भोपाल (लाइवभारत24)। संक्रमण की दूसरी लहर ने देश को डरा सा दिया है। इलाज, इंजेक्शन और ऑक्सीजन जैसी किल्लतों ने हालात बदतर कर दिए हैं। आंसू भरी आंखों में डूबती उम्मीदों की तस्वीरें हर ओर नजर आ रही हैं। पर.. कुछ चेहरे ऐसे भी हैं, जो हौसला देते हैं, उम्मीदें कायम रखते हैं।
88 साल के देवी लाल। इनके हौसले से अस्पताल में काम करने वाला मेडिकल स्टाफ भी प्रभावित है।
मगध विश्वविद्यालय में एचओडी रहे 88 साल के देवी लाल कई दिनों से गले के कैंसर से जूझ रहे थे। इसी बीच कोरोना का संक्रमण भी हो गया। सबको लगा कि कैंसर के बीच संक्रमण जानलेवा साबित होगा। पर ये लोगों की सोच थी, देवी लाल की नहीं।

उन्होंने कहा, “जैसे कैंसर हार रहा है, वैसे ही कोरोना भी हारेगा।’ उन्हें पटना के उदयन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां उन्हें बाईपैड पर रखा गया। यह वेंटिलेटर की तरह ही होता है। अस्पताल में ही उनका बर्थ डे सेलिब्रेट किया गया। देवी लाल के भीतर किसी बच्चे जैसा उत्साह था। जिसे देखकर दूसरे मरीजों का भी ऑक्सीजन लेवल बढ़ गया। बर्थडे सभी ने सेलिब्रेट किया।

दूसरी कहानी मध्यप्रदेश की: इनकी जीत का मंत्र- खाओ, पियो, डांस और एक्सरसाइज करो
तुलसीराम सेठ कहते हैं कि बीमारी की चिंता छोड़कर मस्त रहो। बीमारी कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
बालाघाट के रहने वाले 92 साल के तुलसीराम सेठिया कोरोना पॉजिटिव हुए, तो अस्पताल नहीं गए। हर ओर से आ रही खबरों ने परिवार की चिंता बढ़ा दी, पर तुलसीराम के चेहरे पर शिकन नहीं आई। उन्होंने संक्रमण के दौरान भी एक्सरसाइज की, म्यूजिक की धुन पर थिरकते रहे और परिवार के साथ मस्ती की। जीने की जिद और अपने बिंदास अंदाज से उन्होंने अपनी हिम्मत को बढ़ाया।

परिवार ने भी साथ दिया। अब उनकी रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी है। वो कहते हैं- 100 साल जीना चाहता हूं। बीमारी की चिंता मत करो, मस्त रहो.. बीमारी कुछ नहीं बिगाड़ सकती। सोशल मीडिया पर तुलसी राम का वीडियो भी वायरल हो रहा है।

तीसरी कहानी मध्य प्रदेश की: इच्छा शक्ति से 85% इन्फेक्शन को 55% करके दिखा दिया
रुचि खंडेलवाल कहती हैं कि ये मानना ही नहीं चाहिए कि आप बीमार हैं, वर्ना बीमारी घर कर जाती है।
इंदौर के अरबिंदो अस्पताल में भर्ती रुचि खंडेलवाल ने सोशल मीडिया पर अपना वीडियो अपलोड किया है। वो कोरोना से लड़ने के टिप्स बता रही हैं। रुचि कहती हैं, “जब अस्पताल में भर्ती हुई, तब 85% लंग इन्फेक्शन था। इच्छाशक्ति के चलते इन्फेक्शन 55% तक आ गया है। कभी भी आप यह न मानें कि आपको कोई बीमारी है, क्योंकि बीमारी दिमाग में घर कर जाती है।’

रुचि ने वीडियो में प्रोन वेंटिलेशन के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि फेफड़ों की बनावट सामने की तरफ पतली होती है, क्योंकि आगे दिल होता है। पीठ की तरह फेफड़े का आकार चौड़ा होता है। संक्रमण से फेफड़ों के सामने का भाग ज्यादा प्रभावित होता है। ऐसे में पीठ के बल सोने से फेफड़ों के निचले भाग का उपयोग होने लगता है।

चौथी कहानी राजस्थान की: 3-3 अस्पताल बदले, 52 दिन तक कोरोना से लड़े और जीते
मोतीलाल भगोती के फेफड़े 80% तक संक्रमित हो गए थे। ऑक्सीजन लेवल 80% से नीचे था।
जयपुर के रिटायर टीचर मोतीलाल भगोती पिछले साल अक्टूबर में संक्रमित हुए। उनके फेफड़े 80% तक संक्रमित हो गए थे। ऑक्सीजन लेवल 80% से नीचे था। उन्होंने बताया, ‘पहले दिमाग में कई नकारात्मक विचार आए। फिर सोचा पूरी जिंदगी बच्चों को पॉजिटिव रहना सिखाया है, तो आज मैं कैसे निगेटिव हो सकता हूं? तय किया कि निगेटिव विचारों को पास नहीं आने दूंगा।

कोरोना को हराने के बारे में ही सोचता था। जेएनयू के आईसीयू में 2 दिन भर्ती रहा। फिर टैगोर अस्पताल गया। हालत नहीं सुधरी तो आरयूएचएस पहुंचा। तीन अस्पतालों में 26 दिनों तक आईसीयू में रहा और 55 दिन तक इलाज चला। 3 दिन तो होश भी नहीं था। अपनी इच्छाशक्ति, डॉक्टरों और दूसरे मेडिकल स्टाफ के सपोर्ट से कोरोना को हरा दिया। अब स्वस्थ हूं।

कोरोना गाइडलाइन का पालन करता हूं और खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत रखता हूं। जानने वालों में जो भी संक्रमित होता है, उन्हें पॉजिटिव सोचने की सलाह देता हूं।’

पांचवीं कहानी बिहार की: 7 महीने की अवंतिका फाइटर की तरह लड़ी, सबको हौसला दिया
माता-पिता के संक्रमित होने के बाद अवंतिका भी संक्रमित हो गई। पर उसकी मुस्कुराहट को ये बीमारी भी नहीं रोक पाई।
पटना की 7 महीने की अवंतिका ने कोरोना को हंसते-खेलते हरा दिया। अप्रैल में ही अवंतिका के पिता डॉ. अमृत राज और मां अनामिका संक्रमित हो गईं। बच्ची भी इसका शिकार हुई। ढाई साल का बेटा शिवांश भी गंभीर स्थिति में पहुंच गया। बुखार के साथ उल्टियां शुरू हो गईं। एम्स गए तो वहां प्राइवेट रूम नहीं मिला। ऐसे में घर ही वापस आ गए।

हालांकि किसी की मदद से रूम बाद में मिला तो पत्नी और दोनों बच्चों के साथ एम्स में भर्ती हो गए। वो कहते हैं कि सबसे ज्यादा चौंकाया 7 महीने की बच्ची ने। वो किसी फाइटर की तरह बीमारी से लड़ी। बच्ची को लेकर पूरा परिवार काफी डरा हुआ था, पर बुखार के बावजूद उसका हंसना कभी नहीं रुका। मां के सीने से लिपटी रहती थी तो मां को भी हिम्मत मिलती गई।

मासूम को देखकर ही पूरा परिवार तेजी से संक्रमण से उबरा। सभी संक्रमितों में से कोरोना को हराने वाली बिटिया ही थी। वो कोरोना से अनजान थी, उसे इसका डर भी नहीं था। हमें भी डरना नहीं है।

छठवीं कहानी छत्तीसगढ़ की: डॉक्टरों ने हार नहीं मानी, बिना वेंटिलेटर बीमारी को हराया
रायपुर के प्रफुल्ल की स्थिति गंभीर थी, पर डॉक्टरों ने सीमित संसाधनों के बावजूद हार नहीं मानी। पॉजिटिव सोच को बनाए रखा।
रायपुर के 68 साल के प्रफुल्ल यादव संक्रमित होने के बाद जब अस्पताल पहुुंचे तो स्थिति चिंताजनक थी। ऑक्सीजन लेवल 60 के नीचे था। ब्लड प्रेशर भी अप-डाउन हो रहा था। डायबिटिक होने की वजह से शुगर लेवल 500 से 600 के बीच आ गया था। आमतौर पर इस स्थिति में वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है।

उनका इलाज करने वाले डॉक्टर प्रशांत साहू ने कहा कि अस्पताल में संसाधन कम थे, लेकिन हमने इन हालात को चैलेंज की तरह लिया। मजबूत इरादों के साथ इलाज शुरू किया। ऑक्सीजन थैरेपी और शुरुआती दवाओं से प्रफुल्ल की स्थिति पहले दिन स्थिर हो गई। एक दिन बाद उनका ऑक्सीजन लेवल 45 से नीचे आ गया। वो बेहद गंभीर हो गए।

उनके लिए कहीं भी वेंटिलेटर नहीं मिल पाया। हमने इलाज की मॉनीटिरिंग की और दोगुने हौसले से कोशिशें कीं। डॉ. साहू बताते हैं कि प्रफुल्ल की हालत सुधरने लगी। 10 दिन बाद उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई और तब ऑक्सीजन लेवल 96 से 98 तक था। हमें ये अनुभव मिला कि अगर मरीज और डॉक्टर पॉजिटिव हों तो बिना वेंटिलेटर भी स्थिति को सुधारा जा सकता है। इस लिए दोस्तो जो डर गया वो मर गया हिम्मत रखो तो कुछ नही होगा।

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