कोरोना के तीन टेस्ट प्रमुख हैं- पीसीआर टेस्ट, सेरोलॉजिकल टेस्ट(ELISA) और एंटीजन टेस्ट

नई दिल्ली (लाइवभारत24)। कोरोना माहमारी के बीच हम सब की जिंदगी के करीब 7 महीने गुजर गए हैं। इतने वक्त के बाद भी अभी तक संक्रमितों के असल संख्या का पता नहीं चल सका है। इसका बड़ा कारण कम टेस्टिंग को भी माना जा रहा है। कई राष्ट्र धीमी टेस्टिंग के कारण आलोचना का भी सामना कर रहे हैं। इंसान में कोरोनावायरस का पता करने के लिए कई टेस्ट होते हैं, लेकिन इनमें तीन टेस्ट प्रमुख हैं- पीसीआर टेस्ट, सेरोलॉजिकल टेस्ट(ELISA) और एंटीजन टेस्ट।

पीसीआर टेस्ट

इस टेस्ट की मदद से किसी व्यक्ति में संक्रमण और संक्रमण फैलाने की ताकत का पता किया जाता है। यह टेस्ट पॉलीमरेज चेन रिएक्शन(PCR) पर आधारित होता है। कथित आइसोथर्मल डीएनए एम्प्लिफिकेशन टेस्ट भी पीसीआर टेस्ट की तरह ही काम करते हैं।
इन दोनों मामलों में कॉटन की मदद से मरीज के गले से सलाइवा (लार) को निकाला जाता है। इसके बाद जैनेटिक मटेरियल के निश्चित हिस्से को सैंपल से कई स्टेप्स में गुणा किया जाता है। आखिर में एगारोज जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस नाम की बायो कैमिकल मैथड का इस्तेमाल कर पता लगाया जाता है कि सैंपल में वायरल जैनेटिक मटेरियल है या नहीं।
अगर जैनेटिक मटेरियल मिल जाता है तो मरीज को संक्रमित मान लिया जाता है। अगर मटेरियल नहीं मिलता तो भी यह जरूरी नहीं है कि व्यक्ति संक्रमित नहीं है। हो सकता है कि वायरस सैंपल में नहीं था, लेकिन शरीर में कहीं भी हो सकता है।
इससे यह बात समझने में भी मदद मिलती है कि ऐसे मरीज जिन्हें मान लिया गया था कि वे कोविड 19 से ठीक हो चुके हैं, लेकिन बाद में पीसीआर टेस्ट में फिर पॉजिटिव आ गए। हो सकता है कि इन मामलों में वायरस मरीज के शरीर में मौजूद रहा, लेकिन मरीज के ठीक होने की घोषणा किए जाने से पहले टेस्ट में नहीं मिला। एंटीबॉडी टेस्ट के पॉजिटिव आने का मतलब यह हो सकता है कि व्यक्ति को कोरोनावायरस संक्रमण हो चुका है, लेकिन यह जरूरी नहीं है।

पीसीआर रैपिड टेस्ट

पारंपरिक पीसीआर टेस्ट लैब में होते हैं। इनमें ज्यादातर टेस्ट हाई-थ्रोपुट स्क्रीनिंग से होते हैं, जिसमें हजारों सैंपल की जांच एक साथ होती है। आमतौर पर यह प्रक्रिया रिजल्ट देने में घंटों लगाती है और मरीजों को आधे या कुछ दिन तक रिजल्ट्स का इंतजार करना पड़ता है।
इस प्रक्रिया से बचने का अच्छा उपाय पीसीआर रैपिड टेस्ट है। यह टेस्ट सेंट्रल लैब में नहीं होते, बल्कि मौके पर ही मोबाइल इक्विपमेंट की मदद से किए जाते हैं। यह डिवाइसेज 45 मिनट के अंदर रिजल्ट दे देती हैं, लेकिन यह एक दिन में 80 से ज्यादा टेस्ट नहीं कर पातीं।

एंटीजन टेस्ट

यह नोवल टेस्ट्स बाजार में कुछ दिन पहले ही आए हैं और प्रेग्नेंसी टेस्ट की तरह आसानी से किए जा सकते हैं। एंटीजन टेस्ट में भी सलाइवा सैंपल लिया जाता है। इस टेस्ट में वायरस का पता फ्लोरेंस इम्यूनो-ऐसे (FIA) मैथड से किया जाता है। यह टेस्ट आमतौर पर 15 मिनट के भीतर यह बता देते हैं कि मरीज गंभीर रूप से संक्रमित या संक्रामक है या नहीं।
हालांकि पीसीआर टेस्ट के मुकाबले एंटीजन टेस्ट कम सटीक होते हैं। इसका फायदा है कि यह जल्दी रिजल्ट देता है और टेस्ट मौके पर ही हो जाता है। कुछ टेस्ट में खास तरह की डिवाइस की जरूरत होती है।
ज्यादातर फिजिशियन्स एंटीजन टेस्ट के व्यापक उपयोग के समर्थन में हैं। उन्हें उम्मीद है कि इससे आखिरकार ज्यादा संक्रमितों का पता लग सकेगा। वे कहते हैं कि जब मरीज में वायरस का लोड ज्यादा होगा तो टेस्ट की सेंस्टेविटी बढ़ेगी। इससे वे ज्यादा संक्रामक हो जाएंगे और कम्युनिटी को ज्यादा खतरा होगा। कई देशों में ये टेस्ट सभी जगह उपलब्ध नहीं है। जुलाई के अंत तक दुनियाभर में कोरोनावायरस टेस्टिंग के लिए 270 से ज्यादा प्रोडक्ट्स इस्तेमाल किए जा रहे थे।
सेरोलॉजिकल टेस्ट

इन्हें एंजाइम लिंक्ड इम्यूनोसोर्बेंट एसेज (ELISAs) भी कहा जाता है। यह टेस्ट एंटीबॉडीज का पता लगाते हैं। इसका मतलब है कि शरीर ने वायरस के खिलाफ अपनी इम्यून प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी है। ELISAs के लिए मरीज को अपना ब्लड सैंपल देना होता है, जिसकी जांच लैब में होती है।
निर्माता इस प्रिंसिपल पर काम करने वाले रैपिड टेस्ट की पेशकश कर रहे हैं, लेकिन यह टेस्ट केवल फिजिशियन को ही करना चाहिए। इस टेस्ट में खून की कुछ बूंदों की जरूरत होती है, जिसे टेस्ट कैसेट में रखा जाता है और बफर सॉल्यूशन मिलाया जाता है।
अगर SARS-CoV-2 वाले IgM और IgG इम्यूनोग्लोबलिन्स खून में होते हैं तो यह सैंपल अपना रंग बदल लेता है। रिजल्ट पॉजिटिव आने का मतलब होता है कि व्यक्ति कोरोनावायरस संक्रमण से गुजर चुका है और इसके खिलाफ इम्युनिटी है। हालांकि ऐसा हो यह जरूरी नहीं है। इन्फेक्शियस डिसीज स्पेशलिस्ट क्रिश्चियन ड्रोस्टन के अनुसार, लगभग सभी एंटीबॉडी टेस्ट क्रॉस वाइस प्रतिक्रिया देते हैं।
कुछ निर्माताओं ने दावा किया है कि उनके प्रोडक्ट्स के साथ यह दिक्कत नहीं है। हालांकि यह माना जा सकता है कि पॉजिटिव व्यक्ति SARS-CoV-2 के बजाए दूसरे वायरस से संक्रमित हुआ हो।
टेस्ट किसके लिए और कब जरूरी है?
पीसीआर टेस्ट की मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि मरीज और उनके कॉन्टैक्ट में आए लोग संक्रामक हैं या नहीं। उन्हें किस तरह के क्वारैंटाइन में रखा जाएगा। क्या व्यक्ति को दो हफ्ते घर में रहने के आदेश काफी है? क्या इस दौरान वो अपने घर के दूसरे सदस्यों से मिल सकता है या उसे पूरी तरह आइसोलेट होना होगा?

ELISAs टेस्ट एपेडेमियोलॉजिस्ट के लिए जरूरी चीज है। इसके जरिए वे यह अनुमान लगाते हैं कि कितने ऐसे लोग संक्रमण से गुजरे हैं, जिनका पता नहीं लग पाया और कितनी हर्ड इम्युनिटी प्राप्त की जा सकती है। यह नेताओं को पाबंदियों में ढील देने में भी मदद करता है। यह टेस्ट उन लोगों की इम्युनिटी को जांचने में भी मदद करता है जो कोविड 19 से निश्चित रूप से संक्रमित थे या वो लोग जिन्हें नई विकसित हुई वैक्सीन दी गई है।

दुनिया के देशों में कोरोना टेस्टिंग की स्थिति?

दुनियाभर के कई देश कोरोनावायरस टेस्टिंग के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं। इसके भी कई कारण हैं। हेल्थ केयर सिस्टम के प्रदर्शन, टेस्ट की उपलब्धता और लैब की क्षमता ने इस सवाल में बड़ी भूमिका निभाई है। यह भी पता चला है कि किसने इस खतरे को कितनी गंभीरता से लिया है।
उदाहरण के लिए 2002 में आए सार्स से सीख लेने के वाले दक्षिण कोरिया ने व्यवस्थित तरीके से बड़े स्तर पर टेस्टिंग की है। यहां उन लोगों की भी जांच की गई, जिनमें कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे थे। पॉपुलेशन के लिहाज से देखा जाए तो जर्मनी ने भी बेहतर काम किया है, लेकिन यहां लक्षण वाले और कॉन्टैक्ट में आए लोगों की ही जांच की गई।
अमेरिका लगातार अपने टेस्टिंग की क्षमता को बढ़ा रहा है, लेकिन इसके साथ महामारी भी बढ़ रही है और यहां मामले बहुत ज्यादा हैं।

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