*स्निग्धा मिश्रा*

ऎ ! मेरे मन

ऎ मन कुछ बेखबर सा है ,
कागज,कलम ,शाम सब कुछ तो है
पर लफ़्ज़ों का असर , बेअसर सा है |
कभी तो भागे ये मन तितलियों के पीछे,
तो कभी जुगनुओ के बीच भी बेसबर सा है |
क्या चाहता है , क्या सोचत है,
कुछ भी तो टोह नहीं लगती |
कभी है एक पल में सिमटा,
तो कभी बिखरा-बिखरा सा है |
कभी मेरा मन सुकून के समुंदर में डूबता जाता है ,
तो कभी कहर का लावा बन कर बरस जाता है |
कभी तो ये ख्वाबो के कारवां संग चलता है ,
तो कभी टूट कर सांसों संग उलझता है |
ऐ ! मेरे मन ,
कभी तो जवाब दे मेरे अनकहे सवालो के,
कभी तो रंग लेकर आ आंखों के उजालो में |
कभी तो ,मै तुझे समझ लूं ,
अरे ! कभी तो तुझसे रुबरु उलझ लूं |
कभी तो…
स्निग्धा मिश्रा, लखनऊ

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