21.3 C
New York
Tuesday, 3rd \ June 2025, 07:46:42 PM

Buy now

spot_img

सुशांत पर मार्मिक कविता…..

तुम स्वयं पिता की लाठी थे,
फिर क्यों तुम खुद को तोड़ चले।
तुम अपने घर की रौनक थे ,
तुम क्यों यह दुनिया छोड़ चले।
तुम सबको पाठ पढ़ाते थे,
हिम्मत का और सच्चाई का।
फिर क्यों तुम हार गए खुद से ,
और चुना रास्ता खांई का।
तुम अपना हंसता चेहरा ले ,
जिस ओर निकल कर जाते थे ।
ना जाने कितने दिल मुट्ठी में,
वापस लेकर आते थे ।
तुमने जो चाहा वह पाया,
अपना जीवन भरपूर जिया।
फिर क्यों यह कदम उठा कर के ,
उस वृद्ध पिता को चूर किया ।
एक बार तो कुछ सोचा होता,
उसके सपनों का क्या होगा ।
कितना कठोर कर हृदय,
पिता ने पुत्र का दाह किया होगा।
फिर कैसे व्यथित हृदय लेकर,
रातों में वह बिलखा होगा ।
उन जर्जर बूढ़ी आंखों को,
चश्में से भी ना अब दिखता होगा।
कब तक तन में सांसे लेकर ,
वह इस दुनिया में भटकेंगे।
अंबर के तारे देखेंगे जब,
तो प्राण तुम्हीं में अटकेंगे।

ललिता पाण्डेय, लखनऊ

Related Articles

कोई जवाब दें

कृपया अपनी कमेंट दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Stay Connected

0फॉलोवरफॉलो करें
0सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

error: Content is protected !!