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आजादी की लड़ाई में लखीमपुर-खीरी का विशेष योगदान

  • चार को फांसी दी गयी 3 जेल में कैद के दौरान हुए शहीद

  • दो को दी गयी 12 बेंत की सजा

  • भारत छोड़ो आंदोलन में 326 स्वतंत्रता सेनानी गए जेल

लखीमपुर खीरी(लाइवभारत24)। आजादी की लड़ाई में लखीमपुर खीरी का विशेष योगदान रहा। 12 नवम्बर 1929 में महात्मा गांधी दलित उत्थान के लिए चंदा इकट्ठा करने लखीमपुर आये। मेमोरियल हॉल में बैठक की। उन्हें 3146 रुपया5 आना 3 पैसा का चंदा दिया गया। 28,29,30 सितम्बर 1928 में जवाहर लाल नेहरू ने लखीमपुर में राजनैतिक कान्फ्रेन्स में भाग लिया। 22 जन व 22 जून 1940 में दो बार नेता जी सुभाष चंद्र बोस लखीमपुर आये। 26 अगस्त 1920 को तीन सेनानियों नसीरुद्दीन मौजी, माशूक व बशीर ने तत्कालीन ब्रिटिश डीएम विलोबी का सर तलवार से काट दिया। तीनो को फांसी दी गयी। रम्पा तेली को अंग्रेजो ने गोली से उड़ा दिया। देवतादीन व नत्थू लाल सजा के दौरान बीमारी से जेल में ही शहीद हो गए। ग्राम भीखमपुर के युवा राज नारायण मिश्र को अंग्रेजो ने शस्त्र इकट्ठा करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। 9 दिस 1944 को जिला जेल खीरी में 24 वर्ष की आयु में राज नारायण मिश्र को फांसी दी गयी।

डीएम लखनऊ ने पार्थिव शरीर परिजनों को पंडित रामआसरे शुक्ल का शपथ पत्र लेने के बाद सौंपा। गंगाघाट कानपुर में इस शहीद का अंतिम संस्कार किया गया। लखीमपुर में श्री शुक्ल की मूर्ति लगी है। पंडित बंशीधर शुक्ल कई वर्ष जेल में रहे। 1957, 1962, 1967 में विधायक रहे। यूपी के काबीना वन मंत्री रहे। अवधी सम्राट पंडित बंशीधर शुक्ल कई वर्ष जेल में रहे और 1957 में विधायक रहे। ठाकुर करन सिंह व शिव प्रसाद नागर ने अंग्रेजों की सजा को भोगा और आजादी के बाद विधायक भी रहे। पण्डित राम आसरे शुक्ल नमक सत्याग्रह 1920, 1932 के सविनय अवज्ञा आंदोलन, 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन , 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल में गए। 12 बेत की सजा भोगी। 1930 में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के श्री शुक्ल डिक्टेटर भी रहे। कई माह अकेले ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन किया।शुक्ल के पुत्र हरी राम शुक्ल भी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए। पिता व पुत्र दोनो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। शासन ने शहपुरा कोठी चौराहा से गुरु गोविंद सिंह चौक रोड का नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राम आसरे शुक्ल मार्ग के नाम से रखने का आदेश दिया। पंडित बंशीधर शुक्ल के नाम से भी मार्ग का नामकरण किया गया। हर स्वतंत्रता सेनानी की बड़ी गौरवगाथा है। सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है देखना है जोर कितना बाजुवे कातिल में है कहकर अंग्रेजो को ललकारने वाले बहादुर शहीदों को नमन।

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