम वर्ग की आवाज को सरकार के समक्ष लाने में मदद करता है। एफआरएआई के सदस्य आसपास के आम लोगों की रोजाना की जरूरत की चीजों जैसे बिस्कुट, सॉफ्ट ड्रिंक, मिनरल वाटर, सिगरेट, बीड़ी, पान आदि की बिक्री कर अपनी आजीविका चलाते हैं। इन जरूरी चीजों की बिक्री से इन छोटे दुकानदारों को होने वाला मुनाफा बमुश्किल 15,000 रुपया प्रतिमाह तक पहुंचता है, जो उनके परिवार के सदस्यों के लिए रोज दो वक्त के भोजन के लिए ही पर्याप्त हो पाता है।

कोरोना वायरस के कारण लगाए लॉकडाउन और आर्थिक मंदी ने छोटे खुदरा दुकानदारों की आर्थिक स्थिति को नुकसान पहुंचाया है और ऐसे में उनकी कारोबारी गतिविधियों को प्रभावित करने वाली कोई भी नीति उनके लिए तबाही लाने वाली होगी। एफआरएआई और देशभर से इसके सदस्य संगठन स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा सीओटीपीए विधेयक 2020 में प्रस्तावित अलोकतांत्रिक संशोधन से परेशान हैं, जिसमें खुली सिगरेट बेचने पर रोक लगाने की बात है। इसमें 21 साल से कम उम्र के लोगों को सिगरेट उत्पाद बेचने पर रोक और दुकान में विज्ञापन व प्रमोशन को नियंत्रित करने समेत कई प्रावधान भी हैं। इन सभी संशोधनों का उद्देश्य बड़े रिटेलर्स को कोई नुकसान पहुंचाए बिना छोटे खुदरा दुकानदारों को नष्ट कर देना ही जान पड़ता है।

इस मसले पर फेडरेशन ऑफ रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सदस्य और उत्तरप्रदेश पानऔर तंबाकू उत्पाद विक्रेता संघ के प्रेसिडेंट  कमलेश चौरसिया ने कहा, ‘हम नम्रता के साथ माननीय प्रधानमंत्री से अपील करते हैं कि संबंधित मंत्रालय को तत्काल निर्देश दें कि प्रस्तावित सीओटीपीए संशोधन को वापस लिया जाए क्योंकि ये संशोधन बहुत सख्त हैं। खुली सिगरेट बेचने जैसे कारोबार के पुराने तरीकों को संज्ञेय अपराध बनाने और छोटे-छोटे उल्लंघन के लिए 7 साल की कैद जैसे प्रावधान से लगता है कि छोटे व्यापारी जघन्य अपराधी हैं। जबरन वसूली या खतरनाक ड्राइविंग, जिससे जान भी जा सकती है, उसके लिए 2 साल के कारावास की सजा है, उसकी तुलना में यह प्रस्तावित सजा बहुत ही ज्यादा है। सजा का यह प्रावधान पान, बीड़ी और सिगरेट बेचने वालों को किसी पर तेजाब फेंकने वाले या लापरवाही से किसी की जान लेने वाले अपराधियों की श्रेणी में खड़ा कर देता है।संशोधनों का मसौदा तैयार करने वाला कोई व्यक्ति दो वक्त की रोटी कमाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे गरीब, हाशिए पर जी रहे लोगों के प्रति इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है?”

चौरसियाने आगे कहा, ‘पहले से ही भारत में तंबाकू नियंत्रण को लेकर दुनिया के सबसे सख्त कानून हैं, जिस कारण से वैध तंबाकू की खपत में गिरावट आई है। वर्तमान कानूनों ने केवल अवैध और तस्करी कर लाए हुए सिगरेट को बढ़ावा दिया, जिससे असामाजिक तत्वों को फायदा हुआ। तब फिर आखिर कोरोना वायरस, मधुमेह, मोटापा, मानसिक स्वास्थ्यऔर बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियां आदि जैसे जानलेवा खतरों से लड़ने के बजाय तंबाकू नियंत्रण के लिए अतिरिक्त सख्त कदम क्यों ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। कोरोना वायरस से इतर इस तरह के नीतिगत बदलाव पूरी तरह से हमारे नीति निर्माताओं के हाथ में हैं और इनके मामले में मानवीय संवेदना का ध्यान रखा जाना चाहिए। आजहम पीड़ित और एक समुदाय के रूप में निशाना बनाए गए महसूस करते हैं और मोदी जी से दया की विनती करते हैं।’

किसी शैक्षणिक संस्थान से 100 गज की दूरी में तंबाकू उत्पाद बेचने पर रोक थी और इस दायरे को अब बढ़ाकर 100 मीटर कर दिया गया है। फेडरेशन ऑफ रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के संयुक्त सचिव, गुलाब चंद खोड़ा ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा, ‘हमारे सदस्य अपने ग्राहकों को उनकी जरूरत के मुताबिक, विभिन्न उत्पाद बेचते हैं। हमारे सदस्यों द्वारा बेचे जाने वाले उत्पादों में सिगरेट और बीड़ी जैसे तंबाकू उत्पाद भी शामिल हैं। कानून के अनुसार, हम नाबालिगों को तम्बाकू उत्पाद नहीं बेचते हैं। भीड़भाड़ वाले और बड़ी आबादी वाले शहरों मेंइस तरह का प्रतिबंध अव्यावहारिक है। छोटे खुदरा विक्रेताओं के पास अपनी आजीविका का कोई साधन नहीं बचेगा और उन्हें अपनी दुकान वहां से हटानी पड़ेगी। इतना ही नहीं, अगर 100 मीटर के दायरे में कोई और शैक्षणिक संस्थान खुल गया तो उन्हें फिर अपनी दुकान हटाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।’

सुझाए गए संशोधन में 21 वर्ष से कम आयु के लोगों को तंबाकू उत्पाद बेचने पर प्रतिबंध की बात है (पहले यह 18 वर्ष था)। भारत मेंएक 18 वर्षीय व्यक्ति अपनी पसंद की सरकार चुनने के लिए अपना वोट डाल सकता है, ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त कर सकता है। लेकिन वही व्यक्ति वैध रूप से बिक रहे तंबाकू उत्पाद खरीदने के मामले में अपनी पसंद पूरी नहीं कर सकता है। मौजूदा कानून पहले से ही नाबालिगों को सिगरेट बेचना प्रतिबंधित करता है, इसलिए इस तरह की चिंता का कोई कारण नहीं है कि कोई ऐसा व्यक्ति इन तंबाकू उत्पादों को खरीद लेगा, जो इनके असर को नहीं समझता है।

छोटे खुदरा दुकानदार प्रस्तावित संशोधन के तहत लाइसेंसिंग में छूट का भी अनुरोध करते हैं। एक गरीब और अशिक्षित छोटा दुकानदार जो मुश्किल से एक दिन में दो वक्त के भोजन का प्रबंध कर पाता है, उसे लाइसेंस प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना होगा और इतना ही नहीं, हर साल इसे नवीनीकृत करने के लिए भी संघर्ष करना होगा। प्रशासनिक नियंत्रण की आड़ में लगातार उत्पीड़न बढ़ेगा। इससे न केवल व्यापार करने की लागत बढ़ेगी, बल्कि इससे देश के लाखों छोटे दुकानदारों के उत्पीड़न और भ्रष्टाचार को बढ़ावा भी मिलेगा।

एफआरएआई का मानना है कि विदेशी कंपनियों के लिए काम करने वाले कुछ गैर सरकारी संगठन छोटे दुकानदारों के खिलाफ अनुचित और लागू नहीं किए जा सकने वाले कानूनों को प्रभावी करने के लिए सरकार पर लगातार दबाव बना रहे हैं। ये नीतियां छोटे खुदरा विक्रेताओं के कारोबार की कीमत पर बड़ी विदेशी और ई-कॉमर्स कंपनियों की मदद कर रही हैं।

एफआरएआई और इसके सदस्य भारत सरकार से व्यावहारिक और न्यायसंगत होने का अनुरोध करते हैं, विशेष रूप से समाज के सबसे पिछड़े सामाजिक-आर्थिक वर्ग के लिए, जो पहले से ही दो वक्त की जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम अनुरोध करते हैं कि व्यापार करने और आजीविका चलाने के हमारे अधिकार पर ऐसे सख्त एवं अव्यावहारिक प्रतिबंध नहीं लगाए जाएं।

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