नयी दिल्ली(लाइवभारत24)। केंद्र सरकार ने देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि IPC की धारा 124A के प्रावधानों पर सरकार दोबारा विचार और जांच करेगी। केंद्र ने कोर्ट में एक हलफनामा दिया है। इसमें कोर्ट से अपील की गई है कि इस मामले पर सुनवाई तब तक न की जाए, जब तक सरकार जांच न कर ले।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, TMC सांसद महुआ मोइत्रा समेत पांच पक्षों की तरफ से देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई थी। मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आज के समय में इस कानून की जरूरत नहीं है। इस मामले की सुनवाई CJI एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच कर रही है। इस बेंच में जस्टिस सूर्यकांत त्रिपाठी और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल हैं।
पिछले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इस दौरान केंद्र की ओर से यह दलील दी गई थी कि इस कानून को खत्म न किया जाए, बल्कि इसके लिए नए दिशा-निर्देश बनाए जाएं।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बताया- पुराने कानूनों की समीक्षा करना और उन्हें निरस्त करना एक सतत प्रक्रिया है। भारत सरकार ने 2014-15 से अब तक 1500 कानूनों को रद्द किया है। सरकारों पर देशद्रोह कानून के गलत इस्तेमाल के आरोप लगते आए हैं। मौजूदा दौर में इस कानून की जरूरत का मूल्यांकन करने का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश के बाद लिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि IPC की धारा 124ए की वैधता के खिलाफ सीनियर वकील कपिल सिब्बल याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखेंगे। सिब्बल ने कहा था- इस कानून का उपयोग पत्रकारों, एक्टिविस्ट्स और राजनेताओं के खिलाफ किया जाता है, जिससे वह सरकार का विरोध न कर सकें। यह अंग्रेजों के जमाने का कानून है।

क्या है IPC धारा 124A

अगर कोई सरकार विरोधी बातें लिखता या बोलता है या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, तो उसे तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।

मुंबई की खार पुलिस ने कुछ दिन पहले ही निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके पति विधायक रवि राणा के खिलाफ IPC की धारा 124ए (देशद्रोह) के तहत मामला दर्ज किया था। राणा दंपती के मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि देशद्रोह कानून को पूरी तरह हटाया नहीं जाना चाहिए, बल्कि इस पर दिशा-निर्देशों की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि हनुमान चालीसा पढ़ने पर देशद्रोह का केस बनाया गया। ऐसे में अदालत को कानून पर गाइडलाइन बनाने की जरूरत है।

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