लखनऊ (लाइव भारत 24)। 13 जून यानि नेशनल सिलाई मशीन दिवस जो मेरे लिये पुरानी यादें लेकर आता है। मां, दादी और नानी को सिलाई मशीन का इस्तेमाल करते देख मुझे भी सिलने का शौक हो गया। दसवीं क्लास के बाद मां ने मुझे मशीन से काम करना सिखाया। उस समय का शौक आज के जीवन मे कितना काम आ रहा है, मैं बता नहीं सकती। यह मशीन बेहद फायदेमंद है। हमेशा कोई भी नई रेडीमेड कुर्ती खरीदने पर थोड़ा- बहुत अल्टर करने और दर्जी के चक्कर लगाने जैसी असुविधाओं से भी अब मैं बच जाती हूं। घर के बहुत से काम मैं अपनी शन्नो (मेरी सिलाई मशीन) को कहती हूं और उसकी मदद से चुटकियों में मैं सिलाई कर देती हूं।

कोरोना माहामारी से बचाव हेतु गरीबों को नि:शुल्क वितरित करने के लिये मास्क तैयार करती सोशल एक्टिविस्ट अनीता शर्मा

इतना ही नहीं, कोविड-19 में तो मेरी शन्नो ने मेरा बखूबी साथ दिया। ऊटपटांग मास्क भी बहुत महंगे और समय पर उपलब्ध नहीं थे। सिर्फ अपनी बात हो तो ठीक भी है, मैं तो सामाजिक कार्यकर्ता ठहरी इसलिये बहुत से मास्क बनाकर मैंने अपनी सहायिकाओं व उनके बच्चों और जितने जरूरतमंद तक पहुंच सकी, सबको बांटा। ये मास्क मैंने घर में उपलब्ध पुराने सूती कपड़े को सिलकर बनाये। लोगों को बांटकर बहुत सुकून महसूस हुआ। करोना काल में एक जिम्मेदार नागरिक का कुछ फर्ज मैंने भी निभाया। तीस साल पुरानी मेरी शन्नो मक्खन की तरह बिना आवाज किये चलती है। मुझे लगता है हम कितने भी आधुनिक क्यों न हो जाएं पर जिदंगी की अपनी जरूरत भर का हर हुनर सबको आना चाहिए। करोना संक्रमण में ये बात बहुतों ने समझ ली होगी चाहे कितना भी पैसा रखा हो, मगर जब मॉल, बाजार सब बंद रहे, लगभग ढाई महीने तो सुविधाएं कहां मिली। जो करना है अपने आप करो, इसलिये सभी को थोड़ा-बहुत सिलाई-कढ़ाई का हुनर भी आना चाहिए। सिलाई मशीन दिवस पर मेरी सभी को यही सलाह है कि अपने घर की सिलाई मशीन को निकालें और उसे साफ करके थोड़ा प्यार-दुलार दें, फिर देखिये कैसे वह आपके सिलाई के काम मिनटों में निपटाएगी।

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