‘कला प्रवाह-एक अनुभव’ कार्यक्रम में कथक के दिग्गजों से रूबरू होने का मौका

लखनऊ (लाइव भारत 24)। कथक के टुकड़े, परमेलू, चक्करदार, परन, ठाट’ ‘सलामी’ व ‘आमद’ जैसी तमाम बारीकियों से कथक के दिग्गज गुरु रूबरू कराएंगे। जीहां, वर्चुअल मंच पर कथक की महफिल सज चुकी है। जहां पूरे एक महीने तक कथक की नामी हस्तियां हर दिन कुछ नया एक्सपीरियंस लेकर मौजूद रहेंगी। सेल्फी एंटरटेनमेंट एंड जीपी प्रोडक्शन हाउस की ओर से गुरुवार को ‘कला प्रवाह-एक अनुभव’ कार्यक्रम का आगाज किया गया। इस एक माह तक चलने वाले आयोजन में कथक के स्टूडेंट व अन्य कलाकारों को कथक के दिग्गजों से रूबरू होने का मौका मिलेगा।
संस्था की डायरेक्टर लवीना जैन और आरती मौर्या ने बताया कि पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज के बेटे पंडित दीपक महाराज और पंडित जयकिशन महाराज ने कार्यक्रम की शुभारंभ किया। अगले 30 दिनों तक हर दिन ऐसी ही हस्तियां अपने अनुभव साझा करेंगी। यह कार्यक्रम फेसबुक के जरिए सेल्फी एंटरटेनमेंट के पेज पर प्रसारित किया जाएगा।

 जानें खूबसूरत नृत्य शैली को :

उत्तर भारत की प्रसिद्ध भारतीय नृत्य शैली के रूप में ‘कथक नृत्य’ विश्व विख्यात है। कथक नृत्य का इतिहास अनेक परिधियों से घिरा हुआ है। सभी विद्वानों में इसके जन्म को लेकर विभिन्न मत हैं। परन्तु यह निश्चित है कि कथक मंदिरों का नृत्य है और यह एक प्राचीन नृत्य शैली है।
कथक शब्द का प्रयोग प्राचीन महाकाव्यों में भी प्राप्त होता है। कथक एकल नृत्य है, लेकिन अभिनय प्रयोगों के इस दौर में नृत्य, नाटिकाएँ और समूह में भी नृत्य होने लगे हैं।
वहीं, भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने से कथक नृत्य पर भी इसकी गहरी छाप पड़ी । नृत्य शैली में पतन भी आया परन्तु कथक नृत्य को ठाकुर प्रसाद, बिंदादीन महाराज, दुर्गा प्रसाद जैसे महान गुरुओं ने कठोर परिश्रम के जरिए और अथक प्रयासों द्वारा समाज में सम्मानीय स्थान दिलवाया।
कथक नृत्य अपने प्रस्तुतीकरण में जितना स्वतंत्र है उतनी कोई भी अन्य नृत्यशैली नहीं है। हर नर्तक कथक नृत्य अपने अलग-अलग अन्दाज में प्रारम्भ करता है और अपनी रुचि के अनुसार उसका संयोजन करता है।

 नृत्त, अभिनय का बेहतरीन संगम:

आमतौर पर कथक नृत्य व अभिनय का बेहतरीन संगम है। इसकी प्रस्तुति  प्रदर्शन के अनुसार दो प्रकार से बांटी गयी है। एक है उसका नृत्त पक्ष और दूसरा है अभिनय पक्ष। नृत्त क्रम में नर्तक सबसे पहले मंच पर ‘ठाट’ बाँधता है फिर ‘सलामी’ व ‘आमद’ जो नृत्य वर्णों की रचना होती है, प्रस्तुत करता है फिर टुकड़े, परमेलू, चक्करदार, परन करता है।

भावाभिनय महत्वपूर्ण अंग:

कथक का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग माना जाता है ‘भावाभिनय’ जो खुद ही बोलता है भावपूर्ण अभिनय। इस पक्ष के अंदर नर्तक ‘गत’ तथा ‘भाव’ में ठुमरी, भजन इत्यादि करता है जो बहुत ही मनमोहक होता है। ठुमरी को गाकर उस पर नृत्य करना इस नृत्य की विशेषता है। इसके अंतर्गत एक पंक्ति पर अनेक प्रकार से नृत्य करके दिखाया जाता है। सम्पूर्ण नृत्य में श्रृंगार रस का वर्चस्व होता है और दूसरे रस सहारा लेकर यथा स्थान प्रकट किए जाते हैं।
– पैरों के संचालन का महत्व:
कथक नृत्य में पैरों का संचालन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। कठिन तालों में तेज गति में नृत्य करना आश्चर्यचकित कर देता है।

खास होती है वेशभूषा:

कथक नृत्य की वेशभूषा पर भी मुगलकालीन दरबारी प्रभाव है। पुरुष नर्तक पैजामा, कुर्ता या अंगरखा पहनते हैं और कमर में दुपट्टा बाँधते हैं।
स्त्रियों की वेशभूषा के आजकल तीन रूप प्रचलित हैं जिसमें साड़ी,
लहंगा-चोली व दुपट्टा, मुगलिया अन्दाज का चूड़ीदार पैजामा, जैकेट व दुपट्टा जिसे ‘पेशवाज’ कहा जाता है शामिल हैं।

वाद्य और घुंघरुओं बिन अधूरा है नृत्य:

यही नहीं इस नृत्य में घुँघरुओं का विशेष स्थान है। शुरुआत में 25-25 घुँघरू एक पैर में बांधे जाते हैं जोकि धीरे-धीरे बढ़ते चले जाते हैं।
कथक नृत्य का वाद्य वृंद बहुत सीमित है। इसमें तबला, पखावज और सारंगी का प्रमुख स्थान है।
वर्तमान युग में कथक नृत्य अग्रणी नृत्य शैलियों में से एक है। एक ओर जहाँ क्रियात्मक गुणवत्ता बढ़ी है, वहीं दूसरी तरफ़ सैद्धांतिक पक्ष भी सुदृढ़ किया जा रहा है।

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