दो घंटे नहीं आई सरकारी एंबुलेंस, सांस लेने में तकलीफ से पीड़ित इतिहासकार पद्मश्री डॉक्टर योगेश प्रवीण का निधन

लखनऊ (लाइवभारत24)। देश और नबाबो के शहर लखनऊ के जाने-माने इतिहासकार पद्मश्री डॉक्टर योगेश प्रवीण का सोमवार को लखनऊ में निधन हो गया। वे 83 साल के थे। बताया जा रहा है कि सोमवार की दोपहर वे अपने घर पर थे। करीब डेढ़ बजे उन्हें सांस लेने में तकलीफ ज्यादा होने लगी। एंबुलेंस को बुलाया गया। लेकिन करीब 2 घंटे बाद एंबुलेंस पहुंची। इसके बाद उन्हें बलरामपुर अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। योगेश प्रवीण के निधन से साहित्य जगत में मायूसी छा गई है।

इतिहासकार डॉक्टर योगेश प्रवीण को साल 2020 में गणतंत्र दिवस की संध्या पर पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था। पद्मश्री सम्मान पाने के बाद जब उनसे पूछा गया कि आपने लखनऊ के बारे में बहुत कुछ लिखा तब उन्होंने जवाब दिया था कि, मैंने लखनऊ को नहीं लखनऊ ने मुझे लिखा है। उन्होंने लखनऊ शहर के इतिहास और संस्कृति के अलावा अवध के रंगमंच पर 25 से अधिक किताबें लिखी हैं।
28 अक्टूबर 1938 को हुआ था जन्म

लखनऊ के रकाबगंज के पाण्डेयगंज की तंग गलियों में योगेश प्रवीण का जन्म 28 अक्टूबर 1938 को पीली कोठी पंचवटी में हुआ था। योगेश प्रवीण की चर्चा एक ऐसे इतिहासकार के रूप में हुई है, जिन्होंने सिर्फ लखनऊ के बारे में ही लिखा है। उनकी किताबों में यह लक्ष्मण की नगरी है तो नवाबों ने यहां की शाम में रुमानियत पैदा की। बताया जाता है कि योगेश के ऊपर भी कई लोगों ने रिसर्च किया है। बहरहाल, लखनऊ के लाडले योगेश प्रवीण की मृत्यु से पूरा शहर गमगीन हो उठा है। योगेश प्रवीण की लखनऊ को लेकर कृति-

लखनऊ है तो महज गुम्बदों मीनार नही
सिर्फ एक शहर नही कूच ओ बाजार नही।
इसके आंचल में मोहब्बत के फूल खिलते हैं
इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं।।

हिंदी, उर्दू अंग्रेजी, बंगला, अवधि के भाषा में महारत योगेश प्रवीन लखनऊ की पहचान माने जाते हैं। उन्होंने करीब दो दर्जन से ज्यादा किताबें लिखी हैं। उन्होंने दास्तान ए आवाज, साहिबे आलम, कंगन के कटार, दस्ताने लखनऊ बहारें अवध जैसी किताबें आज भी लखनऊ की पहचान हैं।
योगेश प्रवीण मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन बीच मे तबियत ज्यादा खराब होने से उनकी पढ़ाई छूट गयी। पिता लेक्चरर थे तो मां भी उस जमाने में लिखाई पढ़ाई किया करती थीं। इनकी मां का मानना था कि लिखने पढ़ने से सदियों तक लोग याद रखते हैं। इसी बात को योगेश प्रवीण ने गांठ बांध ली थी। बताते है कि एक बार वह शहर के बाहर गए तो लखनऊ को लेकर अच्छी बातें उन्होंने नही सुनी तभी से उन्होंने लखनऊ के बारे में लिखने की ठानी।

इतिहासकार रवि भट्ट बताते हैं कि योगेश प्रवीण लखनऊ के बारे में जो लिखते थे, वह किताबें अटल जी सफर के दौरान पढ़ा करते थे। बीते 1 महीने पहले बुक फेयर रविंद्रालय में मुलाकात हुई थी तो योगेश प्रवीण ने मुझसे जिक्र किया कि, नेशनल अवार्ड फॉर टीचर्स 1999 में उनको मिला था। अटलजी के साथ सम्मान पाने वाले टीचर्स का डिनर था। तब योगेश प्रवीण ने देखा कि, अटल जी किताब लक्ष्मणपुर की आत्मकथा पढ़ रहे थे। तब उन्होंने बताया था कि सफर के दौरान वह अक्सर मेरी किताबें पढ़ रहे थे। इतिहासकार रवि भट्ट बताते हैं कि हमें क्या मालूम था कि रविंद्रालय में मेरी योगेश प्रवीणजी से आखिरी मुलाकात होगी।

वे कहते हैं कि डॉक्टर योगेश प्रवीण ने लिखा था, “हमारे बाद भी कोई तुम्हें निहारिका मगर वहां हमारी कहां से लाएगा।” लखनऊ को योगेश प्रवीण ने जिस नजर से देखा, वैसे किसी ने नहीं। उनके साधारण व्यक्तित्व में असाधारण लखनऊ झलकता था।
लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने दुख जताते हुए कहा कि अवध और उसकी संस्कृति के संरक्षण-संवर्द्धन के लिए पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीन सदैव चिन्तित रहते थे। लोक संस्कृति शोध संस्थान के संरक्षक के रूप में उन्होंने अनेक योजनाएं क्रियान्वित कराईं। प्रतिमाह होने वाले ‘लोक चौपाल’ में वे चौपाल चौधरी के रूप में सम्मिलित होते रहे। संस्थान द्वारा उनके मार्गदर्शन में धारावाहिक वाह नवाब वाह के कई एपिसोड बने व प्रसारित हुए। उनके नेतृत्व में शोध यात्रा निकाली गई थी और लखनऊ के शिवाले शीर्षक एक कृति भी पूर्ण होने वाली थी। अभी पांच दिवस पूर्व आनलाईन फागोत्सव में उन्होंने अवधियाना होली पर अपनी बात रखी थी। उनका निधन लखनऊ के साहित्यिक व सांस्कृतिक जगत की ऐसी क्षति है जिसे कोई पूरा नहीं कर सकता।

लखनवी इतिहास के पर्याय योगेश प्रवीन:
इतिहासकार योगेश प्रवीन लखनऊ के इतिहास को जानने-समझने का सबसे बड़ा माध्यम थे। बीते वर्ष पद्मश्री सम्मान मिलने पर उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा था कि पद्म पुरस्कार मिलना उनके लिये देर से ही सही मगर बहुत खुशी की बात है। उन्होंने कहा कि अक्सर इंसान को सब कुछ समय पर नहीं मिलता। भावुक हुए इतिहासकार ने कहा था कि अब सुकून से अगली यात्रा पर चल सकूंगा।

लखनऊ और अवध पर अब तक ढेरों किताबें लिख चुके योगेश प्रवीन को पद्मश्री सम्मान मिलना लखनऊ के लिए गौरव था। वह कहते थे कि उनका कोई भी काम, शोध सिर्फ लखनऊ के लिए ही होता है। कहानी, उपन्यास, नाटक, कविता समेत तमाम विधाओं में लिखने वाले डॉ. योगेश प्रवीन विद्यांत हिन्दू डिग्री कॉलेज से बतौर प्रवक्ता वर्ष 2002 में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने चार दशक से पुस्तक लेखन के अलावा अनेक समाचार पत्र-पत्रिकाओं में लेखन किया। अवध और लखनऊ का इतिहास खंगालती कई महत्वपूर्ण किताबों के लिए उन्हेंं कई पुरस्कार व सम्मान भी किे। उनकी अब तक 30 से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जो अवध की संस्कृति और लखनऊ की सांस्कृतिक विरासत पर आधारित हैं। उनका बेहद चर्चित शेर ”लखनऊ है तो महज गुंबद-ओ-मीनार नहीं, सिर्फ एक शहर नहीं, कूचा-ए-बाजार नहीं, इसके आंचल में मुहब्बत के फूल खिलते हैं, इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं…।
आइएएस अधिकारी और पद्मश्री स्वर्गीय योगेश प्रवीन को बेहद करीब से जानने वाले पवन कुमार इन दिनों चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक के रूप में असोम में हैं। उनको जैसे ही पद्मश्री योगेश प्रवीन के निधन की सूचना मिली, वह अवाक रहे गए। उन्होंने कहा कि इतिहासकार योगेश प्रवीन जी लखनऊ हम पर फिदा है हम फिदा के लखनऊ….. की जिंदा मिसाल थे। जब भी मिलिए तो लगता था कि सामने जीता जागता लखनऊ सामने हो। इस शहर के शफ्क के एक एक रंग से उनकी गहरी वावफियत रही। उनकी किताबों को पढ़कर कोई भी व्यक्ति लखनऊ को अच्छे से समझ सकता है। नफासत और विनम्रता की इंतिहा यह कि आला दर्जे के लेखक और इतिहासकार होने के बावजूद वह अपने आपको आखिर वक़्त तक अवध की संस्कृति का शोधार्थी ही मानते रहे। लखनऊ की तहजीब को ओढऩे बिछाने वाले काबिल इतिहासकार योगेश प्रवीन को सादर नमन।

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