नई दिल्ली(लाइव भारत 24)। चीन के विदेश मंत्रालय ने भारत की तरफ रुख नरम करने का संकेत दिया है। लेकिन सीमा पर उसकी फौजें अभी भी तैनात हैं। लिहाजा भारत भी 1962 वाली गलती दोहराने के मूड में नहीं है। पीएम मोदी की पैनी निगाहें सीमा पर लगी हुई हैं। क्योंकि वो जानते हैं कि चीन की फितरत पीठ पीछे से वार करने की है। ऐसे में नेहरु काल के जैसी कोई भी लापरवाही ऐतिहासिक गलत साबित होगी। पीएम मोदी चीन के कितने सतर्क हैं। ये इस बात से पता चलता है कि सिर्फ लद्दाख ही नहीं भारत-चीन सीमा के पूरे क्षेत्र में भारतीय सेना मुस्तैद है। भले ही पूर्वी लद्दाख की तरह भारतीय सेना अग्रिम मोर्चे पर तैनात नहीं है, लेकिन पश्चिमी लद्दाख, मध्य में उत्तराखंड और हिमाचल और पूर्वी मोर्चे यानी अरुणाचल से लेकर सिक्किम तक भारतीय फौजी किसी भी वक्त चीन का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं। एक अंग्रेजी अखबार ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि चीन से लगी 3488 किलोमीटर लंबी सीमा पर भारतीय फौजियों को स्टैंडबाई पोजिशन में रखा गया है कि वह न्यूनतम समय पर सीमा पर जाकर दुश्मन से मोर्चा ले सकें।
भारतीय फौज वास्तविक नियंत्रण रेखा(LAC, Line of actual control) के बिल्कुल पास मुस्तैद स्थिति में है। जिससे कि वह तुरंत सीमा पर पहुंचकर दुश्मन को जवाब दे सके। इन इलाकों में चीनी फौज मई के शुरुआती हफ्तों से ही तैनाती पर है। जिसके जवाब में भारत ने मई के आखिरी सप्ताह से अपने फौजियों की संख्या बढ़ानी शुरु कर दी। 6 जून को भारत चीन के बीच सैन्य अधिकारी स्तर की वार्ता शुरु होने से पहले तक लगभग 10 हजार भारतीय फौजियों की तैनाती हो चुकी थी। फिलहाल सीमा के दोनों तरफ भारतीय और चीनी फौजों की संख्या लगभग बराबर है।
दोनों ही सेनाएं अलर्ट मोड में अपने राजनैतिक नेतृत्व के इशारे का इंतजार कर रही हैं। दोनों तरफ की सीमाओं पर तनाव भरी सर्द खामोशी है। किसी भी क्षण जंग के शुरु करने या फौजों को वापस अपनी बैरकों में लौटने का आदेश जारी किया जा सकता है. लेकिन सवाल ये है कि शुरुआत किसकी तरफ से होगी। चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने बुधवार को बीजिंग में बयान दिया कि ‘दोनों पक्ष LAC पर तनाव कम करने के लिए जरूरी कदम उठा रहे हैं। सीमा पर मौजूदा हालात को लेकर हाल में ही कूटनीतिक और सैन्य दोनों मोर्चों पर चीन और भारत के बीच बातचीत का अच्छा नतीजा रहा। इसके आधार पर ही दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर तनाव कम करने में जुटी हैं, लेकिन भारतीय सेना(Indian Army) और प्रधानमंत्री मोदी(PM Modi)किसी तरह का जोखिम मोल नहीं लेना चाहते। नजदीकी कोर से इन इलाकों में इंफेंट्री के तीन डिविजन और दो अतिरिक्त ब्रिगेड को तनाव वाले इलाकों में भेजा गया है। हाल में वेस्टर्न आर्मी कमांडर लेफ्ट। जनरल आरपी सिंह ने इस इलाके की अग्रिम चौकियों का दौरा किया। उत्तराखंड के फॉरवर्ड सेक्टर के पास चिन्यालिसौर में वायु सेना भी सतर्क है, जो कि चीन के बैकफुट पर आने का प्रमुख कारण है।
भारतीय और चीनी सेना के बीच बटालियन, ब्रिगेड और मेजर जनरल स्तर की कई स्तरों की वार्ता हो रही है। इस दौरान भारत ने स्पष्ट रुप से कहा है कि चीन अपनी तरफ से सैनिकों की संख्या कम करना शुरु करे और हथियार भी घटाए क्योंकि चीनी नेताओं के जुबानी गुडविल गेस्चर पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
चीन के राजनेता और फौज विश्वासघात करने के आदी हैं। अभी से कोई 63 साल पहले 29 अप्रैल 1954 को तिब्बत को चीन का क्षेत्र स्वीकारने और भारत से व्यापारिक और आपसी समझौते के लिए प्रसिद्ध पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। जिसमें एक दूसरे पर आक्रमण नहीं करने की भी बात शामिल थी,लेकिन 1962 में चीनी फौज ने भारतीय सीमा का उल्लंघन किया था। जिसके बाद दोनो देशों के बीच जंग हुई थी। जंग के दौरान भी चीन के सिपाही हिंदी-चीनी भाई भाई के नारे लगाते हुए भारतीय सिपाहियों के पास पहुंच जाते थे और धोखे से उनपर गोलियां दाग देते थे। जिसकी वजह से भारत की बहुत हानि हुई थी। यही वजह है कि इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन की चालबाजियों पर बिल्कुल भरोसा नहीं करते हुए सीमा पर चीन को किसी तरह की बढ़त लेने का मौका नहीं देना चाहते।

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