नई दिल्ली(लाइवभारत24)। इजराइल और फिलस्तीन के बीच 11 दिनों से चल रही लड़ाई अब संघर्ष विराम के साथ थम गई है। गाजा और इजराइल का आसमान अब साफ है, क्योंकि दोनों ओर से रॉकेट दागना बंद कर दिया गया है। इजराइल और फिलिस्तीन के हथियारबंद संगठन हमास के बीच 11 दिन चली लड़ाई ने तबाही के गहरे निशान छोड़े हैं। गाजा में कई बड़ी इमारतें और पूरे के पूरे मोहल्ले जमींदोज हो गए हैं। बाजार तबाह हो गए हैं। 230 से अधिक लोग मारे गए हैं। वहीं इजराइल में भी इस लड़ाई में 12 लोग मारे गए हैं। इजराइल के तटीय शहर अश्दोद में रहने वाली सिबिल कहती हैं कि सीजफायर के बाद वार्निंग सायरन नहीं बज रहे हैं, इससे सबसे ज्यादा राहत बच्चों को मिली है। अश्दोद युद्ध के मुख्य केंद्र गाजा से सिर्फ 40 किमी की दूरी पर है।
इजराइल के तटीय शहर अश्दोद में रहने वाली सिबिल कहती हैं कि सीजफायर के बाद वार्निंग सायरन नहीं बज रहे हैं, इससे सबसे ज्यादा राहत बच्चों को मिली है। अश्दोद युद्ध के मुख्य केंद्र गाजा से सिर्फ 40 किमी की दूरी पर है।
गाजा पर नियंत्रण करने वाले इस्लामी कट्टरपंथी संगठन हमास ने इजराइल की तरफ चार हजार से अधिक रॉकेट दागे हैं। लड़ाई रुकने तक इजराइल में लगातार सुरक्षा सायरन बज रहे थे और गाजा के नजदीकी शहरों में अफरा-तफरी का आलम था।

लड़ाई थमने के साथ ही अश्दोद में चहल-पहल शुरू हो गई है।
लड़ाई बंद होने के बाद गाजा पट्‌टी में ईद जैसी खुशी है। लोग जश्न मनाने के लिए सड़कों पर निकले हैं। जगह-जगह फिलिस्तीनी झंडे लहराए जा रहे हैं और आतिशबाजी की है। लेकिन यहां सब लोग खुश नहीं हैं।

ये हाल के दशकों में इजराइल का चौथा बड़ा हमला है। 2008, 2012, 2014 और अब 2021 में इजराइल ने गाजा पर भारी बमबारी की है।’

25 साल की असमा ने अभी शादी नहीं की है और मौजूदा हालात को देखते हुए वो शादी करना भी नहीं चाहती हैं। वो कहती हैं, ‘मैं अपने भविष्य को लेकर पहले से अधिक चिंता में हूं। मैं अभी जिस उम्र में हूं लोग उस समय अपने करियर, परिवार और शादी के बारे में सोचते हैं। लेकिन मैं इस बारे में सोच भी नहीं पा रही हूं क्योंकि मुझे नहीं पता कि मैं गाजा में अपने बच्चों को अच्छा भविष्य दे पाऊंगी या नहीं। मैं सोच रही हूं कि मैं शादी ही न करूं और बच्चे ही पैदा न करूं।’
फिलिस्तीनी पत्रकार इसरा अलमोदलाल तुर्की के इस्तांबुल में रहती हैं, लेकिन उनका परिवार गाजा में है। इसरा कहती हैं, ‘मैं अपनी बेटी को लेकर बहुत चिंतित थी। वो मेरी मां के पास थी। अब संघर्षविराम के बाद लोग बाहर निकल पा रहे हैं। मैं खुश हूं कि मेरी बेटी अब घर पहुंच रही है। इस लड़ाई ने सिर्फ इमारतें ही बर्बाद नहीं की हैं। हमारे दिलो-दिमाग पर, हमारी रूह पर भी गहरे निशान छोड़े हैं।’

इसरा मानती हैं कि गाजा में सबसे अधिक मदद की जरूरत मांओं और बच्चों को ही होगी। वो कहती हैं, ‘गाजा में औरत होना अपने आप में बहुत मुश्किल है। बहुत सी औरतों के पति इजराइली जेलों में हैं, बेटे इजराइली जेलों में हैं। उनके लिए इस लड़ाई से उबरना आसान नहीं होगा।’

इजराइल के लगातार हमलों के कारण गाजा के मोहल्ले के मोहल्ले तबाह हो गए हैं। जानकार कहते हैं कि गाजा के इंफ्रास्ट्रक्चर को पहले जैसी स्थिति में लाने में कम से पांच साल लगेंगे।
इजराइल के लगातार हमलों के कारण गाजा के मोहल्ले के मोहल्ले तबाह हो गए हैं। जानकार कहते हैं कि गाजा के इंफ्रास्ट्रक्चर को पहले जैसी स्थिति में लाने में कम से पांच साल लगेंगे।
गाजा अपनी जरूरतों के लिए बाहरी देशों की मदद पर निर्भर है। जॉर्डन यहां मेडिकल सपोर्ट देता रहा है, लेकिन इसरा का कहना है कि अरब देशों की तरफ से या अंतरराष्ट्रीय समुदाय की तरफ से अभी तक गाजा के लिए कोई मदद नहीं पहुंची है।

वो कहती हैं, ‘गाजा पर हुए हवाई हमलों की वजह से दस हजार घर बर्बाद हो गए हैं, लगभग पचास हजार लोग बेघर हुए हैं। बिजली नहीं है, लोगों के पास खाने-पीने को नहीं हैं। लड़ाई तो थम गई है लेकिन हालात बहुत खराब हैं। गाजा पट्टी के अस्सी फीसदी इलाकों में बर्बादी हुई है। इंफ्रास्ट्रक्चर ध्वस्त हो गया है।’

ज्यादातर देश हमास को आतंकी संगठन मानते हैं, इसलिए मदद भी बंट जाती है
मिस्र के जरिए अरब देश गाजा के निर्माण के लिए मदद करते हैं, लेकिन बहुत से देश गाजा पर शासन चला रहे समूह हमास को आतंकवादी आंदोलन मानते हैं, इसलिए वो सीधे हमास को मदद नहीं देते हैं। वो फिलिस्तीन अथॉरिटी को मदद भेजते हैं जो वेस्ट बैंक में प्रशासन चलाता है।

इसरा कहती हैं, ‘गाजा के लोगों को फिलिस्तीनी अथॉरिटी पर भी बहुत भरोसा नहीं है। वो इजराइल के साथ संपर्क में है और इस समय तक इजराइल के साथ बातचीत कर रहे हैं। वो हमारे बच्चों को, हमारे जवानों को इजराइल को सौंपते हैं ताकि वो उन्हें जेल में डाल सकें। ऐसे में गाजा के लोग फिलिस्तीनी अथॉरिटी को लेकर बहुत गुस्से में रहते हैं।’

इसरा कहती हैं, ‘ये संघर्ष विराम एक तरह से फिलिस्तीनियों की जीत ही है, तमाम तबाही के बावजूद हमारा हौसला बरकरार है। इजराइल के पास असीमित ताकत है। हमने उस ताकत का मुकाबला किया है।’ वो कहती हैं, ‘इजराइल ने यरूशलम में फिलिस्तीनियों पर हमला किया तो गाजा के लोगों ने इजराइल पर रॉकेट दागे और इजराइल को जता दिया कि गाजा के लोग अभी जिंदा हैं और वो यरूशलम पर कोई हमला बर्दाश्त नहीं करेंगे। जब तक हम जिंदा हैं, हम लड़ते रहेंगे। मैं जो बात कर रही हूं इसे फिलिस्तीनियों के अलावा कोई नहीं समझ सकता। दुनिया के लोग ये देखते हैं कि गाजा में कितनी बर्बादी हुई या कितने बच्चे मारे गए। लेकिन वो ये नहीं समझते कि फिलिस्तीनी एक कब्जाधारी ताकत के खिलाफ लड़ रहे हैं। हमने इजराइल की ताकतवर मिसाइलों का सामना किया है और हमारे देसी रॉकेटों ने इजराइल के लोगों को शेल्टर होम में छुपा दिया है।’

जोनॉथन एलखोरी इजराइल में रहते हैं और ईसाई धर्म को मानते हैं। उनका कहना है कि इस लड़ाई में हमेशा यहूदियों को कोसा जाता है, लेकिन हमास ने इस बार इतने रॉकेट दागे हैं कि उनकी जद में इजराइल की 80 फीसद जनता थी, जिसे शेल्टर लेना पड़ा। हमें उसका भी पक्ष जानना चाहिए।
जोनॉथन एलखोरी इजराइल में रहते हैं और ईसाई धर्म को मानते हैं। उनका कहना है कि इस लड़ाई में हमेशा यहूदियों को कोसा जाता है, लेकिन हमास ने इस बार इतने रॉकेट दागे हैं कि उनकी जद में इजराइल की 80 फीसद जनता थी, जिसे शेल्टर लेना पड़ा। हमें उसका भी पक्ष जानना चाहिए।
80 फीसदी इजराइली आबादी डर के साये में थी
जोनॉथन एलखोरी इजराइल के हाइफा में रहते हैं। वो इजराइली ईसाई हैं और इजराइल से जुड़े मुद्दों के जानकार हैं। जोनॉथन कहते हैं, ‘गाजा से मिल रही तस्वीरों में दिख रहा है कि इजराइल डिफेंस फोर्सेज ने हमास के पूरे इन्फ्रास्ट्रक्चर को बर्बाद कर दिया है। हमें उम्मीद है कि हमास अब इजराइल पर अगले कुछ सालों तक आतंकवादी हमले नहीं कर पाएगा।’

जोनॉथन कहते हैं, ‘इजराइल दो मोर्चों पर लड़ रहा था। एक तरफ अंदरूनी इजराइल में अरब मूल के कट्टरपंथी हमले कर रहे थे, यहूदी धर्मस्थलों को निशाना बनाया जा रहा था। हाइफा में भी भीषण दंगे हुए हैं। दूसरी तरफ गाजा से रॉकेट दागे जा रहे थे। लेबनान की तरफ से भी उत्तरी इजराइल पर रॉकेट दागे गए। इन 11 दिनों में इजराइल की 80 फीसदी से अधिक आबादी को शेल्टर लेना पड़ा। संघर्षविराम से हम खुश हैं और उम्मीद है कि यहां जिंदगी सामान्य हो पाएगी।’

बमबारी थमी, लेकिन तनाव जारी
गाजा और इजराइल के बीच बमबारी भले ही थम गई हो, लेकिन तनाव जारी है। ताजा हिंसा इस पुराने संघर्ष में एक और नया चैप्टर ही है। जोनॉथन कहते हैं, ‘हमें ये देखना चाहिए कि ये लड़ाई किसने शुरू की। पहले आतंकवादी संगठन हमास ने इजराइल की तरफ रॉकेट दागे। हमास ने दावा किया कि वो फिलिस्तीनी लोगों के रक्षक हैं। इजराइल अपनी पूरी शक्ति के साथ अपने नागरिकों की सुरक्षा कर रहा है। दुनिया को ये समझना चाहिए कि इजराइल की 80 फीसदी आबादी हमास के रॉकेटों के निशाने पर थी। इजराइल के पास अपने लोगों की रक्षा करने का अधिकार है और हमास के आतंकवादी नेटवर्क को ध्वस्त करने का अधिकार भी है।’

गाजा पर इजराइली हमलों के बाद दुनियाभर में इजराइल के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए हैं। जोनॉथन कहते हैं, ‘इजराइल के प्रति एक तरह की नफरत है जो दिखाई देती है। हालात जो भी हों, इजराइल को हमेशा कोसा जाता है। सीरिया के गृहयुद्ध में पांच लाख से अधिक लोग मारे गए हैं लेकिन जो लोग फिलिस्तीनियों के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं वो उन पर बात नहीं कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि वो सिर्फ इजराइल और यहूदियों के खिलाफ हैं।’

फिलिस्तीनी पत्रकार इसरा अलमोदलाल तुर्की के इस्तांबुल में रहती हैं। उनका कहना है कि फिलिस्तीन की जनता फिलिस्तीन अथॉरिटी से ज्यादा हमास पर भरोसा करती है। उनका कहना है कि अगर इजराइल ने यरूशलम में कोई एक्शन लिया तो हिंसा फिर भड़केगी।
फिलिस्तीनी पत्रकार इसरा अलमोदलाल तुर्की के इस्तांबुल में रहती हैं। उनका कहना है कि फिलिस्तीन की जनता फिलिस्तीन अथॉरिटी से ज्यादा हमास पर भरोसा करती है। उनका कहना है कि अगर इजराइल ने यरूशलम में कोई एक्शन लिया तो हिंसा फिर भड़केगी।
क्यों हुआ है ताजा संघर्ष?
दस मई को यरूशलम की अल-अक्सा मस्जिद में इजराइली सुरक्षाकर्मियों और फिलिस्तीन के लोगों के बीच हुई झड़प के बाद हमास ने इजराइल पर रॉकेट दागने शुरू किए थे, जिसके जवाब में इजराइल ने गाजा पर दिन रात बमबारी की।

यरूशलम मुसलमानों, यहूदियों और इसाइयों का पवित्र स्थल है और यहां कब्जे को लेकर तीनों धर्मों के बीच संघर्ष चलता रहा है। मुसलमान मस्जिद अल-अक्सा पर अपना दावा ठोकते हैं, जबकि यहूदी इसे अपना धर्मस्थल टेंपल माउंट मानते हैं। यरूशलम का स्टेट्स हमेशा से ही इजराइल और फिलिस्तीनियों के बीच संघर्ष की वजह रहा है।

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान यूरोप में नाजी जर्मनी यहूदियों को निशाना बना रहा था। तब फिलिस्तीनी क्षेत्र ब्रिटेन के शासन के अधीन था। यहां दुनियाभर से लाए गए यहूदियों को बसाया गया। दुनिया भर के यहूदी यरूशलम और आसपास के इलाके को अपनी ऐतिहासिक जमीन मानते हैं। 14 मई 1948 को फिलिस्तीनी जमीन पर इजराइली राष्ट्र की स्थापना हुई। तभी से इजराइल और फिलिस्तीनी लोगों के बीच तनाव और संघर्ष जारी है।

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