लखनऊ (लाइवभारत24)। ग्लोबल हेल्थकेयर कंपनी एबॅट ने आज घोषणाकी कि उसे अपने इवाब्राडिन, दिन-में-एक-बार फॉर्मूलेशन के लिए ड्रग्‍स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई)से मंजूरी मिल गई है। भारत में हृदय रोगों जैसी क्रॉनिक स्थितियों के लिए उपचार पर टिके रहने की दर आमतौर पर कम ही है। दवाएं दिनमें कई बार लेनी पड़ती हैं तो ऐसे में सहूलियत ही रोगी की एक अहम जरूरत बन जाती है।ज्यादा सुविधाजनक खुराक की इस अपूर्ण जरूरत को पूरा करने के लिए, एबॅटने इवाब्राडिन का भारत में पहला “हर दिन एक बार” प्रोलॉन्ग्ड रिलीज (पीआर)संस्करण विकसित किया, जो कि क्रॉनिक हार्ट फेलियरऔर क्रॉनिक स्टेबल एंजाइना के रोगियों के लिए अनुशंसित है। यह फॉर्मूला मरीजों के लिएज्यादा सुविधाजनक होगा और स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के उद्देश्य के साथ उपचारके लगातार पालन में मददगार होगा। एबॅट ने आने वालेहफ्तों में भारतीय बाजार में इवाब्राडिन पीआर टैबलेट लॉन्च करने की योजना बनाई है। भारत में, हार्ट फेलियरके रोगियों की संख्या 13 लाख से 46 लाख के बीच है और हर साल 5 लाख से 18 लाख नए मामलेदर्ज होते हैं। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज के अध्ययन के अनुसार, कोरोनरी हृदय रोग से जुड़ीअक्षमताओं के चलते अनुमानत: 1.44 करोड़ पुरुषों और 77 लाख महिलाओं ने अपने उत्पादक वर्षगंवा दिए हैं। जहां देश में बीमारी का बोझ बहुत ज्यादाहै, वहीं नियमित उपचार न लेना या इलाज बीच में छोड़ देना एक अहम चुनौती है। अध्ययनोंसे पता है कि भारत में हृदय रोग से पीड़ित बहुत से लोग अपने चिकित्सकों की अनुशंसाके अनुसार अपनी दवाएं नहीं लेते हैं। एम्स के एक अध्ययन का अनुमान है कि दवाएं नियमितरूप से न लेने की दर हृदय रोगियों में 24% से लेकर उच्च रक्तचाप पीड़ितों में 50%-80% तक है। रोग के प्रबंधन के लिए मरीजों को आमतौरपर कई खुराक लेने की जरूरत होती है, इसके मुकाबले नए फॉर्मूलेशन वाली इवाब्राडिन पीआरटैबलेट को दिन-में-एक-बार ली जाने वाली दवा के रूप में प्रिस्क्राइब किया जा सकता है।एबॅट ने भारत में 21 केंद्रों पर चरण3 का क्लिनिकल अध्ययन किया, जो इस फॉर्मूलेशन के लिए होने वाला अपनी तरह का पहला अध्ययनथा। इस अध्ययन ने दिखाया कि इवाब्राडिनपीआर दिन-में-एक-बार फॉर्मूलेशन स्थिर क्रॉनिक हार्ट फेलियरके प्रबंधन के मामले में पारंपरिक इवाब्राडिन दिन-में-दो-बार के जैसा ही है और इसकीप्रभावकारिता व सुरक्षा प्रोफाइल भी समान है।

हार्ट फेलियररोगियोंके लिए एक थैरेपी के तौर पर इवाब्राडिन के बारे हुए डॉ०पियूष खेरा,एम डी,डी एम,कार्डियोलॉजिस्ट, निशातहॉस्पिटल कहते हैं, “हार्ट फेलियरसेपीड़ित 45% रोगियों में दिल की रफ्तार तेज होती है, और जिसमें लगभग 40% अस्पताल मेंभर्ती होते हैं। दिन में एक बार लिया जाने वाला इवाब्राडिन का नया फॉर्मूलेशन गोलियोंकी संख्या को कम करके रोगी को उपचार के नियमित पालन में सुविधा प्रदान करेगा। इससेउनकी हृदय गति को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। इस तरह अस्पताल में भर्ती होने कीजरूरत घटेगी और जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा।” यह फॉर्मूलेशन मुंबई स्थित एबॅट के इनोवेशन एंड डेवलपमेंट (आईएंड डी) सेंटर में विकसित किया गया है। एबॅट के दवा व्यवसायके लिए आई एंड डी सेंटर एक अहम वैश्विक नवोन्मेष केंद्रहै। आई एंड डी सेंटर के शोधकर्ता रोगी की जरूरतों का अनुमान लगाने के लिए स्थानीय बारीकसमझ और जानकारियों का उपयोग करते हैं। सार्थक इनोवेशन मुमकिन बनाने के लिए ये समझ मौजूदाऔर नवाचारी तकनीकों के साथ जुड़ी हुई हैं। चिकित्सकों से मिली अंतर्दृष्टियों से इवाब्राडिनके लिए एक सिंपल और ज्यादा सुविधाजनक खुराक की जरूरत का पता चला, जिसकी बदौलत दिन मेंएक बार वाला समाधान सामने आया।

नए फॉर्मूलेशन पर एबॅट के रीजनल मेडिकल डायरेक्‍टर डॉ. बालागोपाल नायर ने कहा, “हमारा लक्ष्य मरीजोंकी अब तक अधूरी रही चिकित्सा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए दवाओं में सुधार लाकरस्वास्थ्य को बेहतर बनाना है। क्रॉनिक हार्ट फेलियरयाक्रॉनिक स्टेबल एंजाइना से पीड़ित लोगों के संपूर्णस्वास्थ्यको ज्‍यादा से ज्‍यादा बेहतर बनानेके लिए थैरेपी से जुड़े रहना और उसका लगातार पालन एक अहम फैक्टर है। इस नई खुराक काफॉर्मूला तैयार करने के लिए हमने सर्वश्रेष्ठ तकनीक और विज्ञान का प्रयोग किया है।दिन-में-एक-बार वाला सुविधाजनक फॉर्मूलेशन उपचार के सतत पालन में समग्र रूप से सुधारलाने में सहायक होगा, जिससे स्वास्थ्य संबंधी बेहतर नतीजे मिलेंगे।” क्रॉनिक हार्ट फेलियर एक लगातार बढ़ने वाली दशा है,जिसमें शरीर की ऑक्सीजन संबंधी मांगों को पूरा करने के लिहाज से जरूरी रक्त प्रवाहको बनाए रखने के लिए हृदय पर्याप्त रूप से पंप करने में असमर्थ होता है। क्रॉनिक स्टेबलएंजाइना आमतौर पर हृदय की मांसपेशियों को खून की आपूर्ति करने वाली धमनियों में रुकावटया संकुचन के कारण होता है। इवाब्राडिन हृदय की गति को स्थिर बनाए रखने और इसे स्पाइकिंगसे बचाने में मदद करती है, जो लक्षणों को कम करने और दोनों स्थितियों के रोगनिदानको बेहतर बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण शर्त है।

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