By Gautam Chopra

लखनऊ/नई दिल्ली(लाइवभारत24)। कोरोनावायरस के चलते स्वास्थ्यसेवाएं बाधित हो गई हैं, डायबिटीज़ के मरीज़ों को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी नियमित दवाओं और व्यायाम में कोई रूकावट न आए। सेवाओं के डिजिटलीकरण द्वारा सुनिश्चित किया जा सकता है कि मरीज़ लॉकडाउन के दौरान भी विशेषज्ञ चिकित्सकों की सेवाओं का लाभ उठा सकें। पिछले कुछ महीनों में, कोरोनावायरस महामारी के चलते दुनिया भर के लोगों और संस्थानों पर असर पड़ा है, एक बात स्पष्ट है कि वे लोग जिनमें पहले से कोई बीमारी है, वे मौजूदा स्थिति में अधिक संवेदनशील हैं। अन्य बीमारियों की मौजूदगी के साथ कोविड-19 के मरीज़ों में मृत्यु दर की संभावना बढ़ जाती है। खासतौर पर डायबिटीज़ के मरीज़ इसके लिए अधिक संवेदनशील हैं। गौतम चोपड़ा , बीटो के सह-संस्थापक एवं सीईओ के द्वारा, दुनिया भर में किए गए कई अध्ययनों से साफ है कि डायबिटीज़ के मरीज़ों में कोविड-19 इन्फेक्शन के परिणाम और गंभीर हो सकते हैं। क्योंकि इन मरीज़ों का इम्यून सिस्टम (बीमारियों से लड़ने की क्षमता) कमज़ोर होता है। इतना ही नहीं डायबिटीज़ के मरीज़ों में अन्य बीमारियों जैसे दिल की बीमारियों, हाइपरटेंशन, थॉयराईड विकार एवं स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं की संभावना भी अधिक होती है।

अतिरिक्त देखभाल और ऐहतियात

स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और इनके गंभीर परिणामों के मद्देनज़र ज़रूरी है कि डायबिटीज़ के मरीज़ अपनी खास देखभाल करें। इन मरीज़ों के परिवारजनों को भी सुनिश्चित करना चाहिए कि मरीज़ों को कोविड-19 के जोखिम से सुरक्षित रखा जाए। लॉकडाउन केे तहत लगाए गए सख्त प्रतिबंधों के अनुरूप हर पहलु का पालन करना उतना आसान नहीं है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए ऐसे मरीज़ों को सलाह दी जाती है कि घर से बाहर कम से कम जाएं। ऐसे समय में शारीरिक व्यायाम करना मुश्किल है, जो इन मरीज़ों के लिए बेहद ज़रूरी है, ऐसे में व्यायाम पर ध्यान दें। इसके अलावा इन मरीज़ों के पास ज़रूरी दवाएं और ब्लड शुगर मॉनिटरिंग स्ट्रिप्स हमेशा उपलब्ध हों। साथ ही नियमित रूप से डॉक्टर के संपर्क में रहें। मौजूदा स्थिति में इनमें से ज़्यादातर पहलुओं को सुनिश्चित करना मुश्किल हो गया है, इन सुविधाओं की उपलब्धता इस बात पर भी निर्भर करती है कि मरीज़ कौनसे ज़ोन में रह रहा है।आज डायबिटीज़ के ज़्यादातर मरीज़ नियमित रूप से अपने डॉक्टर के संपर्क में नहीं हैं, ऐसे में रोज़मर्रा में डायबिटीज़ पर नियन्त्रण बनाए रखना उनके लिए मुश्किल हो गया है। ज़्यादातर मरीज़ समझ नहीं पा रहे हैं कि इस डिसऑर्डर को कैसे नियन्त्रण में रखें, उनके लिए नियमित दवाओं और इंसुलिन की खुराक को विनियमित करना मुश्किल हो रहा है। ये मरीज़ बीमारी के घातक प्रभावों के बारे में जागरुक नहीं है, डॉक्टर की सलाह का ठीक से अनुपालन न करना कई गंभीर जटिलताओं तक का कारण बन सकता है जैसे लिम्ब एम्प्यूटेशन, अंधापन और यहां तक कि मृत्यु। यही कारण है कि डायबिटीज़ को ‘मूक हत्यारा’ तक कहा जाता है। मौजूदा परिस्थितियों में, रोग का अनुचित प्रबंधन और सेवाओं की अनुपलब्धता- अनियन्त्रित हाइपर ग्लाइसेमिया का कारण बन सकती है, जिसके कारण कोविड-19 संबंधी जटिलताओं और मुत्यु की संभावना बढ़ जाती है। यहां स्वास्थ्यसेवा पेशेवरों को मरीज़ की आवश्यकतानुसार उन्हें रोग के प्रबंधन में मदद करनी चाहिए।यह भी ज़रूरी है कि चिकित्सा पेशेवर मरीज़ों को विभिन्न दवाओं के बारे में जानकारी दें, उन्हें इंसुलिन की खुराक, आहार, तनाव प्रबंधन की तकनीकों, इन्डोर व्यायाम के तरीकों के बारे में बताएं ताकि वे अपने डायबिटीज़ पर नियन्त्रण रख सकें। चूंकि ऐसे समय में डॉक्टर से प्रत्यक्ष रूप से मिलना संभव नहीं है, ऐसे में मरीज़ वर्चुअल तरीकों से डॉक्टर से सलाह ले सकता है।इसमें कोई संदेह नहीं कि हाल ही के वर्षों में डिजिटल स्वास्थ्य पहलों को बढ़ावा मिला है, मेडिकल एवं हेल्थ ऐप्स के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जा रहा है। डिजिटल स्वास्थ्य के क्षेत्र में वियरेबल्स से लेकर इन्जेस्टिबल सेंसर, आर्टीफिशियल इंटेलीजेन्स, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, रोबोटिक केयरगिवर आदि की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ रही है। कोविड-19 का मौजूदा दौर इस तरह की डिस्रप्टिव तकनीकों के लिए एक अच्छा अवसर है, जो मरीज़ की देखभाल के तरीकों में आधुनिक बदलाव लाकर मैजूदा दौर में अधिक स्थायी समाधान प्रस्तुत करता है।

वर्चुअल विज़िट के फायदे

आज, ज़्यादातर सेक्टरों में डिजिटल तकनीकों जैसे ज़ूम, माइक्रोसॉफ्ट टीम, स्काइप और व्हॉटसऐप वीडियो कॉल के ज़रिए उपभोक्ता के साथ इंटरैक्शन और संचालन को सुनिश्चित किया जा रहा है। समय आ गया है कि चिकित्सा पेशेवर भी मरीज़ों की देखभाल के लिए इन डिजिटल तकनीकों को अपनाएं और लॉकडाउन के प्रतिबंधों के बीच मरीज़ों को अपनी सेवाएं प्रदान करते रहें।इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोनावायरस महामारी हमारे सामने कई चुनौतियां लेकर आई है, ये चुनौतियां कई अवसरों का कारण बन रहीं हैं। महामारी के दौरान आई चुनौतियों के बीच ऐसी आधुनिक स्वास्थ्यसेवा प्रथाओं को बढ़ावा दिया जा सकता है जो डायबिटीज़ सहित क्रोनिक बीमारियों के प्रबंधन में कारगर हों।डायबिटीज़ जैसी बीमारियों के प्रबंधन का एक तरीका यह है कि घर बैठे मरीज़ों की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके। ऐसा डायबिटीज़ प्रबंधन के डिजिटलीकरण द्वारा संभव है। उदाहरण के लिए पिछले डेढ़ दशक में टेलीमेडिसिन, उपचार के तरीकों में बड़ा बदलाव लाया है। जिसके चलते दूसरे एवं तीसरे स्तर के शहरों के लोग, महानगरों के चिकित्सकों से सलाह ले सकते हैं। मरीज़ अपने घर बैठे या इन अस्पतालों से जुड़े क्लिनिक में जाकर वीडियो सिस्टम के ज़रिए उनसे संपर्क कर सकते हैं। इस तरह बड़े महानगरों की चिकित्सा सेवाएं आज छोटे शहरों के मरीज़ों के लिए भी सुलभ हो गई हैं।इसी तरह, विशेष बीमारी, खासतौर पर क्रोनिक बीमारी के मरीज़ों, की देखभाल के लिए डिजिटल या वर्चुअल सपोर्ट ग्रुप भी बनाए जा सकते हैं, जिसकेे द्वारा मरीज़ के लिए जीवन की बेहतर गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जा सकता है। मरीज़ों को सीमित फायदों के साथ आइसोलेटेड सेवाएं प्रदन करने के अलावा, यह सिस्टम मरीज़ों की सभी ज़रूरतों के लिए वन-स्टॉप गंतव्य की भुमिका निभाता है।इस उद्देश्य से, राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन जैसी परिस्थितियों में विशेष बीमारियों के लिए सेवाएं उपलब्ध कराने वाले ऐप जीवनरक्षक साबित हो सकते हैं, जब मरीज़ों के लिए अस्पताल जाना मुश्किल हो। जैसा कि आतिथ्य जैसे क्षेत्रों और अस्पतालों में देखा गया है, पूरे स्पैक्ट्रम में अपॉइन्टमेन्ट एवं बिलिंग सहित सेवाओं की सुलभता उपयोगी हो सकती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि डायबिटीज़ जैसी मुश्किल बीमारियों के प्रबंधन के लिए तकनीक बेहद फायदेमंद हो सकती है। यह मरीज़ एवं चिकित्सक दोनों के लिए फायदेमंद प्रस्ताव होगा।

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