- 75% से अधिक प्रतिभागियों का मानना है कि नई लाइसेंसिंग जरूरत से व्यवसाय करने की लागत बढ़ेगी, भ्रष्टाचार बढ़ेगाऔर उन्हें तंबाकू रिटेल से दूर जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
- 90% से अधिक प्रतिभागियों का मानना है कि नए प्रावधान और इसके उल्लंघन पर कठोर दंडात्मक उपाय भ्रष्टाचार को बढ़ावा देंगे, उत्पीड़न का कारण बनेंगे और छोटे रिटेलर्स को व्यवसाय बंद करने के लिए मजबूर करेंगे।
- लगभग 95% प्रतिभागियों को लगता है कि वे बड़े संगठित खुदरा विक्रेताओं के कारण अपना व्यवसाय खो सकते हैं और भुखमरी के कगार पर आ सकते हैं।
लखनऊ (लाइवभारत24)। असहाय लोगों की समस्याओं का समाधान निकालने की दिशा में कार्यरत एनजीओ प्रहार (पब्लिक रेस्पॉन्स अगेंस्ट हेल्पलेसनेस एंड एक्शन फॉर रिड्रेसल) ने सीओटीपीए संशोधन विधेयक 2020 के प्रभाव को जानने के लिए उत्तर प्रदेश के रिटेलर्स के बीच किए गए अपनी तरह के पहले सर्वे के नतीजे जारी किए। इस संशोधन में तंबाकू उत्पादों की बिक्री के लिए अलग से लाइसेंस को अनिवार्य किया गया है। यह सर्वेक्षण एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन का हिस्सा है, जिसमें 1986 लोगों ने हिस्सा लिया।
सर्वेक्षण में सामने आया है कि तंबाकू उत्पादों की बिक्री के लिए अलग लाइसेंस की जरूरत ने राज्य में छोटे खुदरा विक्रेताओं में बड़ी निराशा और चिंता पैदा कर दी है। इसमें कहा गया है कि इस तरह के प्रावधान छोटे रिटेलर्स के कारोबार पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं, जिनकी आय पहले ही बहुत कम है और कम आय को देखते हुए उनके लिए इस नई जरूरत को पूरा करना मुश्किल हो जाएगा।
सर्वेक्षण के अनुसार, 75% से अधिक प्रतिभागियों ने चिंता व्यक्त की कि तंबाकू उत्पादों की बिक्री के लिए नई लाइसेंसिंग जरूरतों से भ्रष्टाचार पैदा हो सकता है, छोटे रिटेलर्स के लिए व्यवसाय करने की लागत बढ़ सकती है और उन्हें तंबाकू रिटेल से दूर होने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। ये निष्कर्ष राष्ट्रीय सर्वेक्षण के निष्कर्षों जैसे ही हैं, जिसमें 76 प्रतिशत प्रतिभागियों ने इसी तरह की चिंता व्यक्त की थी।
छोटे खुदरा विक्रेताओं के उत्पीड़न की गंभीर वास्तविकता को उजागर करते हुएसर्वेक्षण ने रेखांकित किया कि 70% छोटे खुदरा विक्रेता पहले से ही कानून प्रवर्तन एजेंसियों के हाथों उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। इसमें सामने आया कि 90% से अधिक प्रतिभागियों को लगता है कि नए प्रावधान और उनके उल्लंघन को कठोर दंडात्मक उपायों के साथ एक संज्ञेय अपराध बनाने के कदम से और अधिक भ्रष्टाचार पैदा होगा, जिससे उन्हें अधिकारियों द्वारा ज्यादा उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा और यहां तक कि उन्हें व्यवसाय बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। यह देश के अन्य हिस्सों से सामने आए निष्कर्षों के अनुरूप ही है, जहां 95% प्रतिभागियों ने ऐसे ही विचार व्यक्त किए थे।
सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि लगभग 95% प्रतिभागियों को लगता है कि वे बड़े संगठित खुदरा विक्रेताओं के हाथों अपना व्यवसाय गंवा सकते हैं और भुखमरी के कगार पर आ सकते हैं। यह राष्ट्रव्यापी निष्कर्षों जैसा ही है, जिसमें 98% प्रतिभागियों का मानना है कि नए प्रावधान छोटे खुदरा विक्रेताओं को तंबाकू उत्पादों की बिक्री नहीं करने के लिए मजबूर करेंगे, और यहां तक कि उन्हें दुकान भी बंद करनी पड़ सकती है, जिससे ग्राहक बड़े स्टोर से खरीदने के लिए मजबूर होंगे तथा छोटे खुदरा विक्रेताओं के व्यवसाय को और नुकसान होगा। ये बड़े खुदरा विक्रेता ऐसे उत्पादों को ग्राहकों को आसानी से उपलब्ध कराएंगे और केवल पूरा पैकेट बेचेंगे, जिससे तंबाकू की खपत बढ़ेगी और नए लाइसेंसिंग मानदंडों का मूल उद्देश्य विफल हो जाएगा।
अध्ययन के निष्कर्षों परप्रहार के अध्यक्ष और राष्ट्रीय संयोजक श्री अभय राज मिश्रा ने कहा, “यूपी में छोटे खुदरा विक्रेताओं में भारी असंतोष है। उन्हें नई लाइसेंसिंग जरूरत का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इन खुदरा विक्रेताओं का मानना है कि प्रस्तावित प्रावधान कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा भ्रष्टाचार व उत्पीड़न को बढ़ावा दे सकते हैं, व्यापार करने की लागत बढ़ा सकते हैं और उनकी आजीविका को खतरे में डाल सकते हैं। यदि नए लाइसेंसिंग प्रावधानों को उनके मूल रूप में लागू किया जाता है, तो इस बात की पूरी संभावना है कि तंबाकू उपभोग कम करने के लक्ष्यों को पूरा करने के बजाय यह बाजार के ढांचे को विकृत कर सकता है, जिससे कई लोगों का जीवन और उनकी आजीविका नष्ट हो सकती है। हमें सख्त नीतिगत उपायों के बजाय तंबाकू नियंत्रण के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक सतत जागरूकता कार्यक्रम की आवश्यकता है।”
Good initiative