लखनऊ (लाइवभारत24)।  संपूर्ण हेल्थ केयर इकोसिस्टम इस समयकोविड-19 महामारी से जंग में जुटा है। देश के अलग-अलग भागों को अलग-अलग रणनीति के तहत अनलॉक कियाजा रहा है। हालांकि,ऐसे समय में नॉन कोविड मरीज के लिए अस्पताल में जाकर डॉक्टर को दिखाना कोई आसान काम नहीं है। इसमें खासतौर से किडनी की पुरानी बीमारी (सीकेडी) के मरीज शामिल हैं। एक अध्ययन के अनुसार भारत में किडनी के 0.2 मिलियन मरीज ऐसे हैं जिन्हें हर साल कुल 34 मिलियन डायलिसस सेशन की जरूरत पड़ती है। कोरोना महामारी के कारण मरीजों के आने-जानेपर लगाए गए प्रतिबंधों के मद्देनजर किडनी के मरीजों के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव करने वाले इलाज पर विचार करना और उसे विकल्प के रूप में अपनाना बहुत जरूरी हो गया है। यह थेरेपी का सबसे सुविधाजनक तरीका है। होम बेस्ड डायलिसिस या पेरिटोनियल डायलिसिस (पीडी) के रूप में इसका उदाहरण दिया जा सकता है।

लखनऊ के संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआईएमएस) में नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. नारायण प्रसाद ने कहा,“डिजिटाइजेशन की उन्नत तकनीक के साथ रिमोट पेशेंट मॉनिटरिंग सिस्टम और टेलीमेडिसिन भारत में स्वास्थ्य रक्षा के भविष्य का रोडमैप तैयार कर रही है। कोरोना के चलते अस्पताल और डायलिसिस सेंटर में बार बार जाने से सीकेडी के मरीजों का कोरोना वायरस की चपेट में आने का खतरा बढ़ता जा रहा है। होम बेस्ड पेरिटोनियल डायलिसिस काफी सुरक्षित इलाज है, जिसमें मरीजों को क्वॉलिटी डायलिसिस घर में ही करने की इजाजत मिलती है। इसके साथ ही वह काफी नजदीकी से अपने डॉक्टर से जुडे रहते है। इससे संक्रमण में कमी आना सुनिश्चित होता है और वास्तव में स्वास्थ्य रक्षा के संसाधनों और आधारभूत ढांचे का आवंटन किया जाता है।“ऑटोमेटेड पेरिटोनियल डायलिसिस (एपीडी) करा रहे मरीजों की बीमारी में सुधार करने की आरपीएम में अपार क्षमता है। इसमें वर्चुअल रूप से क्लिनिक में मौजूदगी का प्रबंध कर, मरीजों की ओर से जेनरेटड क्लीनिकल डॉक्युमेंटेशन और सेल्फ मॉनिटरिंग को बढ़ावा देकर मरीजों की स्वास्थ्य रक्षा का प्रबंध किया जाता है। यह डॉक्टरों को बारीकी से मरीजों की निगरानी और बातचीत करने में सक्षम बनाती है। उन्हें समय रहते उनकी बीमारी के संबंध में फीड बैक दिया जाता है और मरीजों की हालत में सुधार के लिए डॉक्टर प्रिसक्रिप्शन में बदलाव और मरीजों की स्थिति के संदर्भ में अन्य डॉक्टरोंसे सलाह-मशविरा भी करते हैं। बिना किसी योजना और इमरजेंसी में अस्पताल जाने से बचने के लिए बीमारी का जल्दी पता लगना बेहद आवश्यक है। आरपीएम होम डायलिसिस की तकनीक का आधुनिकीकरण कर मरीजों की बीमारी में सुधार लाने की कोशिश कर उन्हें संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं। इससे पैसे की भी बचत होती है। सीकेडी से पीड़ित मरीज अब सफलतापूर्वक आरपीएम की तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें कोविड-19 के संक्रमण को देखते हुए खुद को खतरे में डालने की जरूरत नहीं होगी। आरपीएम में इस्तेमाल की जा रही तकनीक विश्वसनीय है। इस तकनीक का उपयोग आरपीएम में किया जाता है और यह भरोसेमंद है तथा दूर से ही डॉक्टसरों एवं मरीजों को आपस में जोड़कर एक बड़ा बदलाव ला सकती है।

पीडी स्टैंडर्ड डायलिसिसथेरेपी का एक प्रकार है, जो मरीज के पेट में पेरिटोरियम का उपयोग झिल्ली के रूप में करता है। इसमें द्रव(फ्लुरईड)और मिश्रित पदार्थों का रक्त के साथ आदान-प्रदान होता है। यह बहुत सुविधाजनक औरघर में की जाने वाली प्रक्रिया है, जो मरीज भी बेसिक ट्रेनिंग हासिल कर और साफ-सफाई के दिशा-निर्देशों कापालन कर खुद कर सकता है। पेरिटोनियल डायलिसिस दो प्रकार का होता है, कॉन्टिन्युऔअस एंब्यूलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस (सीएपीडडी) और ऑटोमेटेड पेरिटोनियल डायलिसिस (एपीडी)। सीएपीडी में मैनुअल ढंग से द्रव का आदान-प्रदान दिन में तीन-चार बार होता है, जबकि एपीडी काफी पसंदीदा विकल्प है, जिसे मैकेनिकल डिवाइसेज की सहायता से किया जाता है।

पीडी को बहुत से मरीजों के लिए अपने अनगिनत लाभ के कारण काफी पसंदीदा ट्रीटमेंट थेरेपी बन जाना चाहिए था। दरअसल आईटी से लैस पेशेंट मॉनिटरिंग सिस्टम या रिमोट पेशेंट मैनेजमेंट सिस्टम (आरपीएम) की तैनाती के बाद अब पीडी को डॉक्टरों और मरीजों की मदद के लिए पहले से ज्यादा अपनाया जाने लगा है। इससे न सिर्फ बीमारी को प्रभावी ढंग से मैनेज करने में मदद मिलती है, बल्कि इससे मरीज की जिंदगी की गुणवत्ताी में सुधार आता है। एपीडी और आरपीएम शेयरसोर्स जैसे क्लाउड बेस्ड सॉफ्टवेयर की वजह से संभव हुए हैं। जिसमें लगातार मरीज के घर और डॉक्टरों की टीम के साथ दोतरफा संवाद होतारहता है। इससे जटिल बीमारी और जोखिम वाले मरीज को पहचानने में मदद मिलती है। लागत और लाभ का पक्ष भी एपीडी के साथ आरपीएम प्रणाली के पक्ष में मजबूती से है। आरपीएम के बिना एपीडी उतनी प्रभावशाली नहीं मानी जाती, जितनी कि एपीडी और आरपीए प्रणाली मानी जाती है।

किडनी फेलियर के एक मरीज ने टिप्पणी की, “जब अप्रैल माह में मुझे जांच में किडनी की पुरानी बीमारी का पता चला था, मेरे डॉक्टर ने मुझे पेरिटोनियल डायलिसिस (पीडी) कराने की सलाह दी। लॉकडाउन के दौरान होम बेस्ड डायलिसिस की सुविधा मुझे मिली। धीरे-धीरे रिमोट मॉनिटरिंग सिस्टम से मेरी डायलिसिस की प्रगति समय से रेकॉर्ड हो गई और मेरे डॉक्टर दूर किसी शहर में बैठे मेरे ट्रीटमेंट प्लान की समीक्षा कर सकते हैं और उसमें बदलाव भी कर सकते हैं। मैं घर पर डायलिसिस कराते हुए खुद को सुरक्षित महसूस करता हूं। क्योंकि मुझे डर है कि हफ्ते में एक बार डायलिसिस सेंटर या अस्पताल जाने में मैं बीमारी की चपेट में आ जाऊंगा। शेयरसोर्स जैसी रिमोट पेशेंट मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी के सहयोग सेमेरे डाक्टर मेरे डायलिसिस से संबंधित आंकड़ों को देख सकते हैं। और अगर उन्हें जरूरी लगता है तो मेरे ट्रीटमेंट प्लान मेंसुधार भी कर सकते हैं।“

होम-बेस्ड डायलिसिस खासतौर पर पीडी की सफलता का सबसे बड़ा सूत्र मरीजों की शिक्षा और उनका प्रशिक्षण है। आज के ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में आरपीएम जैसे प्लेटफॉर्मों से पीडी में सक्षम बनाना रोगियों की अपनी देखभाल के ज्ञान में सुधार करने के लिए बड़ा व्यावाहरिक साबित होगा। मरीज डॉक्टर से दूर रहतेहुए भी हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स या डॉक्टरों की मौजूदगी अपने इर्द-गिर्द महसूस कर सकते हैं। घर पर डायलिसिस कराने से डायलिसिस अच्छी तरह हो सकता है और मरीज डॉक्टरों से जुड़ा हुआ भी महसूस कर सकता है। इससे डॉक्टर से दूर रहते हुए मरीजों का इलाज बेहद अच्छे ढंग और आसानी से किया जा सकता है।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी कमेंट दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें