नई दिल्ली (लाइवभारत24)। जहां एक ओर किसान तीन कृषि विधेयकों-किसान उत्पादन व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020; मूल्य आश्वासन और फार्म सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) समझौता अधिनियम, 2020; आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 का विरोध कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देश के कृषि समुदाय को कुछ ही महीनों में एक बड़ा झटका लगने वाला है। प्रस्तावित कीटनाशक प्रबन्धन विधेयक 2020 के कृषि क्षेत्र पर दूरगामी प्रभाव होंगे और इसका किसानों की आय पर बुरा असर पड़ेगा क्योंकि विधेयक की वजह से कीटनाशकों की ज़बरदस्त कमी हो जाएगी और आवश्यक वस्तुओं के दाम तेज़ी से बढ़ेंगे। भारत में कृषि रसायन फर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाली ओद्यौगिक संस्था क्रॉप केयर फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीसीएफआई) ने आज ऐसा कहा। विधेयक को मार्च 2020 में राज्य सभा में पेश किया गया और संसद के अगले सत्र में इसे पारित करने के लिए फिर से प्रस्तुत किया जा सकता है। यह विधेयक मौजूदा कीटनाशक अधिनियम 1968 का प्रतिस्थापन होगा जो कीटनाशकों के आयात, निर्माण, बिक्री, स्थानान्तरण, वितरण और उपयोग को विनियमित करता है। डॉ अजीत कुमार, चेयरमैन (टेकनिकल कमेटी), क्रॉप केयर फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीसीएफआई) ने बताया कि विधेयक में ऐसे कई प्रावधान है जिसके कारण बाज़ार में कीटनाशकों की कमी हो जाएगी। प्रस्तावित विधेयक की धारा 23 उन कीटनाशकों के पंजीकरण पर विचार करने की अवधारणा देती है, जो 1968 अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं। हालांकि विधेयक में कहा गया है कि इस तरह का पंजीकरण विधेयक के प्रभाव में आने के बाद दो साल की अवधि के लिए ही वैद्य होगा। इसके अलावा यह पंजीकरण और लाइसेंस के अनुदान के लिए समयबद्ध अनुमोदन प्रक्रिया उपलब्ध नहीं कराता। पंजीकरण के प्रमाणपत्र के अनुदान से संबंधित प्रावधान पारदर्शिता और जवाबदेहिता को सुनिश्चित नहीं करते हैं। ‘‘यह प्रस्तावना न केवल कीटनाशक उद्योग में अस्थिरता लाएगी, बल्कि भारतीय कृषि के लिए भी हानिकर साबित होगी। संभवतया भारतीय किसानों के लिए ज़रूरी कई उत्पाद बिक्री के उपलब्ध नहीं होंगे क्योंकि हो सकता है कि पंजीकरण समिति निर्धारित समय अवधि के भीतर पंजीकरण न करे।’’ डॉ अजीत कुमार ने कहा। विधेयक के तहत यह प्रावधान भी दिया गया है कि कुछ विशेष कीटनाशकों को सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारियों द्वारा उपलब्ध कराए गए पर्चे से ही खरीदा जा सकेगा। इससे किसानों के लिए किफ़ायती फसल सुरक्षा कवर की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है। डॉ अजीत कुमार ने कहा, ‘‘देश के 6.5 लाख गांवों में तकरीबन 60 करोड़ किसान हैं, ऐसे में यह प्रावधान व्यवहारिक प्रतीत नहीं होता, इसे लागू किए जाने से किसानों के लिए कीटनाशकों की उपलब्धता बाधित होगी।’’ विविध परिस्थितियों में कीटों के प्रसार को देखते हुए कीटनाशकों का उपयोग अपरिहार्य है और फसल उत्पादकता को बनाए रखने के लिए बेहद ज़रूरी भी है। हाल ही में मौसम की अनुकूल परिस्थितियों के चलते उत्तरी भारत में सफेद मक्खी का हमला हुआ, जिन्होंने अपने रास्ते में आने वाली सारी फसलों को नष्ट कर दिया। इसी तरह कर्नाटक में नारियल की फसल पर उष्णकटिबंधीय सफेद मक्खी का हमला हुआ। मक्का के किसानों को भी आर्मीवर्म के हमले के कारण भारी नुकसान झेलना पड़ा। यह कीट अब अन्य फसलों जैसे गन्ने की फसलों पर भी हमला बोल रहा है। कीट के हर हमले में, समय पर कीटनाशक के उपयोग द्वारा किसानों की आजीविका को सुरक्षित रखा जा सकता है। इन सब पहलुओं के बावजूद यह विधेयक कीटनाशकों के उपयोग को अस्वाभाविक गतिविधि मानता है, जो कि उचित नहीं है।

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