नई दिल्ली(लाइवभारत24)। रविवार को 70वीं बार ‘मन की बात’ कार्यक्रम के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संदेश दिया। उन्होंने दशहरे की शुभकामनाएं दीं। यह भी कहा कि कोरोना काल में आगे भी कई त्योहार आने वाले हैं। इस दौरान भी हमें संयम से रहना है। बाजार में जब कुछ खरीदारी करने जाएं तो स्थानीय चीजों का ध्यान रखें। मोदी ने कहा, आज सभी मर्यादा में रहकर पर्व मना रहे हैं। पहले दुर्गा पंडालों में भीड़ जुटती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया। पहले दशहरे पर भी मेले लगते थे, इस बार उनका स्वरूप अलग है। रामलीला पर भी पाबंदियां लगी हैं। गुजरात में गरबा की धूम होती थी। आगे और भी पर्व आएंगे। ईद, शरद पूर्णिमा, वाल्मीकि जयंती, दीवाली छठ पर भी हमें संयम से काम लेना है। जब हम त्योहार की तैयारी करते हैं, तो बाजार जाना सबसे प्रमुख होता है। इस बार बाजार जाते वक्त लोकल फॉर वोकल का संकल्प याद रखें। स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देनी है। सफाईकर्मी, दूध वाले, गार्ड इन सवका हमारे जीवन में भूमिका महसूस की है। कठिन समय में ये साथ रहे। अपने पर्वों में इन्हें साथ रखना है। सैनिकों का भी ध्यान रखें, उनके सम्मान में एक दीया जलाएं। पूरा देश वीर जवानों के परिवार के साथ है। हर व्यक्ति जो परिवार से दूर है, उसका आभारी हूं।
दुनिया हमारे लोकल प्रोडक्ट की फैन हो रही है। लंबे समय तक सादगी की पहचान रही खादी आज ईको फ्रे्डली प्रोडक्ट मानी जा रही है। फैशन स्टेटमेंट बन गई है। मैक्सिको के ओहाका में ग्रामीण खादी बुन रहे हैं। यह ओहाका खादी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। मैक्सिको के एक युवा मार्क ब्राउन ने गांधी जी पर फिल्म देखी। प्रभावित होकर वे बापू के आश्रम आए और इसे समझा। तब उन्हें अहसास हुआ कि ये महज कपड़ा नहीं, जीवन पद्धति है।
जब हमें अपनी चीजों पर गर्व होता है तो दुनिया में भी उनके प्रति जिज्ञासा बढ़ती है जैसे हमारे योग, अध्यात्म और आयुर्वेद। हमारा मलखंभ भी अमेरिका में पॉपुलर हो रहा है। वहां इसके कई ट्रेनिंग सेंटर चल रहे हैं। मलेशिया, पोलैंड और जर्मनी समेत 20 देशों में यह सिखाया जा रहा है। भारत में तो प्राचीन काल से ऐसे खेल रहे हैं, जो शरीर में असाधारण विकास करते हैं। हो सकता है कि नई पीढ़ी के युवा इससे परिचित न हों। आप इंटरनेट पर इसे सर्च करें और इसके बारे में जानें।
तूतुकुट्टी (तमिलनाडु) में बाल काटने वाले पोन मरियप्पन ने एक अलग तरह की पहल की है। वे लोगों के बाल तो संवारते ही हैं, उन्होंने अपनी दुकान में एक लाइब्रेरी बनाकर रखी है। अपनी बारी का इंतजार कर रहे लोग किताब पढ़ सकते हैं और इस बारे में कुछ लिख भी सकते हैं। ऐसा करने वालों को वे डिस्काउंट भी देते हैं। मध्यप्रदेश के सिंगरौली की शिक्षा ने तो स्कूटी को ही लाइब्रेरी में बदल दिया है। वे गांव में जाती हैं और बच्चों को पढ़ाती हैं। बच्चे उन्हें किताबों वाली देवी कहते हैं।
इस हफ्ते सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती आने वाली है। सरदार पटेल ने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने आजादी के आंदोलन को किसानों के मुद्दों से जोड़ने का काम। विविधता में एकता के मंत्र को हर भारतीय के मन में जगाया। हमें उन सब चीजों को जगाना है जो हम सब को एक करे। हमारे पूर्वजों ने यह प्रयास हमेशा किए हैं।
ज्योतिर्लिंगों और शक्तिपीठों की स्थापना ने हमें भक्ति के रूप में एकजुट किया। प्रत्येक अनुष्ठान से पहले विभिन्न नदियों का आह्वान किया जाता है। इसमें सिंधु से कावेरी तक का नाम लिया जाता है। सिखों के धर्मस्थलों में पटना साहिब और नांदेड़ साहेब गुरुद्वारे शामिल हैं। ऐसी ताकतें भी रही हैं जो देश को बांटने का प्रयास करते रहे हैं। देश ने भी इनका मुंहतोड़ जवाब दिया है। हमें अपने छोटे से छोटे कामों में एक भारत श्रेष्ठ भारत का संकल्प लाना है। मैं आपसे एक वेबसाइट ekbharat.gov.in देखने का आग्रह करता हूं। इसने नेशनल इंटीग्रिटी को आगे बढ़ाने के कई प्रयास दिखाई देंगे।
इस बार केवटिया में 31 तारीख को मुझे स्टेच्यू ऑफ यूनिटी पर कई कार्यक्रमों में शामिल होने का अवसर मिलेगा। आप भी इसमें जुड़िए। महर्षि वाल्मीकि ने सकारात्मक सोच पर बल दिया। उनके लिए सेवा और मानवीय गरिमा सर्वोपरि है। उनके विचार आज न्यू इंडिया के लिए जरूरी हैं। 31 अक्टूबर को हमने भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को खो दिया। हम उन्हें आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूं। लॉकडाउन के दौरान टेक्नोलॉजी बेस्ड कई प्रयोग हुए हैं। झारखंड में यह काम महिलाओं के सेल्फ हेल्प ग्रुप ने कर दिखाया है। इन्होंने आजीविका फार्म फ्रेश नाम से ऐप बनाया। इस पर 50 लाख तक की सब्जियां लोगों तक पहुंचाई गई हैं। कश्मीर घाटी देश की 90% स्लेट पट्‌टी की लकड़ी और पेंसिल की लकड़ी की आपूर्ति करती है। पुलवामा में इस लकड़ी का उत्पादन होता है। यहां की लकड़ी में सॉफ्टनेस होती है। यहां के उखू गांव को पेंसिल गांव के नाम से जाना जाता है। पुलवामा की यह अपनी पहचान तब स्थापित हुई है, जब यहां के लोगों ने कुछ अलग करने की ठानी।

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